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चौधराहट साबित करने को अमेरिका रखेगा वीजा और करेंसी पर रुख सख्त, भारत पर नहीं पड़ेगा प्रभाव

अमेरिका का जो मूल तेवर है, कहीं ना कहीं वह विश्व राजनीति में अपना चौधराहट रखना चाहता है. ट्रंप यह चाहते हैं कि उनकी चौधराहट भी बनी रहे लेकिन उसको बरकरार रखने के लिए बोझ भी उनके ऊपर ना पड़े.

ट्रंप ने दूसरी बार सत्ता में आते ही ताबड़तोड़ कई तरह की नीतिगत परिवर्तन की घोषणाएं कीं है, और उन्होंने उन पर काम करना शुरू कर दिया है. उनका पूरा कैंपेनिंग भी इसी पर आधारित था कि अमेरिका को उनको दोबारा से ग्रेट बनाना है. मैं पहले भी कई बार बोल चुका हूं कि पूरे विश्व में कहीं ना कहीं डी-ग्लोबलाइज़ेशन का फेज चल रहा है. भूमंडलीकरण के पॉज़िटिव और नेगेटिव परिणाम हर किसी को भुगतान पड़े, लेकिन पश्चिमी देशों में जिस तरह की इमिग्रेशन पॉलिसी थी, कहीं ना कहीं अमेरिका ने बहुत सालों से सपनों को बेचा भी है कि अमेरिका ही एक ऐसा मुल्क है या अमेरिका की धरती ऐसी है कि यहीं पर सारा सुख है, उन्नति-तरक्की वहीं पर है.

अमेरिका में प्रवासी खासी संख्या में 

पूरे विश्व से अच्छे-खासे लोग अमेरिका में जाते रहे हैं. इसकी वजह से अमेरिका में बाहरी लोग ज्यादा सांख्य में पहुंचे हैं, इससे  उनको अपने कल्चर को लेकर चिताएं हो रही है, डेमोग्राफिक चेंज हो रहा है, यहां तक ​​कि मास कन्वर्जन हो रहा है, अमेरिका के समाज में भी इस्लामी कट्टरता के कदम बढ़ते जा रहे हैं. कई लोग इस्लाम धर्म कबूल कर रहे हैं, यहां तक ​​कि जो अमेरिका के खुद के अपने लोग हैं उनको नौकरियां नहीं मिल पा रही है, क्योंकि उनका सामना पड़ रहा है पूरे विश्व के टैलेंट के साथ. यही एक वजह है कि ट्रंप ने आते ही जो-जो चिताएं अपने चुनाव प्रचार के दौरान व्यक्त कीं थी, अब उन चिंताओं से अब वो मुक्ति पाने की कोशिश कर रहे हैं.

भारत के साथ ट्रंप के संबंध 

पिछले टर्म में जब ट्रंप आए थे तो संबंध अच्छे-खासे चले बल्कि मोदी और ट्रंप के बीच में एक अच्छी साझेदारी- समझदारी नजर आती है और इसी वजह से भी उन्होंने कैंपेन किया था तो गाहे-बगाहे नरेंद्र मोदी स्टाइल ऑफ कैंपेन को भी उन्होंने अमेरिका के चुनावों में उतारा. ट्रंप कई बार मोदी की तारीख भी कर चुके हैं और शायद इसी का नतीजा है कि नरेंद्र मोदी 13 फरवरी को अमेरिका पहुंचेंगे और बहुत सारे विषयों पर चर्चा करते हुए भारत और अमेरिका के संबंधों के नये आयाम और दिशा पर भी चर्चा करेंगे. यहां ध्यान देने योग्य यह बात है कि उन्होंने आते ही चाहे रूस हो, चीन हो, कनाडा, मैक्सिको पर टैरिफ लादे,  लेकिन कनाडा के निवेदन पर उन्होंने उस टैरिफ को 30 दिन का पॉज़ भी दिया गया है. चीन ने रिवर्स में अमेरिका के ऊपर भी टैरिफ लादा है. तो कहीं ना कहीं पूरी विश्व में ट्रेड वॉर जैसा सिचुएशन बन गया है. घुसपैठ और अवैध आप्रवासियों को लेकर भी ट्रंप के अपने अलग सोचने का तरीका है.

भारतीयों को वापस भेजा, जो अवैध तरीके से पहुंचे 

आज यानी बुधवार 5 फरवरी को ही करीब 110 भारतीय अमृतसार हवाई अड्डे पर लैंड हुए हैं, जो अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचे थे. अमेरिका ने अपने वायु सेना के जहाज में बैठाकर उनको भेजा है. भारत का ये मानना है कि जो भी अवैध रूप से वहां जाते हैं, उनका कागज अगर सही नहीं है या वीजा समाप्त हो गया है तो उनको भारत आना चाहिए. इसी तरह वजह से भी भारत ने भी बिना लाग लपेट के इन भारतीयों को वापस स्वीकारा भी है, क्योंकि भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र है और मेरे ख्याल से यही एक कारण है जिसकी वजह से दिखता है कि भारत और अमेरिका के बीच एक अच्छी साझेदारी और समझदारी चल रही है. लगता है कि मोदी के दौरे के बाद जो भी कयास लगाए जा रहे हैं कि संबंध अच्छे होंगे, बिगड़ेंगे या टैरिफ लग जाएगा या नए वीजा प्रावधान की वजह से भारतीयों का अमेरिका जाना मुश्किल हो जाएगा, ऐसा दरअसल नहीं होने वाला है. एक ऐसा बीच का रास्ता निकलेगा जिससे ना तो अमेरिका को ज्यादा नुकसान होगा और ना ही भारत को होगा.

भारतीय हैं कानून के पालनकर्ता

भारतीय काफी हद तक कानूनी प्रवासन के जरिए ही दूसरे देशों में जाते हैं. वहां टैलेंटेड भारतीय जाते हैं जो मेहनतकश हैं और भारतीय प्रवासी भारतीयों ने अमेरिका की अर्थव्यवस्था, उनकी साइंस टेक्नोलॉजी और उनके समाज जीवन में बहुत परिवर्तन किए हैं और पॉज़िटिव रोल निभा रहे हैं. इसी वजह से उनकी कैबिनेट में महत्वपूर्ण पदों पर भारतीय मूल के लोग नजर आते हैं. भारतीयों को लेकर ट्रंप का थोड़ा पॉज़िटिव रवैया रहेगा. वीजा प्रोविजन वो सख्त करेंगे लेकिन विश्व के अन्य मुल्कों के साथ कंपेयर करेंगे तो हम बेहतर नजर आएंगे. भारत का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है. एक समय था जब यहूदियों का बोलबाला हुआ करता था अमेरिका में. चाहे वह मामला किसी का हो, अर्थव्यवस्था का, विज्ञान प्रौद्योगिकी का, डॉक्टरों का या किसी औऱ का, लेकिन धीरे-धीरे प्रवासी भारतीयों ने उनको रिप्लेस किया है और एक सकारात्मक योगदान अमेरिका को आगे ले जाने में, उनको फिर से ग्रेट बनाने में भारतीयों का भी रहा है.

अमेरिका बना रहेगा चौधरी

अमेरिका का जो मूल तेवर है, कहीं ना कहीं वह विश्व राजनीति में अपना चौधराहट रखना चाहता है. ट्रंप ने जिस प्रकार का रवैया अख्तियार किया है, उससे लगता तो यही है कि ट्रंप यह चाहते हैं कि उनकी चौधराहट भी बनी रहे लेकिन उसको बरकरार रखने के लिए बोझ भी उनके ऊपर ना पड़े. हम दूसरों के राष्ट्रीय हित को नहीं साधेंगे, हमें सिर्फ अपने राष्ट्रीय हित को साधना है- ऐसा ट्रंप का मानना है, इसलिए उन्होंने कई बार बोला है कि भाई रूस और यूक्रेन का वॉर है वह हमारा नहीं है. यूरोप के चंद देशों का हो सकता है, वो पोलैंड का हो सकता है, लेकिन वह अमेरिका का नहीं है.

वो चाहते हैं कि वॉर रुक जाए लेकिन मुझे लगता है कि अगर सही में वह चाहते हैं कि युद्ध रुक जाए तो तुरंत उनको यूक्रेन को दी जाने वाली हर प्रकार की आर्थिक, सामरिक, औपचारिक या मौलिक जो मदद है वह बंद कर देनी चाहिए, हथियारों की मदद बंद करनी चाहिए. उसके बाद लगता है यूक्रेन हाथ खड़े कर देगा और युद्ध समाप्त होगा. अमेरिका यह भी चाहता है कि वह चीन को अपने हदों में रखे अगर चीन को अपने हदों में रखना है तो भारत को उनको साथ लेकर चलना ही पड़ेगा, क्योंकि पिछले दो दशकों से भी ज्यादा ऐसा हमने देखा है कि अमेरिका को यह पता है कि अगर वह चीन को अपनी हदों में रखना चाहता है तो उसके लिए भारत एक महत्तवपूर्ण कड़ी है तो भारत को साथ ले जाना चाहिए.

भारत के साथ अच्छे संबंध बनाना अमेरिका के लिए भी अनिवार्य है. भारत के लिए भी अनिवार्य है कि वो अमेरिका के साथ कदम से कदम मिलाकर चलें लेकिन भारत पिछले 10 वर्षों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बहुत आगे बढ़ आया है. हमने पूरी कोशिश की है कि भारत सिर्फ और सिर्फ अपना राष्ट्रीय हित साधे, वह अमेरिका जैसे बड़े देश के हाथों की कठपुतली ना बने और यहीं चीज ट्रंप ने भी पहचानी है और कई बार  बार बोला है कि मोदी एक कठिन वार्ताकार हैं, मोदी भारत के बॉस हैं. एक नया भारत पिछले 10 वर्षों में हमें देखने को मिला है तो मुझे लगता है भारत कोई कठपुतली राष्ट्र ना बनकर, वो राष्ट्र है जो बड़ी ताकतों की आंखों में आंखें डाल कर अपने राष्ट्रीय हितों की बात करता है और अपने हितों को साधता है.

डॉक्टर अमित सिंह ने जेएनयू से इंटरनेशनल रिलेशन में पीएचडी करने के बाद चार साल भारतीय नौसेना के थिंक टैंक के साथ काम किया. फिलहाल, वह JNU में अंतरराष्ट्रीय संबंधों एवं राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों को पढ़ाते हैं और एसोसिएट प्रोफेसर हैं.
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