By: ABP News Bureau | Updated at : 13 Aug 2016 03:14 PM (IST)
नई दिल्ली: आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'मोहनजो दारो' को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. पहले फिल्म के नाम को लेकर विवाद हुआ और अब फिल्म के तथ्यों को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं. हाल ही में न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को दिए इंटरव्यू में आशूतोष ने बताया, 'फिल्म पूर्ण रूप से पुरातात्विक खोज पर आधारित है.' लेकिन सिंधु सभ्यता पर किताब लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी का मानना है कि फिल्म इस सभ्यता की उलटी छवि पेश करती है.
ओम थानवी ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है, 'फ़िल्म की सबसे बड़ी ख़ामी यह है कि वह हमारी महान सभ्यता की ग़लत या भ्रामक ही नहीं, नितांत उलटी छवि पेश करती है. सिंधु सभ्यता के बारे में कमोबेश सभी विशेषज्ञ अध्येता (Expert Fellows) मानते आए हैं कि वह शांतिपरक सभ्यता थी. खुदाई में अकेले मुअन/मोहनजोदड़ो से जो पचास हज़ार चीज़ें प्राप्त हुईं, उनमें एक भी हथियार नहीं है.'
उन्होनें आगे लिखा, 'फ़िल्म में घनघोर हिंसा है, हत्याएं हैं, बांसों पर टंगी लाशें हैं, राजपाट के षड्यंत्र है, तलवारों की तस्करी है, तलवारों का इस्तेमाल भी है. और तो और संसार की तीन प्राचीन सभ्यताओं में सबसे उदात्त सिंधु/हड़प्पा सभ्यता में परदे पर नरभक्षी भी हैं. मैंने मुअनजोदड़ो में वहां का संग्रहालय भी देखा है. फ़िल्म में उन चीज़ों (सामान, वाद्य आदि) की छाया कहीं दिखाई न दी.'
इस तरह से ओम थानवी ने फिल्म 'मोहनजो दारो' को इतिहास की पारिपाटी में पूरी तरह खारिज कर दिया है. अपने लंबे फेसबुक पोस्ट में उन्होनें फिल्म में कई खामियां गिनवाई हैं. उन्होनें आशूतोष गोवारिकर को कटघरे में खड़ा करते हुए लिखा है कि निर्देशक ने इतिहास के साथ न्याय करने में असफल रहे हैं.

ओम थानवी इससे पहले फिल्म के नाम को लेकर भी एक पोस्ट लिख चुके हैं. उनके मुताबिक फिल्म का नाम 'मोहनजो दारो' गलत है और सही नाम 'मुअनजोदड़ो' होना चाहिए. इसके लिए तर्क देते हुए उन्होनें लिखा, ''दारो' ग़लत है और 'दाड़ो' भी. सही शब्द दड़ो है, जिसका अर्थ होता है टीला. मोहन/मोहेन भी सही नहीं हैं. मोहन कृष्ण का नाम है, जिनका जन्म (अगर कभी हुआ तो) सिंधु सभ्यता के बाद हुआ. हालांकि सभ्यता के अपने दौर में उस शहर का क्या नाम रहा होगा, कोई नहीं जानता. पर कालांतर में उसका नाम मुअनजोदड़ो (मुअन-जो-दड़ो/'मुआ' यानी मरा हुआ/मुअन-जो-दड़ो माने मुर्दों का टीला) पड़ा, अब तक वही है. बहरहाल, मैंने सिंध (पाकिस्तान) की यात्रा में पाया कि "दारो" जैसा उच्चारण वहा. कहीं है ही नहीं; इसे विशुद्ध रूप से हमारे बॉलीवुड का आविष्कार समझिए.'
वहीं फिल्म के डायरेक्टर आशूतोष गोवारिकर के हाल ही में दिए गए साक्षात्कारों को देखा जाए तो उन्होनें साफ किया है कि फिल्म भले ही पुरातात्विक खोज पर आधारित है लेकिन इसमें ज्यादा कुछ करने को नहीं था. गोवारिकर के मुताबिक स्कूल की किताबों में 'मोहनजो दारो' पर सिर्फ एक पैराग्राफ का जिक्र होता था और इस पर कहानी बनाना काफी रोचक था. हालांकि इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में गोवारिकर ने यह स्वीकार किया है कि फिल्म को बनाने के लिए काफी रिसर्च किया है और इसके लिए मशहूर इतिहासकारों और पुरातत्वविदों की मदद भी ली है.
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