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छंटनियों का तूफान: इस साल 218 कंपनियों में 1 लाख से ज्यादा गई नौकरी, ये सेक्टर बना पेशेवरों का 'काल'

TCS ने जुलाई से सितंबर के बीच 20,000 से ज्यादा कर्मचारियों को बाहर किया. Intel ने अपने कुल वर्कफोर्स का 22% (करीब 24,000 कर्मचारी) घटा दिया.

Layoffs in IT & Tech: कभी युवाओं के लिए करियर की सबसे पसंदीदा राह होती थी — इंजीनियरिंग. मोटी सैलरी और शानदार लाइफस्टाइल के कारण आईटी सेक्टर में काम करना लाखों युवाओं का सपना हुआ करता था. लेकिन अब यही सेक्टर उन सपनों को तोड़ रहा है. हालात ये हैं कि आज सबसे ज्यादा छंटनी आईटी सेक्टर में ही हो रही है.

इस साल एक लाख से ज्यादा नौकरियां गईं

Layoffs.fyi के आंकड़ों के अनुसार, साल 2025 में अब तक एक लाख से ज्यादा आईटी पेशेवरों की नौकरियां खत्म हो चुकी हैं. कंपनियों का पूरा ध्यान अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), क्लाउड सर्विसेज और प्रॉफिटेबिलिटी पर है. इस बदलाव का सीधा असर पारंपरिक सॉफ्टवेयर नौकरियों पर पड़ा है. भारत से लेकर अमेरिका के सिलिकॉन वैली तक छंटनी की लहर जारी है.

भारत की TCS से लेकर अमेरिका की Intel तक छंटनी

TCS ने जुलाई से सितंबर के बीच 20,000 से ज्यादा कर्मचारियों को बाहर किया. Intel ने अपने कुल वर्कफोर्स का 22% (करीब 24,000 कर्मचारी) घटा दिया. कंपनी AMD और NVIDIA जैसी प्रतिस्पर्धी कंपनियों से मुकाबले के लिए पोलैंड, जर्मनी और अमेरिका में अपनी यूनिट्स का पुनर्गठन कर रही है.

Microsoft ने इस साल 9,000 कर्मचारियों की छंटनी की. Amazon ने 14,000 कॉर्पोरेट नौकरियों को खत्म किया, ताकि कंपनी क्लाउड इनोवेशन और एआई डेवलपमेंट पर फोकस कर सके. Meta (Facebook) और Google (Alphabet) ने हार्डवेयर, एंड्रॉइड और अन्य डिवीजन में स्टाफ कम किया. Oracle के अमेरिकी ऑफिस में भी सैकड़ों कर्मचारी प्रभावित हुए हैं.

छंटनी सिर्फ टेक सेक्टर तक सीमित नहीं

UPS (लॉजिस्टिक्स कंपनी) अब तक की सबसे बड़ी छंटनी की योजना बना रही है- करीब 48,000 कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में हैं. Ford Motors ने 8,000 से 13,000 कर्मचारियों को निकालने का ऐलान किया है.

तकनीकी विशेषज्ञों का कहना है कि AI और ऑटोमेशन की वजह से पारंपरिक आईटी नौकरियों की मांग घट रही है. कंपनियां अब कम कर्मचारियों के साथ ज्यादा काम करवाने की रणनीति अपना रही हैं. आने वाले वर्षों में डेटा साइंस, मशीन लर्निंग, साइबर सिक्योरिटी और एआई-आधारित भूमिकाओं की मांग तो बढ़ेगी, लेकिन पारंपरिक कोडिंग या सपोर्ट सर्विसेज में रोजगार तेजी से घटते रहेंगे.

ये भी पढ़ें: घरेलू बाजार में जबरदस्त बिकवाली के बीच रुपये का निकला दम, डॉलर के सामने हुआ धराशायी

राजेश कुमार पत्रकारिता जगत में पिछले करीब 14 सालों से ज्यादा वक्त से अपना योगदान दे रहे हैं. राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों से लेकर अपराध जगत तक, हर मुद्दे पर वह स्टोरी लिखते आए हैं. इसके साथ ही, किसी खबरों पर किस तरह अलग-अलग आइडियाज के साथ स्टोरी की जाए, इसके लिए वह अपने सहयोगियों का लगातार मार्गदर्शन करते रहे हैं. इनकी अंतर्राष्ट्रीय जगत की खबरों पर खास नज़र रहती है, जबकि भारत की राजनीति में ये गहरी रुचि रखते हैं. इन्हें क्रिकेट खेलना काफी पसंद और खाली वक्त में पसंद की फिल्में भी खूब देखते हैं. पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखने से पहले उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मास्टर ऑफ ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म किया है. राजनीति, चुनाव, अंतरराष्ट्रीय संबंधों और अर्थव्यवस्था जैसे मुद्दों पर राजेश कुमार लगातार लिखते आ रहे हैं.
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