नई दिल्ली: फिल्म TE3N (तीन) बॉक्स ऑफिस पर रिलीज हो गई है. इस सस्पेंस थ्रिलर फिल्म का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार था. इस फिल्म में मेगा स्टार अमिताभ बच्चन, विद्या बालन और नसीरूद्दीन शाह मुख्य भूमिका में हैं. आइए अब आपको बताते हैं कि इस फिल्म के बारे में समीक्षकों ने क्या लिखा है-
इंडियन एक्स्प्रेस की क्रिटिक्स शुभा गुप्ता डेढ़ स्टार देते हुए लिखती हैं, ‘इस तरह की डार्क स्टोरी पर एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. किस तरह से एक छोटे बच्चे की मौत किसी की जिंदगी पर असर डाल सकती है? क्या कोई ऐसा दुख है, जिससे आप निजात नहीं पा सकते? इस दुख में अपराधबोध क्यों भूमिका निभाता है? दुख है कि TE3N एक अच्छी फिल्म बनने का मौका गंवा देती है. ऐसा इसलिए क्यों कि इसमें शानदार एक्टर्स थे. इस फिल्म के लिए कोलकाता एक परफेक्ट लोकेशन था. हावड़ा-हुगली बीच के दृश्य आपको ज्यादा बेहतरी से सुजॉय घोष की फिल्म ‘कहानी’ की याद दिला सकते हैं. फिल्म का ट्रीटमेंट लोकेशन और चरित्र, दोनों को चिंता और दुख की पर्तों में घिरा दिखाता है. फिल्म में हर कदम पर तेज बैकग्राउंड म्यूदजि का इस्तेंमाल किया गया है ताकि डार्कनेस को कम किया जा सके.'
जबकि इस फिल्म के बारे में अजय ब्रह्मात्मज बिल्कुल अलग रिव्यू लिखते हैं. दैनिक जागरण में तीन स्टार देते हुए ब्रह्मात्मज ने लिखा है, ‘‘तीन’ नई तरह की फिल्म है. रोचक प्रयोग है. यह हिंदी फिल्मों की बंधी-बंधाई परिपाटी का पालन नहीं करती. कहानी और किरदारों में नयापन है. उनके रवैए और इरादों में पैनापन है. यह बदले की कहानी नहीं है. यह इंसाफ की लड़ाई है. भारतीय समाज और हिंदी फिल्मों में इंसाफ का मतलब ‘आंख के बदले आंख निकालना’ रहा है. दर्शकों को इसमें मजा आता है. हिंदी फिल्मोंं का हीरो जब विलेन को पीटता और मारता है तो दर्शक तालियां बजाते हैं और संतुष्ट होकर सिनेमाघरों से निकलते हैं. ‘तीन’ के नायक जॉन विश्वास का सारा संघर्ष जिस इंसाफ के लिए है,उसमें बदले की भावना नहीं है. अपराध की स्वीकारोक्ति ही जॉन विश्वास के लिए काफी है. रिभु दासगुप्ता फिल्म के इस निष्कषर्ष को किसी उद्घोष की तरह पेश नहीं करते.’

फिल्म समीक्षक मयंक शेखर भी तीन स्टार देते हुए इसके बारे में लिखते हैं, ‘इस फ़िल्म में थके हारे, धूल में लथपथ, तोंद लिए, लुटे पिटे दिखते अभिताभ बच्चन, काफी कुछ उस 'कलकत्ता' से लगते हैं जैसा कि इस शहर का चरित्र इस फिल्म में दिखाया गया है. अग्रेजों की राजधानी रहे इस शहर की गलियों, गोदामों, चर्च, इमामबाड़ा और पुराने दफ़्तरों की सैर करते हुए इस फ़िल्म में कैमरा आपको दहला देने वाले पुराने और सुनसान इलाकों में ले जाता है.
हिंदी वेबसाइट सत्याग्रह ने इस फिल्म के बारे में लिखा है, "तीन जैसी फिल्में उस दर्शक-वर्ग को संतुष्ट करने के लिए बनाई जाती हैं जो अजय देवगन की ‘दृश्यम’ जैसी अमौलिक फिल्मों को ‘क्या शानदार फिल्म थी!’ कहने का आदी है. उसके लिए कहानी का ओरिजनल होना, फिल्म का हिंदी में बनने से पहले दो-चार बार दूसरी भाषाओं में ‘बेहतर’ तरीके से बन जाना मायने नहीं रखता. सिवाय बच्चन के ‘तीन’ में कुछ नहीं रखा है.’

हिंदुस्तान हिंदी में विशाल ठाकुर इस फिल्म को 2.5 स्टार देते हुए लिखते हैं, ‘कुल मिलाकर एक अच्छा प्लॉट होने के बावजूद ये फिल्म बहुत ज्यादा संभावनाएं पैदा नहीं करती. खासतौर से अपने क्लाईमैक्स से, जिसके आगे शायद आप खुद को छला हुआ सा महसूस करेंगे. क्योंकि सस्पेंस थ्रिलर में कुछ भी हो जाए बस सस्पेंस नहीं पता चलना चाहिए और इस फिल्म में आप अंत में कयास लगा ही लेंगे कि किसने ये सब और क्यों किया़.’
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