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India At 2047: भारत के लिए क्यों अहम है अपनी डिजिटल करेंसी लाना, क्या होगी CBDC और कैसे होगी खास-जानें

Looking Ahead, India@2047: दुनिया भर में लगभग 90 फीसदी केंद्रीय बैंक सीबीडीसी से संबंधित कार्यों में शामिल हैं और उनमें से एक चौथाई या तो अपनी डिजिटल मुद्रा विकसित कर रहे हैं या पहले से ही एक पायलट प्रोजेक्ट चला रहे हैं.

Digital Rupee or CBDC: इस साल की शुरुआत में भारत ने अपनी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) लाने की योजना के बारे में जानकारी दी थी. हालांकि भारत ने अपनी डिजिटल करेंसी लाने का एलान करके दुनिया के कई देशों में चल रही डिजिटल करेंसी की रेस में भाग ले लिया है, लेकिन देश के नीति निर्माताओं को CBDC लाने से पहले कई मुख्य मुद्दों पर विचार करना होगा जिससे देश की डिजिटल करेंसी सही तरह से चलन में आ सके. 

1 फरवरी को अपने केंद्रीय बजट भाषण के दौरान, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत के लिए सीबीडीसी शुरू करने की घोषणा की थी. इसे 'डिजिटल रुपया' कहते हुए, सीतारमण ने इस बात पर जोर दिया कि इस वित्तीय वर्ष में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा इसकी शुरुआत डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी और एक अधिक कुशल और सस्ती मुद्रा प्रबंधन प्रणाली की ओर ले जाएगी.

CBDC क्या है?
आरबीआई ने सीबीडीसी को 'एक केंद्रीय बैंक द्वारा डिजिटल रूप में जारी कानूनी निविदा' के रूप में परिभाषित किया है. यह फिएट करेंसी के जैसी है और फिएट करेंसी के साथ वन-टू-वन एक्सचेंज योग्य है.  सरल शब्दों में, CBDC नेशनल करेंसी से अलग नहीं है, बल्कि केवल डिजिटल रूप में है. लिहाजा इसमें क्रिप्टोकरेंसी के जैसे उतार-चढ़ाव नहीं देखा जाएगा. 

लेकिन रेगुलर डिजिटल लेनदेन और सीबीडीसी के बीच अभी भी एक महत्वपूर्ण अंतर है जो डिजिटल रुपये को इससे अलग करेगा. यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) प्लेटफॉर्म जैसे BHIM, Google Pay, या PhonePe के माध्यम से किए गए डिजिटल लेनदेन में बैंकिंग सिस्टम का उपयोग शामिल है. ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करने के लिए उपयोगकर्ताओं को अपने बैंक खातों को UPI से जोड़ना होगा, चाहे वह पेमेंट के लिए हो या पैसे के ट्रांसफर के लिए हो. हालांकि, CBDC में बैंकिंग सिस्टम का उपयोग शामिल नहीं होगा और यह वित्तीय संस्थानों के बजाय केंद्रीय बैंक, यानी भारत के मामले में RBI पर सीधा दावा होगा.

दुनियाभर के बैंक क्यों दे रहे हैं CBDC लाने पर जोर?
सीबीडीसी की खोज करने वाला भारत अकेला देश नहीं है. दुनियाभर में लगभग 90 प्रतिशत केंद्रीय बैंक सीबीडीसी से संबंधित कार्यों में शामिल हैं और उनमें से एक चौथाई या तो अपनी डिजिटल मुद्रा विकसित कर रहे हैं या पहले से ही एक पायलट प्रोजेक्ट चलाने के उन्नत चरण में हैं. बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स द्वारा किए गए सर्वेक्षण से पता चला है कि पिछले एक साल में अपने स्वयं के सीबीडीसी को विकसित करने वाले केंद्रीय बैंकों की संख्या दोगुनी हो गई है.

सीबीडीसी को विकसित करने के लिए भारत सहित देशों के बीच इस बढ़ती दिलचस्पी का कारण पिछले कुछ सालों में क्रिप्टोकरेंसी का उदय है. किसी भी चीज़ से ज्यादा, सीबीडीसी केंद्रीय बैंकों द्वारा अपनाए जा रहे रक्षा तंत्र के रूप में बदल रहे हैं. केंद्रीय बैंकों को प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी के बढ़ते बाजार के विचार से कुछ असुविधा दिखाई देती है क्योंकि यह एकमात्र करेंसी-जारीकर्ता होने के उनके अधिकार को चुनौती देता है.

RBI के डिप्टी गवर्नर ने क्या कहा
RBI के डिप्टी गवर्नर टी रबी शंकर ने अप्रैल में इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) द्वारा आयोजित एक वेबिनार में कहा कि "लगभग एक-दो साल पहले तक उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की वैश्विक सोच यह थी कि वहां इस स्तर पर सीबीडीसी का अधिक उपयोग नहीं है. ऐसा कुछ भी नहीं जो आपकी सामान्य डिजिटल भुगतान प्रणाली CBDC को प्राप्त न कर सके. लेकिन यह सोच काफी हद तक स्टेबल कॉइन की शुरुआत के साथ बदल गई है. 

शंकर ने कहा कि चूंकि करेंसी के रूप में कार्य करने के लिए प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी बहुत अस्थिर थी, इसलिए उन्हें स्थिर मुद्रा के रूप में गंभीर खतरे के रूप में नहीं देखा गया. यह वह जगह है जहां स्टेबल कॉइन जैसा कि नाम से पता चलता है, ने मूल्य में स्थिरता प्रदान करके निवेशकों के बीच लोकप्रियता हासिल कर ली. टीथर और यूएसडी कॉइन सहित स्टेबलकॉइन का उद्देश्य किसी अन्य संपत्ति जैसे अमेरिकी डॉलर या सोने जैसी कमोडिटी के मूल्य से जुड़ा होकर एक स्थिर मूल्य बनाए रखना है.

हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि भारत में डिजिटल ट्रांजेक्शन्स के तेजी से बढ़ने को लेकर अपार संभावनाएं हैं. जैसे कि देश में पिछले पांच वर्षों में डिजिटल भुगतान में हर साल 50 प्रतिशत से अधिक की तीव्र गति से वृद्धि हुई है, इसका श्रेय ज्यादातर यूपीआई को जाता है. 

CBDC ग्राहकों की कैसे मदद करेगी?
विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी में सीनियर रेजिडेंट फेलो और फिनटेक लीड शहनाज अहमद ने कहा कि यूपीआई निश्चित रूप से सबसे बड़ा डिजिटल पेमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर है लेकिन सीबीडीसी अपने इनोवेटिव मॉडल के जरिए उस स्पेस में प्रतिस्पर्धा का नेतृत्व करेगा. यह कंज्यूमर्स के लिए किसी भी अन्य डिजिटल पेमेंट सर्विस सेवा की तरह प्रतीत होगा, लेकिन चूंकि सीबीडीसी केंद्रीय बैंक की प्रत्यक्ष देनदारी होगी, इसलिए यह अधिक सुरक्षित होगा और किसी भी प्रकार के डिफ़ॉल्ट पर निर्भर नहीं होगा. 

CBDC की कहां हो सकती है पॉपुलेरिटी 
2018-19 के आरबीआई सर्वेक्षण के मुताबिक, डिजिटल लेनदेन के बढ़ते उपयोग के बावजूद अधिकांश आबादी के लिए भुगतान का पसंदीदा तरीका कैश ही बना हुआ है. ये वह जगह है जहां CBDC कैश के सच्चे डिजिटल संस्करण के रूप में कार्य कर सकता है. चूंकि सीबीडीसी को बैंकिंग चैनलों के माध्यम से नहीं भेजा जाएगा, यह कैश की तरह देने वाले की पहचान छुपाकर रख सकता है. खासकर छोटे-कीमत वाले लेनदेन के लिए. और इस मायने में यह आरबीआई को करेंसी नोटों की प्रिटिंग और वितरण की लागत को कम करने में मदद कर सकता है.

CBDC से जुड़े सबसे बड़े चिंता के कारण क्या हैं?
सीबीडीसी की शुरूआत से जुड़ा सबसे बड़ा डर है कि बैंकिंग सिस्टम पर निर्भरता भी काफी कम हो जाएगी. इसका मतलब यह होगा कि उपभोक्ता अपना पैसा अपने सीबीडीसी वॉलेट में डालना शुरू कर देंगे और बैंक डिपॉजिट से निकाल लेंगे. यदि बैंकों को डिपॉजिट राशि नहीं मिलती है, तो कारोबारों और उपभोक्ताओं को पैसा उधार देने की उनकी क्षमता भी कम हो जाएगी और इसका अर्थव्यवस्था और बैंकिंग प्रणाली पर कुछ प्रभाव पड़ सकता है.

हालांकि शहनाज अहमद का मानना है कि केंद्रीय बैंक सीबीडीसी लेनदेन के लिए एक नियामक की भूमिका निभा रहा है जिसके बावजूद वित्तीय संस्थानों को भी मध्यस्थ बनाया जा सकता है. ये एक ऐसा मॉडल है जिसकी कुछ देश अभी जांच कर रहे हैं और भारत में भी इसकी जरूरत हो सकती है. 

इन देशों ने अपनाया CBDC
बहामास 2020 में अपना CBDC, सैंड डॉलर लॉन्च करने वाला पहला देश बन गया, इसके बाद 2021 में नाइजीरिया (eNaira) का स्थान रहा.  पूर्वी कैरेबियाई और चीन ने अपने सीबीडीसी के पायलट संस्करण लॉन्च किए हैं. इन देशों में, मुद्रा को डिजिटल वॉलेट में संग्रहीत किया जाता है, और केंद्रीय बैंकों ने एक टियर-वॉलेट प्रणाली को अपनाया है. इसका मतलब है कि कम मूल्य के लेनदेन को गुमनाम कर दिया जाएगा और सख्त केवाईसी मानदंडों के अनुपालन की आवश्यकता नहीं होगी. लेकिन एक बार जब भुगतान एक निश्चित सीमा को पार कर जाता है, तो लेनदेन को ट्रैक किया जा सकता है. यहां दैनिक लेनदेन पर भी कुछ सीमाएं हैं जो मनी लॉन्ड्रिंग और काले धन पर रोक लगाने के लिए किया जाता है.

भारत के लिए क्या हैं उम्मीदें
भारत के मामले में, अभी के लिए, डिजिटल रुपये के पूर्ण लॉन्च के लिए जाने से पहले, आरबीआई से एक व्हाइट पेपर जारी करने और चरणबद्ध तरीके से पायलट प्रोजेक्ट लॉन्च करने की उम्मीद की जा रही है. आरबीआई बैंकिंग प्रणाली के लिए या दो देशों के बीच क्रॉस-कंट्री लेनदेन के लिए सीबीडीसी के उपयोग की भी खोज कर रहा है, जिसे थोक सीबीडीसी भी कहा जाता है. यह लेन-देन निपटान समय को कम करने में मदद कर सकता है क्योंकि एक बार सीबीडीसी के माध्यम से स्थानांतरण होने के बाद, यह तत्काल होता है और लेन-देन पूरा होने के लिए केंद्रीय बैंकों के परिचालन घंटों का इंतजार नहीं करना पड़ता है. लेकिन इसके लिए देशों को समान प्लेटफॉर्म पर काम करना होगा, जो एक समय लेने वाली प्रक्रिया हो सकती है.

आरबीआई गवर्नर ने क्या कहा है
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने फरवरी में कहा था कि केंद्रीय बैंक सतर्क रुख अपना रहा है. भारत ने क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाने या उन्हें अपनाने के लिए कानून लाने की अपनी योजना में इंतजार करो और देखो का नजरिया अपनाया है. साथ ही देश का केंद्रीय बैंक सीबीडीसी के मामले में अन्य देशों के डेवलपमेंट पर नजर रखना जारी रखेगा.

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