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अमेरिका: सुप्रीम कोर्ट ने आख़िर क्यों छीन लिया महिलाओं से गर्भपात का कानूनी अधिकार?

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 50 साल पुराने कानून को पलटते हुए अब गर्भपात को गैर कानूनी करार दे दिया है. इस फैसले के विरोध में देश के 50 से भी ज्यादा  शहरों में महिलाएं सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रही हैं. अभी तक वहां गर्भपात को कानूनी मान्यता मिली हुई है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले को "भारी भूल" करार दिया है. उन्होंने कहा कि इस फ़ैसले ने महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन को ख़तरे में डाल दिया है.
अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी इस फैसले की  आलोचना करते हुए अपने ट्वीट में लिखा है, "अमेरिका में आज दसियों लाख महिलाएं बिना किसी हेल्थ केयर और रीप्रोडक्टिव हेल्थ केयर के हो गयी हैं. अमेरिका की जनता से उसका संवैधानिक अधिकार छीन लिया गया है."

दरअसल,अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए अपने ऐतिहासिक फैसले में 50 साल पुराने "रो बनाम वेड" मामले में दिए गए उस फ़ैसले को पलट दिया है, जिसके ज़रिए गर्भपात कराने को क़ानूनी करार दिया गया था और कहा गया था कि संविधान गर्भवती महिला को गर्भपात से जुड़ा फ़ैसला लेने का हक़ देता है. ये फैसला आने के बाद अब महिलाओं के लिए गर्भपात का हक़ क़ानूनी रहेगा या नहीं, इसे लेकर अमेरिका के अलग-अलग राज्य अपने-अपने अलग नियम बना सकते हैं. माना जा रहा है कि इसके बाद आधे से अधिक अमेरिकी राज्य गर्भपात क़ानून को लेकर नए प्रतिबंध लागू कर सकते हैं. हालांकि 13 राज्य पहले ही ऐसे क़ानून पारित कर चुके हैं, जो गर्भपात को ग़ैरक़ानूनी करार देते हैं, ये क़ानून सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद लागू हो जाएंगे. सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद से अमेरिका के कुछ राज्यों में अबॉर्शन क्लीनिक बंद होना शुरू हो गए हैं. हर तरफ अफ़रातफ़री का माहौल है और अधिकांश राजनीतिक-सामाजिक संगठन इसके विरोध में अपनी आवाज उठा रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख ने भी गर्भपात के संवैधानिक अधिकार को उलटने वाले इस फैसले को महिलाओं के मानवाधिकारों और लैंगिक समानता के लिए एक "बड़ा झटका" करार दिया है. संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों  ने चेतावनी दी है कि गर्भपात तक पहुंच को प्रतिबंधित करने से लोगों को इसकी मांग करने से नहीं रोका जा सकता है जो इसे "अधिक घातक" बनाता है. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाचेलेट ने ने कहा कि, "सुरक्षित, कानूनी और प्रभावी गर्भपात तक पहुंच अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून में मजबूती से निहित है."

उधर, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ट्वीट किया कि "हर साल 2.5 करोड़ से अधिक असुरक्षित गर्भपात होते हैं और 37,000 महिलाओं की मौत हो जाती है. इसने चेतावनी दी कि सबूत बताते हैं कि गर्भपात तक पहुंच को प्रतिबंधित करने से गर्भपात की संख्या कम नहीं होती है. हालांकि, ये प्रतिबंध महिलाओं और लड़कियों को असुरक्षित प्रक्रियाओं की ओर ले जाने की अधिक संभावना रखते हैं. डब्ल्यूएचओ ने कहा, “हर जगह महिलाओं और लड़कियों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सुरक्षित गर्भपात देखभाल आवश्यक है. गर्भपात देखभाल तक पहुंच को हटाने से अधिक महिलाओं और लड़कियों को अवैध गर्भपात का खतरा होगा और इसके परिणामस्वरूप सुरक्षा के मुद्दे सामने आएंगे. ”

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने भी अपनी 2022 की विश्व जनसंख्या रिपोर्ट की स्थिति का हवाला देते हुए कहा कि दुनिया भर में लगभग आधे गर्भधारण  (Pregnancies) अनजाने में होते हैं और इनमें से 60 प्रतिशत से अधिक अनपेक्षित गर्भधारण गर्भपात में समाप्त हो सकते हैं. अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही अपना फ़ैसला ऑनलाइन पोस्ट किया, अबॉर्शन कराने वालों के लिए क्लीनिक के दरवाज़े बंद कर दिए गए. क्लीनिक स्टाफ़ ने फ़ोन कर-करके महिलाओं को बताया कि कोर्ट के फ़ैसले के बाद उनकी अप्वाइंटमेंट्स कैंसिल कर दी गई है. आंकड़ों की बात करें तो ऐसी संभावना जताई जा रही है कि क़रीब 36 मिलियन (3.6 करोड़) महिलाओं से उनके राज्य में गर्भपात का अधिकार छिन जाएगा. यह आंकड़े एक हेल्थकेयर ऑर्गेनाइज़ेशन "प्लान्ड पैरेंटहुड" की ओर से जारी किए गए हैं.

हालांकि अमेरिका के इन राज्यों-केंटकी, लुइज़ियाना, अर्कांसस, साउथ डकोटा, मिज़ूरी, ओकलाहोमा और अलाबामा में ये नया क़ानून पहले ही लागू हो चुका है, जबकि मिसिसिपी और नॉर्थ डकोटा में प्रतिबंध वहां के अटॉर्नी जनरल की मंज़ूरी मिलने के साथ ही लागू हो जाएंगे. इडाहो, टेनेसी और टेक्सस में अगले 30 दिनों में ये प्रतिबंध लागू हो जाएंगे. अमेरिका में लंबे समय से गर्भपात-विरोधी क़ानून पर बहस जारी है. हाल ही में हुए प्यू सर्वे में पाया गया है कि क़रीब 61 फ़ीसदी वयस्क ने कहा कि गर्भपात पूरी तरह से क़ानूनी होना चाहिए या फिर अधिकांश मामलों में क़ानूनी होना चाहिए, जबकि 37 फ़ीसदी ने कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए.

अगर भारत के संदर्भ में देखें,तो हमारे यहां पिछले साल गर्भपात क़ानून में संशोधन किया गया था, जिसके बाद गर्भपात करवाने के लिए मान्य अवधि को 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 24 हफ़्ते कर दिया गया है. मार्च 2021में ' मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (संशोधित) बिल 2020' को राज्यसभा से पारित कराने के बाद अब यह कानून लागू हो गया है. इसमें कहा गया है कि गर्भपात के लिए मान्य अवधि विशेष तरह की महिलाओं के लिए बढ़ाई गई है, जिन्हें एमटीपी नियमों में संशोधन के ज़रिए परिभाषित किया जाएगा और इनमें दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएँ (विकलांग महिलाएं, नाबालिग) भी शामिल होंगी.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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