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PM मोदी के चर्च जाने के क्या हैं सियासी मायने? बीजेपी की कौन सी रणनीति की तरफ करता है इशारा

PM Modi Church Visit: पीएम मोदी ने खुद चर्च की अपनी तस्वीरों को शेयर किया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, आज ईस्टर के खास मौके पर मुझे दिल्ली में सेक्रेड कैथेड्रल कैथोलिक चर्च पहुंचने का मौका मिला.

PM Modi Church Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई भी दौरा यूं ही नहीं होता है, यानी उनके हर दौरे के काफी अहम और अलग मायने होते हैं. अब पीएम मोदी ईस्टर के मौके पर अचानक दिल्ली के सेक्रेड कैथेड्रल कैथोलिक चर्च पहुंच गए, उन्हें चर्च में देख हर कोई हैरान था. पीएम मोदी ने चर्च में पहुंचकर ईस्टर की प्रेयर में भी हिस्सा लिया. इस मौके पर चर्च के फादर ने उनका स्वागत किया और कहा कि पहली बार कोई प्रधानमंत्री इस चर्च में पहुंचा है. पीएम के चर्च जाने को लेकर खूब चर्चा हो रही है, इसके कई सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. आइए समझते हैं कि हिंदुत्व के सबसे बड़े ब्रैंड पीएम मोदी के चर्च जाने के क्या मायने हैं. 

रविवार 9 जनवरी को ईस्टर के मौके पर पीएम मोदी सेक्रेड कैथेड्रल कैथोलिक चर्च पहुंचे, यहां उन्होंने मोमबत्ती जलाकर प्रेयर की और इसके बाद पादरियों से बातचीत भी की. उनके दौरे को लेकर चर्च के फादर अनिल खुटो ने कहा, "ये हमारे लिए एक खुशी का पल है क्योंकि पहली बार कोई प्रधानमंत्री यहां चर्च में आए हैं. पीएम ने यहां प्रार्थना की, जिसके बाद हमने भी उन्हें उपहार दिया. प्रार्थना के बाद पीएम मोदी ने चर्च में पौधा भी लगाया." 

पीएम मोदी ने किए ट्वीट
पीएम मोदी ने खुद एक के बाद एक कई ट्वीट कर चर्च की अपनी तस्वीरों और वीडियो को भी शेयर किया. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "आज ईस्टर के खास मौके पर मुझे दिल्ली में सेक्रेड कैथेड्रल कैथोलिक चर्च पहुंचने का मौका मिला. मैंने यहां क्रिश्चियन समुदाय के धार्मिक गुरुओं से भी मुलाकात की." अपने दूसरे ट्वीट में पीएम मोदी ने कुछ और तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा - "ये दिन समाज में और अधिक खुशी और सद्भाव की कामना करता है." इतना ही नहीं इसके बाद पीएम मोदी ने ईस्टर सेलिब्रेशन का पूरा वीडियो भी अपने अकाउंट से शेयर किया. 

चर्च में प्रार्थना के क्या हैं सियासी मायने?
अब जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया था कि प्रधानमंत्री के हर दौरे के अलग मायने होते हैं. यानी पीएम के ऐसे चर्च पहुंचने के पीछे भी बीजेपी की एक खास रणनीति हो सकती है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी पूरे देश में खुद को एक ऐसी पार्टी के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहती है, जो हर वर्ग से जुड़ी हो. बीजेपी के मिशन साउथ के लिए ये काफी जरूरी है. हाल ही में नागालैंड और मेघालय जैसे क्रिश्चियन बहुल राज्यों में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया, जिसे अब केरल जैसे बाकी राज्यों में भुनाने की कोशिश की जा रही है. 

राजनीतिक मामलों के जानकार शिवाजी सरकार से हमने इस चर्च पॉलिटिक्स को समझने की कोशिश की. पीएम मोदी के चर्च दौरे पर उन्होंने कहा, "ये आम बात है कि कोई भी पॉलिटिकल पार्टी अपने प्रसार को बढ़ाने की कोशिश करती रहती है. अभी तक माना जाता था कि बीजेपी हिंदुओं के वोट पर जीतती आई है, इसे बीजेपी बदलना चाहती है. बीजेपी में चुनाव को लेकर लगातार तैयारी रहती है, हर चीज इससे जुड़ी होती है. बीजेपी पिछले करीब 9 साल से लगातार चुनावी मोड में ही काम कर रही है. पार्टी का कैडर लगातार वोटर्स से जुड़ा रहता है. 

केरल चुनाव पर भी नजर
शिवाजी सरकार ने आगे कहा, "बीजेपी को ईसाइयों को वोट की जरूरत है. हालांकि ये सवाल जरूर उठ सकता है कि पहले ईसाईयों की याद क्यों नहीं आई. आजकल का राजनीतिक माहौल ऐसा है जिसमें एक ही वर्ग के वोट से काम नहीं चलेगा, इसीलिए बीजेपी ने बाकी वर्गों की तरफ देखना शुरू किया है. केरल में बीजेपी कई सालों से कोशिश कर रही है, जहां एक सीट मिलना भी पार्टी के लिए मुश्किल होता है. तमाम कोशिशों के बावजूद केरल के लोग बीजेपी को वोट नहीं देते हैं. इसके लिए संघ भी लगातार कोशिश करता है, एग्रेसिव कैंपेनिंग होती है. उसके बाद भी केरल में बीजेपी को सफलता नहीं मिल पाती है. केरल के वोटर्स को देखें तो यहां ईसाइयों की संख्या काफी ज्यादा है. यहां कई तरह के ईसाई रहते हैं. हालांकि ये सोचना गलत होगा कि दिल्ली के एक चर्च में चले जाने से सभी ईसाईयों को साध लिया जाएगा."

अनिल एंटनी की हुई थी एंट्री
हाल ही में कांग्रेस के दिग्गज नेता और केरल में काफी पकड़ रखने वाले एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी को बीजेपी ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया. जिसके बाद अब केरल में उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. कहा जा रहा है कि केरल चुनाव के नजदीक अनिल एंटनी कई अल्पसंख्यक नेताओं को अपने साथ जोड़ सकते हैं, जो राज्य में बीजेपी की एंट्री के दरवाजे को खोल सकता है. 

क्या कहते हैं आंकड़े
2011 की जनगणना के मुताबिक केरल में सबसे ज्यादा जनसंख्या हिंदुओं (54.73%) की थी. इसके बाद 26.6 फीसदी मुस्लिम और फिर 18.4 क्रिश्चियन पॉपुलेशन थी. बताया जाता है कि ईसाई समुदाय के वोट राज्य की कुल 140 विधानसभा सीटों में से करीब 33 से ज्यादा सीटों पर असर डालते हैं. ईसीईयों की सबसे ज्यादा जनसंख्या साउथ इंडिया में रहती है, इसके अलावा नॉर्थ-ईस्ट के राज्यों में भी ईसाई समुदाय के लोग रहते हैं. देश में कुल जनसंख्या के 2.4 फीसदी लोग इस समुदाय से आते हैं. 

बता दें कि इससे पहले बीजेपी ने मुस्लिमों को साधने की कोशिश की थी. बीजेपी नेताओं का दावा है कि पसमांदा मुस्लिमों में उनकी पैठ बनी है और उनका वोट परसेंट बढ़ा है. बीजेपी इसी तरह खुद को हर धर्म से जुड़ी पार्टी बताने की कोशिश कर रही है. पीएम मोदी का चर्च दौरा भी इसी कोशिश का एक नतीजा है. पीएम के चर्च दौरे को साउथ के राज्यों में होने वाले चुनावों और आने वाले लोकसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है. हालांकि नतीजों से ही ये साफ होगा कि बीजेपी ईसाई समुदाय के वोट बैंक में कितनी घुसपैठ कर पाती है. 

ये भी पढ़ें - कर्नाटक में विपक्ष के लिए संजीवनी बन सकता है अमूल-नंदिनी विवाद, चुनाव से पहले BJP के लिए बड़ी मुसीबत

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