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पंजाब में पिछली बार की तुलना में इस बार कम वोटिंग, जानें क्या हैं इसके मायने
पंजाब में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बीच है. अकाली दल 2020 में बीजेपी के साथ दो दशक पुराने संबंध तोड़ने के बाद बीएसपी के साथ आ गई.
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पंजाब में रविवार को 117 सदस्यीय विधानसभा सीटों के लिए एक चरण में बहुकोणीय मुकाबले में कुल मतदान लगभग 71.95 प्रतिशत रहा. मालवा क्षेत्र में आने वाले कई जिलों में 65 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ. इस क्षेत्र में 117 में से 69 सीटें आती हैं. यहां दोआबा और माझा क्षेत्रों की तुलना में सबसे अधिक मतदान प्रतिशत देखा गया. पंजाब में 1304 उम्मीदवारों के साथ बहुकोणीय मुकाबला है, जिसमें 93 महिलाएं और दो ट्रांसजेंडर शामिल हैं.
पंजाब में पिछली बार की तुलना में इस बार कम वोटिंग
पंजाब में इस बार 2017 विधानसभा की तुलना में कम वोटिंग हुई है. 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत 77.4 फीसदी रहा था. जबकि 2002, 2007 और 2012 में मतदान प्रतिशत क्रमश: 65.14 फीसदी, 75.45 फीसदी और 78.20 फीसदी दर्ज किया गया था.
पंजाब में इस बार कम वोटिंग से जानकार अंदाजा नहीं लगा पा रहे कि इससे किस पार्टी को फायदा होगा. यहां हमेशा कांग्रेस और बीजेपी-अकाली दल गठबंधन की टक्कर होती रही है. लेकिन 2017 से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की भी एंट्री हो गई है. इस वजह से यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. वहीं बीजेपी ने भी इस बार अकाली दल का हाथ छोड़कर कांग्रेस से अलग हुए कैप्टन अमरिंदर सिंह का हाथ पकड़ लिया है. उधर अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया है. किसान आंदोलन से जुड़े कुछ नेताओं ने अपनी राजनीतिक पार्टी का गठन कर लिया है. इसी वजह से जानकार कह रहे हैं कि पंजाब में किसी एक पार्टी की लहर नजर नहीं आ रही है.
हालांकि पंजाब में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बीच है. अकाली दल साल 2020 में बीजेपी के साथ दो दशक पुराने संबंध तोड़ने के बाद बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी है. संयुक्त समाज मोर्चा के अलावा भाजपा-पंजाब लोक कांग्रेस (पीएलसी) गठबंधन भी मैदान में है, जिसमें पंजाब के किसान निकाय शामिल हैं, जिन्होंने केंद्र के अब निरस्त किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में हिस्सा लिया था.
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