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Election 2024: कौशांबी से अमित शाह ने की BJP के मिशन यूपी की शुरुआत, दलित-मुस्लिम समीकरण को साधने की कोशिश

Election 2024: विपक्षी दलों पर हमला बोलते हुए अमित शाह ने कहा, मोदी ने परिवारवादी पार्टियों को भी हराया. अब इनका परिवारवाद खतरे में है. लोकतंत्र को जातिवाद और परिवारवाद में जकड़कर रखा गया.

UP Dalit-Muslim Equation: कहते हैं कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर गुजरता है. यही वजह है कि बीजेपी ने अभी से यूपी को साधने की कोशिश शुरू कर दी है. साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले गृहमंत्री अमित शाह यूपी के मैदान में उतर चुके हैं. मिशन यूपी की शुरुआत उन्होंने पूर्वांचल से की है. अमित शाह ने कौशांबी में कौशांबी महोत्सव का उद्घाटन किया, जहां उन्होंने कांग्रेस और तमाम विपक्षी दलों को जमकर आड़े हाथों लिया. कुल मिलाकर बीजेपी यूपी के दलित वोटों पर कब्जा करना चाहती है, सपा और बसपा से छिटक रहे वोट बैंक को भुनाने की पूरी कोशिश शुरू हो चुकी है. आइए समझते हैं कैसे अमित शाह ने मोर्चाबंदी शुरू कर दी है. 

मिशन यूपी की शुरुआत में बरसे शाह
कौशांबी महोत्सव को दलितों के लिए ही समर्पित माना जा रहा है. अमित शाह ने यहां दलित सम्मेलन को भी संबोधित किया. जिसमें उन्होंने 2024 को नजर में रखते हुए विपक्षी दलों को जमकर घेरा. शाह ने अपने संबोधन में कहा, 2024 में भी 300 का आंकड़ा बीजेपी पार करेगी. मैं यहां मोदी को फिर पीएम बनाने का संकल्प लेकर आया हूं. विपक्षी पार्टियों पर हमला बोलते हुए शाह ने कहा, मोदी ने परिवारवादी पार्टियों को भी हराया. अब इनका परिवारवाद खतरे में है. लोकतंत्र को जातिवाद और परिवारवाद में जकड़कर रखा गया. इस दौरान शाह ने राहुल गांधी से दो-दो हाथ करने की भी बात कही. उन्होंने कहा कि राहुल ने विदेश में देश का अपमान किया. मोदी ने SP, BSP, कांग्रेस का सूपड़ा साफ किया. 
 
इस दौरान अमित शाह ने राम मंदिर को एक बार फिर मुद्दा बनाते हुए इसका जिक्र किया. उन्होंने कहा, मंदिर बनने में कांग्रेस, एसपी, बीएसपी ने रोड़े अटकाए, लेकिन अब जल्द ही अयोध्या के मंदिर में भगवान राम विराजमान होंगे. 

कौशांबी में कमजोर है बीजेपी
उत्तर प्रदेश की कौशांबी लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की पांच सीटें आती हैं, जिनके नाम बाबागंज, मंझनपुर, कुंडा, चायल और सिराथू हैं. खास बात ये है कि पिछले यानी 2022 विधानसभा चुनावों में बीजेपी इनमें से एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. यहां तक कि बीजेपी के दलित फेस और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी सिराथू सीट से हार गए. यही वजह है कि अब बीजेपी का पूरा फोकस इन दलित बहुल इलाकों पर है. हालांकि अखिलेश यादव भी मायावती की बसपा के खिसकते वोट को अपनी झोली में डालने की पूरी कोशिश में हैं. इसके लिए सपा 'मिशन कांशीराम' के जरिए दलित वोटों को साधने में जुटी है. यानी बसपा से छिटकते वोट को बीजेपी और सपा दोनों ही अपने कब्जे में लेने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. 

दलित-मुस्लिम कॉम्बिनेशन साधने में जुटे दल
अगले साल यानी 2024 के लिए बीजेपी समेत तमाम दल पूर्वांचल में दलित-मुस्लिम कॉम्बिनेशन को साधने में जुटे हैं. क्योंकि कौशांबी दलित बहुल इलाका है और इसे एक जमाने में बसपा का गढ़ माना जाता था, इसीलिए अब बीजेपी और सपा का पूरा फोकस यहां है. इस पूरे इलाके में जिस भी पार्टी ने दलित और मुस्लिम कॉम्बिनेशन को साध लिया, उसकी जीत लगभग तय है. बीजेपी का कौशांबी महोत्सव और दलित महोत्सव इसी समीकरण को साधने की एक पहल है. वहीं सपा की अगर बात करें तो अखिलेश यादव ने बसपा से सपा में आए इंद्रजीत सरोज को इसकी जिम्मेदारी दी है, जिन्हें कौशांबी में सपा की जीत का हीरो बताया गया था. अखिलेश यादव अब विधानसभा चुनाव के नतीजों को लोकसभा में तब्दील करने में जुटे हैं. 

दलित वोटों को सपा की तरफ जाने से रोकने के लिए बीजेपी ने जमीनी स्तर पर रणनीति भी तैयार कर ली है. इसके लिए पार्टी कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को याद दिलाएंगे कि कैसे गेस्ट हाउस कांड में बीजेपी के लोगों ने ही मायावती की जान बचाई थी. 

दलित के साथ मुस्लिम वोट भी पूर्वांचल में काफ अहम है. इसके लिए भी बीजेपी ने बूथ स्तर की तैयारी शुरू कर दी है. बीजेपी के बड़े नेताओं का पूर्वांचल दौरा शुरू हो चुका है, वहीं पीएम मोदी के मन की बात का उर्दू संस्करण भी छपेगा, जिसे मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर बांटा जाएगा. इसकी प्रतियां पूर्वांचल में आजमगढ़, गाजीपुर जैसी मुस्लिम बेल्ट में बांटी जाएंगीं. 

पिछले चुनाव का क्या था हाल
अब यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से बीजेपी इस बार भी ज्यादा से ज्यादा सीटें अपनी झोली में डालना चाहती है, जो केंद्र की सत्ता में आने में उसकी बड़ी मदद कर सकती हैं. पिछले चुनाव की अगर बात करें तो 2019 में यूपी की कुल 80 सीटों में से बीजेपी ने 62 सीटों पर रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी. वहीं बसपा को 10 और सपा को 5 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस महज एक सीट पर सिमटकर रह गई थी. 

बता दें कि यूपी में करीब 21 फीसदी दलित रहते हैं. जिसमें सबसे ज्यादा संख्या जाटवों की है, जो करीब 55 फीसदी है. वहीं करीब 45 फीसदी गैर जाटव हैं. यही वजह है कि बीजेपी और सपा की नजर इस वोट बैंक पर टिकी हैं. यूपी में कास्ट समीकरण की बात करें तो सवर्ण वोट 19 फीसदी, ओबीसी 41 फीसदी, दलित करीब 21 फीसदी और मुस्लिम वोट 19 फीसदी हैं.

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