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Explained : आखिर कैसे मुश्किल होगा मज़दूर के लिए यूपी में काम करना?

कोरोना खत्म होने के बाद भी मज़दूरों की ज़िंदगी से परेशानी कम नहीं होने वाली. मध्य प्रदेश के बाद अब उत्तर प्रदेश सरकार ने भी कुछ बड़े श्रम कानूनों को अगले तीन साल के लिए सस्पेंड कर दिया है, जिससे कंपनियों के हाथ में ज्यादा ताकत आ जाएगी.

वैसे तो कोरोना ने हर खास और आम आदमी की ज़िंदगी पर असर डाला है. लेकिन अगर सबसे बुरा असर किसी पर पड़ा है तो वो हैं मज़दूर. अपने-अपने घरों को छोड़कर दूसरे राज्यों में कमाने गए ये मज़दूर अब अपने घर लौट रहे हैं ताकि ज़िंदा रह सकें. लेकिन यहां लौटने के बाद भी उनकी ज़िंदगी बेहद ही मुश्किल दिखाई देती है. और तिसपर भी अगर ये मज़दूर उत्तर प्रदेश के हैं, तो उनके लिए काम करना अब और भी मुश्किल भरा होने जा रहा है.

इसकी वजह है उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का एक फैसला, जिसके तहत उत्तर प्रदेश में चल रहे अधिकांश श्रम कानूनों को अगले तीन साल तक के लिए सस्पेंड कर दिया गया है. पूरे उत्तर प्रदेश में करीब 15 लाख दिहाड़़ी मज़दूर हैं वहीं 20.37 लाख रजिस्टर्ड निर्माण श्रमिक हैं. करीब 10 लाख से भी ज्यादा मज़दूर उत्तर प्रदेश से बाहर के राज्यों में हैं. और इस कोरोना की वजह से ये सब मज़दूर अब उत्तर प्रदेश में लौट रहे हैं. कुछ लौट आए हैं और कुछ आने वाले कुछ दिनों में लौटकर आ जाएंगे.

कोरोना के बाद जब लॉकडाउन खत्म होगा तो सबसे बड़ी चुनौती होगी इन मज़दूरों को रोजगार देने की. पहले से चल रहे उद्योगों में पहले से काम कर रहे मज़दूर तो लौट जाएंगे, लेकिन बाहर के राज्यों से जो मज़दूर लौटे हैं, उनमें इतनी दहशत भरी है कि वो अपना घर छोड़ने से पहले कम से कम 100 बार सोचेंगे. और यहीं पर आती है राज्य सरकार की जिम्मेदारी कि इन्हें काम दिया जाए. इसके लिए ज़रूरत होगी पूंजी की, जो निवेशक लगाएगा. और निवेशक पूंजी तब लगाएगा, जब उसे या तो सहूलियतें ज्यादा मिलेंगी या फिर उसे सस्ता श्रम मिलेगा.

सहूलियतें हर राज्य सरकारें देती हैं तो उत्तर प्रदेश सरकार भी देगी. और रही बात सस्ते श्रम की तो इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 8 मई, 2020 को एक अध्यादेश जारी किया गया है. इस अध्यादेश के मुताबिक कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी करने वालों को बिना नोटिस हटाने, नौकरी के दौरान कोई हादसा होने पर मुआवजा देने और तय वक्त पर सैलरी देने के अलावा मज़दूरों के और जो भी अधिकार हैं, वो अगले तीन साल तक के लिए सस्पेंड रहेंगे.

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से इसके लिए बाकायदा बयान भी जारी किया गया है. इस बयान में कहा गया है कि कोरोना की वजह से चल रहे लॉकडाउन में कारोबारी गतिविधियां ठप पड़ गई हैं, जिससे कंपनियों और मज़दूरों दोनों के हित प्रभावित हो रहे हैं. इसलिए दोनों के हितों की रक्षा के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में उत्तर प्रदेश में कुछ श्रम कानूनों से अस्थाई छूट का अध्यादेश 2020 पास किया गया है, जिसे कानूनी जामा पहनाने के लिए अब राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के पास भेजा जाएगा.

कैबिनेट से पारित इस अध्यादेश में साफ है कि श्रम विभाग के 40 तरह से अधिक के कानूनों में 1976 रा बंधुआ मज़दूर अधिनियम, 1923 का कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, बाल मज़दूरी अधिनियम, मातृत्व अधिनियम और समान पारिश्रमिक अधिनियम पहले की ही तरह बरकरार रहेगा. इसके अलावा मज़दूरी भुगतान अधिनियम की धारा 5 भी पहले की ही तरह काम करेगी, जिसके तहत 15,000 रुपये महीने से कम आमदनी वाले के वेतन में कोई कटौती नहीं होगी.

ये तय है कि राज्यपाल आनंदी बेन पटेल अध्यादेश के इन प्रावधानों को अपनी मंजूरी दे देंगी. लेकिन इसके बाद. इसके बाद किसी मज़दूर से कितने घंटे काम लेना है, ये कंपनियां तय करेंगी. मज़दूरों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं दी जाएंगी या नहीं, उनके परिवार के लिए कंपनी कुछ व्यवस्था करेगी या नहीं, इन सबको तय करने का अधिकार कंपनियों के पास आ जाएगा. काम करने के घंटे और ठेके पर काम करने वाले मज़दूरों के काम के तरीके तय करने की जिम्मेदारी कंपनी की होगी.

किसी मज़दूर को कब काम पर रखना है और कब उसे नौकरी से निकाल देना है, इसका पूरा अधिकार कंपनी के पास होगा. मज़दूर के पास इस बात का भी अधिकार नहीं होगा कि वो मैनेजमैंट से सवाल कर सके कि उसे नौकरी से निकाला क्यों जा रहा है.  और कोरोना से लड़कर, दूसरे राज्यों से हजारों किलोमीटर दूर पैदल चलकर जो मज़दूर अपने घरों को वापस लौटें हैं, वो मज़बूरी में इन्हीं शर्तों के साथ काम करने को राजी भी हो जाएंगे. और फिर उनकी आंखों में जो एक बेहतर कल का सपना था, वो सपना फिर से आने वाले कल पर टल जाएगा.

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