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पीएम की कुर्सी से कितनी दूर खड़े हैं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी?

लोकसभा चुनाव से पहले तीन राज्यों में कांग्रेस ने जीत दर्ज की. इसके लिए राहुल गांधी की तारीफ हुई. ये जीत इस मायने भी खास थी कि क्योंकि यहां बीजेपी से सीधा मुकाबला था. अब देशभर में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं. राहुल गांधी के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है और उनके सामने बड़ी चुनौती भी है.

नई दिल्ली: 16 दिसंबर 2017 को राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद चार राज्यों में कांग्रेस की सरकार बनी. कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता की चाबी कांग्रेस के ‘हाथ’ लगी. लगातार हार का सामना कर रही कांग्रेस और उसके कार्यकर्ताओं को ऊर्जा मिली. खासकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की जीत ने राहुल गांधी की छवि को मजबूत किया. विपक्ष के अन्य दलों ने इसके लिए राहुल गांधी की तारीफ भी की. राजनीति में आखिरकार हार और जीत का फैसला ही सबकुछ तय करता है, तमाम चर्चा बाद में आती हैं. तीन राज्यों की जीत कांग्रेस के लिए इसलिए भी अहम थी क्योंकि यहां उसका सीधा मुकाबला बीजेपी से था. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मिली इस जीत का महत्व को कांग्रेस ने समझा. अब देश में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं. राहुल गांधी का मुकाबला नरेंद्र मोदी जैसे दमदार छवि वाले नेता से है.

बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का पहला लोकसभा चुनाव

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी का यह पहला लोकसभा चुनाव है. उनके लिए ये बड़ी जिम्मेदारी और बड़ी चुनौती भी है. कांग्रेस के समर्थक राहुल गांधी को पीएम मैटेरियल बताते हैं. राहुल गांधी भी केंद्र सरकार का नेतृत्व करने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं. 23 मई के नतीजों के बाद कांग्रेस के प्रदर्शन के हिसाब से उनका विश्लेषण होगा. इस बार राहुल अपनी पारंपरिक सीट अमेठी के अलावा दक्षिण भारत के वायनाड लोकसभा सीट से मैदान में हैं. वायनाड सीट पर तीसरे चरण के तहत वोटिंग हुई और अमेठी में चौथे चरण में चुनाव होना है. दो सीटों से चुनाव लड़ने के फैसले पर राहुल गांधी कहते हैं कि वे संदेश देना चाहते हैं कि पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत एक है. वे उत्तर भारत के साथ हैं तो दक्षिण भारत के साथ भी हैं.

हिंदी पट्टी के अलावा दक्षिण भारत पर भी कांग्रेस की नजर

दरअसल कांग्रेस हिंदी पट्टी के अलावा दक्षिण भारत में भी अपने पक्ष में माहौल बनाना चाहती है. इसके लिए खुद राहुल वायनाड से मैदान में उतरे हैं. वायनाड केरल का एकमात्र जिला है जिसकी सीमाएं दक्षिण के तीन राज्यों को छूती हैं. केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमाओं को छूने वाले इस जिले में होने वाली हर राजनीतिक हलचल का इन तीनों राज्यों पर असर से इनकार नहीं किया जा सकता है. केरल में 20, तमिलनाडु में 39 और कर्नाटक में लोकसभा की कुल 28 सीटें हैं.

नए-पुराने दोस्तों के साथ कांग्रेस का तालमेल

एक तरफ जहां राहुल गांधी खुद कांग्रेस के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं वहीं अपने नए-पुराने दोस्तों को भी इस बार साथ लेकर चल रहे हैं. बिहार में आरजेडी, कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडू में डीएमके तो महाराष्ट्र में एनसीपी साथ में है. 40 सीटों वाले राज्य बिहार में कांग्रेस को नौ सीटें दी गई हैं और एक राज्यसभा की सीट देने की बात है. लालू यादव से कांग्रेस के पुराने संबंध हैं. वैसे लालू जेल में हैं, ऐसे में तेजस्वी यादव के साथ मिलकर कांग्रेस मैदान में है. वहीं कर्नाटक में जेडीएस के साथ कांग्रेस सरकार में है.

यूपी में 'अकेली' पड़ी कांग्रेस के साथ खड़ी हैं प्रियंका गांधी

बिहार और कर्नाटक में भले ही कांग्रेस गठबंधन बनाने में कामयाब रही लेकिन सीटों के मामले में देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में वह अपने दम पर चुनाव लड़ रही है. इसके अलावा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ भी गठबंधन नहीं हो सका. वैसे यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल और अखिलेश दोस्त थे लेकिन 2019 तक ये दोस्ती टिक नहीं सकी. हालांकि गठबंधन नहीं होने के बावजूद भी अखिलेश और मायावती के गठबंधन ने सोनिया गांधी की रायबरेली और राहुल गांधी की अमेठी सीट पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे. सपा और बीएसपी ने एक तरह से कांग्रेस को अकेला छोड़ दिया. ऐसे वक्त में प्रियंका गांधी की सक्रिय राजनीति में एंट्री हुई. वैसे इससे पहले भी प्रियंका गांधी कांग्रेस के लिए प्रचार कर चुकी हैं लेकिन सक्रिय राजनीति में उनकी एंट्री राहुल गांधी की अध्यक्षता में हुई. प्रियंका को पार्टी का महासचिव बनाया गया. इसके साथ ही उन्हें पूर्वी यूपी की जिम्मेदारी सौंपी गई. प्रियंका को 41 सीटों की जिम्मेदारी दी गई है.

इन मुद्दों पर आक्रामक रहा राहुल गांधी का रुख

बीते दिनों में राहुल गांधी ने केंद्र की मोदी सरकार पर जमकर हमले किए. खासकर राफेल मुद्दे पर उन्होंने सरकार और यहां तक की सीधे पीएम मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. अपनी रैलियों में राहुल गांधी 'चौकीदार चोर है' के नारे लगवाते दिखे. पार्टी ने अपने घोषणापत्र में भी इस बात का एलान किया कि अगर सरकार बनती है तो राफेल मामले की जांच करवाई जाएगी. इसके अलावा नोटबंदी और जीएसटी के फैसले पर पर भी राहुल ने जमकर हमला किया. जीएसटी को उन्होंने 'गब्बर सिंह टैक्स' बताया था. रोजगार के मुद्दे पर भी उन्होंने मोदी सरकार को खूब घेरा है.

कांग्रेस के घोषणापत्र में 'न्याय' का वादा

कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में किसान से लेकर युवाओं तक को साधने की कोशिश की. इसमें 'न्याय' योजना की काफी चर्चा है. NYAY यानी न्यूतम आय योजना के तहत सबसे गरीब 20 फीसदी परिवार को 72000 रुपये सालाना देने का वादा किया गया है. इसके अलावा युवाओं को रोजगार देने की बात कही है. पार्टी के मेनिफेस्टो में कहा गया है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो 10 लाख युवाओं को ग्राम पंचायत में रोजगार दिया जाएगा. वहीं कारोबार शुरु करने वालों के लिए शुरुआती तीन साल तक अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी. इसके अलावा कांग्रेस ने कहा कि जैसे रेलवे का बजट होता है वैसे ही किसान बजट भी अलग होना चाहिए. किसान अगर बैंकों का पैसा नहीं दे पाते तो उनके खिलाफ आपराधिक केस दर्ज नहीं किया जाएगा बल्कि सिविल मामला दर्ज किया जाएगा. इसके साथ ही किसानों को राहत पैकेज दिये जाएंगे.

ऐसे में कांग्रेस अपनी तरफ से जो कुछ कर सकती थी उसने किया है. 23 मई को नतीजे आएंगे. पार्टी की कमान राहुल गांधी के हाथों में हैं. अब राहुल गांधी प्रधानमंत्री की कुर्सी से कितने दूर खड़े हैं ये तो नतीजे के बाद पता चलेगा लेकिन इतना तो तय है कि वे 2019 के बड़े खिलाड़ी हैं.

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