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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

राहुल गांधी को RSS की नसीहत, आखिर क्यों एक बयान से भड़क उठती है बीजेपी?

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और केरल के वायनाड से सांसद राहुल गांधी को आरएसएस ने जिम्मेदारी से बयान देने के लिए कहा है. इधर, राहुल गांधी के ब्रिटेन दौरे के वक्त संसद में माइक बंद करने को लेकर दिए बयान को लेकर लगातार बीजेपी उन पर निशाना साध रही है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि राहुल गांधी के ऊपर सत्ता पक्ष के हमलावर होने और आरएसएस की तरफ से इस तरह की नसीहत देने के क्या मायने हैं? दरअसल, इस तरह की बातों का संदर्भ देखा जाना चाहिए. आरएसएस अपने को राजनीति से अलग बताता है. खुद को सांस्कृतिक संगठन बताता है. अगर वह सांस्कृतिक संगठन है तो फिर क्यों वह इस तरह के राजनीतिक मुद्दों पर संवाद में शामिल होता है.

दूसरी बात यह कि अगर हम प्रथम दृष्टि में देखें तो यह अच्छा बयान है कि संयम से बोलना चाहिए. तो यह संयम से बोलने का दायरा सिर्फ कांग्रेस के लिए सीमित नहीं रहना चाहिए. गिरिराज किशोर, साध्वी  प्रज्ञा और बहुत से ऐसे लोग जो संघ से घोषित या अघोषित नजदीकियां बताते हैं उनके ऊपर भी आरएसएस के जिम्मेदार लोगों को बताना चाहिए कि क्या कार्रवाई की. देश में सामाजिक सौहार्द बना रहे, इसके लिए क्या-क्या् प्रयास किए गए. अन्य व्यक्ति सीख देने में बहुत उत्सुक नजर आता है.

जहां तक इस मुद्दे को लेकर आरएसएस व भाजपा में बौखलाहट की बात है तो वास्तव में ऐसा लगता नहीं है. बल्कि सोचे-समझे उद्देश्य के साथ मामले का राजनीतिकरण किया जा रहा है. राहुल गांधी को भारत जोड़ो यात्रा के बाद एक तरीके से ऐसे व्यक्ति के रूप में जाहिर करने की कोशिश की जा रही है जिसका व्यक्तित्व गंभीर नहीं है. एक ऐसा व्यक्ति जो राष्ट्र हित के मामले में उल-जुलूल बयान देता है, और तीसरी बात यह कि भाजपा को लगता है कि नरेंद्र मोदी काल 2014 के बाद जो भारत की प्रतिष्ठा  या गरिमा बढ़ी या उभरकर कर आई है उसे नुकसान पहुंचाने की कोशिश की जा रही है. इसके पीछे कारण यह है कि भाजपा एक राजनीतिक स्तर पर भारत देश और भारत  सरकार के भेद को मिटाने का प्रयास कर रहे रही है. कहने का मतलब यह है कि यदि आप भारत देश या भारत सरकार, भारत के प्रधानमंत्री की आलोचना करते हैं तो आप भारत के सम्मान को ठेस पहुंचा रहे हैं. यह पूरी तरह राजनैतिक नैरेटिव है.

दूसरी बात यह होती है कि कहीं न कहीं राहुल बनाम नरेंद्र मोदी 2024 के चुनाव की रणनीति बनाना चाहते हैं. विपक्ष की एकता की बात कही जाती है तो यह कहा जाता है कि भाजपा के जो विरोधी दल हैं वे राहुल गांधी के नाम पर एक साथ नहीं आएंगे. राहुल गांधी उस लीडरशिप रोल में नहीं आएंगे और विपक्ष बिखरा रहेगा. इतिहास में नजर डालें तो विपक्ष की एकता होती है वह चुनाव के बाद में होती है. या राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को नीचा दिखाने के लिए विरोधी एक होते हैं. जैसे इंदिरा गांधी के समय आठ राजनीतिक दल इकट़ठे हो गए थे या जैसे वीपी सिंह के समय 1989 में भाजपा व वाम दल एक हो गए थे. राजीव गांधी को पछाडा. ये तमाम उदाहरण हैं. मोटे  तौर पर दो तरह की राजनीति नजर आती है.

राहुल गांधी ने यह नहीं कहा है कि वे देश के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं या प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हैं. दूसरी तरफ यह कि ऐसा नैरेटिव पेश किया जाए कि राहुल गांधी या कांग्रेस राष्ट्रहित में नहीं है. पिछले दिनों विदेश दौरे में ब्रिटेन में राहुल गांधी ने कहा कि उन्हें  संसद में बोलने नहीं दिया जाता और माइक बंद कर दी जाती है. राहुल के इस बयान को उप राष्ट्रपति ने विदेश में जाकर देश का अपमान करना बताया है. उप राष्ट्रपति एक राजनीति की भाषा बोल रहे हैं. राज्यसभा के सभापति रहते उन्हें सोच-समझकर बयान देना चाहिए. राहुल गांधी राज्यसभा के सदस्य भी नहीं हैं. उप राष्ट्रपति निष्पक्ष पद पर हैं. भाजपा या उसके पहले जनसंघ इस तरह की बातें कहती रही है. राजनीति रेटोरिक होती है. जैसे नरेंद्र मोदी बार-बार यह कहते सुने जाते हैं तक देश के एक सौ तीस करोड़, एक सौ चालीस करोड़ लोगों का अपमान हो गया. सोचने वाली बात यह है कि करीब नब्बे करोड़ अपने देश में वोटर हैं. इसमें भी भाजपा को कितने लोग वोट देते हैं,यह देखने वाली बात है.

कोई व्यक्ति सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर कुछ कहता है तो इसे क्याे कहेंगे. हो सकता है कि संबंधित सोशल मीडिया का सर्वर विदेश में हो. तो कहने का अर्थ यह कि तकनीक ने आज कई समीकरण बदल दिए हैं. मुझे फिर लगता है कि राहुल गांधी ने जो बातें कहीं उनका संदर्भ देखा जाना चाहिए. हो सकता है कि उनकी जुबान लड़खड़ा गई हो लेकिन उनकी नीयत पर शक करना दुर्भाग्यपूर्ण है. अधिकांश लोगों ने राहुल की बात सुनी भी नहीं है. राहुल गांधी को हमेशा से गंभीरता से लिया जाता रहा है. दरअसल, राजनीति में जो दिखता है वह होता नहीं है. हो सकता है कि राहुल गांधी की लोकप्रियता को कम करने का प्रयास किया जा रहा हो. हालांकि यह सब कुछ तो चुनाव में पता चलता है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई से बातचीत पर आधारित है.]

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