तारक मेहता को श्रद्धांजलि: उल्टे चश्मे से दुनिया को सीधा कौन दिखाएगा अब

तारक मेहता ( गुजरात में तारक महेता कहा जाता है लेकिन हिंदीभाषियों में में वो तारक मेहता के नाम से लोकप्रिय थे) नहीं रहे. जो शख्स अपने हास्य लेखन के जरिये पहले गुजरातियों को और फिर पूरे देश को हंसाता रहा, वो जिंदादिल इंसान अब इस दुनिया में नहीं रहा. प्रसिद्ध साहित्यकार तारक मेहता का आज सुबह अहमदाबाद में निधन हो गया. शहर के पॉलीटेक्निक इलाके के पैराडाइज टावर में महेता रह रहे थे, जहां सुबह साढ़े नौ बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. देहांत के वक्त पत्नी इंदुबेन और दो सहायक शंकर और पुष्पा उनके साथ थे, जो पिछले दो दशक से उनकी देखभाल कर रहे थे.
तारक मेहता अहमदाबाद शहर के ही खाड़िया इलाके के रहने वाले थे, लेकिन अध्ययन और कैरियर का ज्यादातर हिस्सा उनका मुंबई में बीता था. मुंबई से ही एमए की पढाई करने वाले तारक मेहता 1959-60 में प्रजातंत्र दैनिक में उप संपादक रहे. 1960 में ही वो फिल्म डिविजन के साथ भी जुड़े और 1985 तक भारत सरकार की सेवा करते रहे. इसी दौरान उनका हास्य लेखन भी चलता रहा. खुद नाटक भी लिखे और कुछ में भाग भी लिया.
लेकिन तारक मेहता को पहचान मिली, उनके कॉलम 'दुनिया ना उंधा चश्मा से' जिसकी शुरुआत गुजराती पत्रिका चित्रलेखा में मार्च 1971 में हुई. इस कॉलम में वो लगातार लिखते रहे. ये कॉलम शोहरत की बुलंदियों को छूता गया. यहां तक कि बीमारी के कारण पिछले कुछ वर्षों से उन्होंने खुद ये कॉलम लिखना बंद कर दिया था, तब भी ये कॉलम वहां छपता रहा है, उनके प्लॉट और उनसे हुई बातचीत को आधार बनाकर.
तारक मेहता के बारे में हिंदी जगत का ध्यान तब बड़े पैमाने पर गया, जब सोनी के टीवी चैनल सब टीवी पर उनके नाम से ही जुड़े सीरियल 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' की शुरुआत हुई. इस सीरियल की शुरुआत वर्ष 2009 में हुई. तब से ये सीरियल लगातार जारी है और 2200 से ज्यादा एपिसोड इसके अभी तक टेलीकास्ट हो चुके हैं. इस सीरियल के पात्र, चाहे वो 'जेठालाल' हो, 'दया' हो, 'टप्पू' हो या फिर उसके दादा 'चंपक लाल' हों या फिर पत्रकार 'पोपटलाल', सबकी जुबान पर चढ़ गये हैं.
इस सीरियल की शुरुआत भी अजीब संयोग में हुई. 1995 के करीब तारक मेहता का मुंबई से वापस अहमदाबाद आना हुआ था. 1997 के आसपास गुजरात फिल्मों और सीरियल के निर्माण से जुड़े प्रोड्यूसर आसीत मोदी ने तारक मेहता से मुलाकात की और उनके कॉलम पर टीवी सीरियल बनाने का विचार रखा. इसके बाद आसीत मोदी और तारक मेहता के बीच दो साल तक बातचीत होती रही और फिर तारक मेहता इसके लिए तैयार हुए.

दरअसल मेहता के मन में दुविधा ये भी थी कि उनके एक खास मित्र महेशभाई वकील, जो सूरत में रहते थे, उन्होंने भी तारक मेहता के कॉलम को आधार बनाकर एक सीरियल की योजना पर काम कर रहे थे और एक-दो एपिसोड तैयार भी कर लिये थे. लेकिन महेशभाई को आसीत मोदी की बात ज्यादा जमी और आखिरकार तारक मेहता का उल्टा चश्मा सीरियल की शुरुआत हुई. शुरुआत से लेकर आजतक ये सीरियल लोकप्रियता के शिखर पर बना हुआ है औक तारक मेहता के कॉलम के आधार पर ही इसकी कहानी आगे बढ़ती रही है.
चाहे आईपीएल का सीजन आ जाए या फिर बिगबी का कोई बड़ा शो, 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' दर्शकों के बीच अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब हुआ है, इसके पात्र लोगों को गुदगुदाते रहे हैं. तारक मेहता आखिरी समय तक इसके प्लॉट और कथानक को बेहतर करने में रुचि लेते रहे थे.
ये भी जानना खासा रोचक है कि तारक मेहता ने बतौर लेखक अपने कैरियर की शुरुआत व्यंग्य लेखक नहीं, नाट्य लेखक के तौर पर की थी. कुछ नाटकों में उन्होंने खुद हिस्सा भी लिया था, अभिनय कला से भली-भांति परिचित थे. इसलिए अपने पात्रों के साथ लेखन के मामले में भी न्याय कर सकते थे. जहां तक व्यंग्य लेखन का सवाल है, उसकी शुरुआत हुई उनके चित्रलेखा से जुड़ाव के बाद. चित्रलेखा के तत्कालीन संपादक हरकिशन महेता ने उन्हें समकालीन परिस्थितियों पर व्यंग्य लिखने के लिए प्रोत्साहित किया और ऐसे में अपने चुटीले अंदाज में तारक महेता ने 'दुनिया ना उंधा चश्मा' नाम से कॉलम लिखना 1971 में शुरु किया.
सवाल उठता है कि उल्टे चश्मे से दुनिया को क्यों देखना. दरअसल तारक मेहता देश और समाज में होने वाली तमाम घटनाओं को अनूठे अंदाज में देखते थे. इसलिए सीधे चश्मे की जगह से देखने की जगह उल्टे चश्मे वाला शब्द प्रयोग इस्तेमाल किया और शुरुआत हुई दुनिया ना उंधा चश्मा की, जिसका अर्थ होता है दुनिया का उल्टा चश्मा. तब से लेकर अब तक यानी साढ़े चार दशक से भी अधिक समय तक ये कॉलम गुजरातियों को गुदगुदाता रहा है. हालांकि स्वास्थ्य खराब होते जाने के कारण पिछले पांच सालों से वो खुद से ये कॉलम लिख नहीं पाते थे, इसलिए दूसरों को अपनी बात समझाकर कॉलम को जारी रखे हुए थे. उन्होंने जो प्लॉट खीचा था, उसी आधार पर चित्रलेखा में ये कॉलम लगातार छपता रहा है.
तारक मेहता के व्यंग्य लेखन की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि लोगों को गुदगुदाने के चक्कर में वो कभी हल्की भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे, जैसे आज के दौर में परिपाटी बन गई है. तारक महेता की भाषा हमेशा सौम्य रही, उसमें कभी बाजारुपन की झलक नहीं दिखी. शायद यही वो पक्ष था, जो तारक मेहता को बाकी व्यंग्यकारों से काफी अलग, विशिष्ट स्थान प्रदान करता था. 2015 में भारत सरकार ने उनके लेखन का सम्मान पद्मश्री से नवाज कर किया.
तारक मेहता के चरित्र उसी परिवेश से आये थे, जहां उनका बचपन बीता था. अहमदाबाद शहर के खाडिया इलाके में उनका बचपन और किशोरावस्था बीती थी. खाड़िया के सांकडी शेरी की झूमकीनी खड़की में बचपन में रहे थे तारक मेहता. यही वजह थी कि दया नामक जिस चरित्र को उन्होंने अपने कॉलम में जन्म दिया, उसकी मां को खाड़िया का ही दिखाया भी. जब तारक महेता मुंबई गये तो खाड़िया का मकान बेचकर गये और फिर जब मुंबई से 1995 में उनका अहमदाबाद आना हुआ, तो मुंबई का मकान बेचकर शहर के आंबावाड़ी इलाके में फ्लैट खरीदा.

तारक मेहता के मुंबई जाने की कहानी भी खास है. तारक मेहता को बचपन से अभिनय का शौक था, अंदाज कुछ-कुछ राज कपूर जैसा. इसलिए वो मुंबई गये अभिनय करने के लिए. लेकिन वहां पढ़ाई के साथ-साथ उनका झुकाव नाटकों की तरफ बढ़ता गया. एक दौर ऐसा भी आया कि उनके नाटकों को देखने के लिए भीड़ इतनी उमड़ती थी कि लोगों को संभालना मुश्किल हो जाता था. नाटक के बाद व्यंग्य की दुनिया का सफर शुरु हुआ. खास बात ये है कि तारक मेहता के खास दोस्त विनोद भट्ट भी उन्हीं की भांति अहमदाबाद के खाड़िया इलाके के निवासी रहे हैं और व्यंग्य लेखन में तारक मेहता जैसा ही नाम कमाया है. तारक मेहता मुंबई जाने के पहले खाड़िया के रायपुर चकला में विनोद भट्ट के साथ अड्डा जमाया करते थे.
तारक मेहता का जन्म नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता जनुभाई महेता शहर की एक कपड़ा मिल में काम करते थे स्पिनिंग मास्टर के तौर पर, जिन कपड़ा मिलों के लिए अहमदाबाद एक समय पूर्व के मानचेस्टर के तौर पर जाना जाता था. तारक महेता को एक बहन और एक ही भाई थे. लेकिन बहन हेमा और छोटे भाई बाल्मिक उनके उपर जाने से काफी पहले ही दुनिया को अलविदा कह गये. तारक महेता के अपने परिवार में पत्नी इंदुबेन और बेटी ईशानी है. ईशानी की शादी भी हो चुकी है और वो अमेरिका में रहती है अपने पति चंद्रकांत शाह के साथ, जो खुद साहित्यकार हैं.
1929 में जन्मे तारक मेहता का स्वास्थ्य पिछले पांच साल में काफी खराब हो चला था. एक तो बुढ़ापे के कारण हड्डियां कमजोर पड़ने लगी थीं, दूसरी तरफ सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी. ऐसे में पिछले पांच साल से लिखना काफी हद तक बंद हो गया था, लेकिन पढ़ने का सिलसिला तब भी जारी था. जहां तक लिखने का सवाल था, तारक मेहता लेखन कार्य हमेशा रात में किया करते थे. रात दस बजे के करीब लिखने का काम शुरु कर सुबह के चार बजे तक लिखते रहते थे तारक मेहता. ऐसे में वो कभी सुबह दस बजे उठते थे, तो कभी दिन के दो बजे.
पिछले एक साल से तो स्वास्थ्य इतना खराब हो गया था कि तारक मेहता ने व्हील चेयर पकड़ ली थी और पिछले पांच महीने से तो सिर्फ तरल पदार्थ ही भोजन के तौर पर ले रहे थे. पिछले हफ्ते उनकी सेहत और बिगड़ गई और अंतिम पांच दिन में तो तरल पदार्थ भी तारक महेता नहीं ले पा रहे थे. तारक महेता भले अंतिम वर्षों में काफी बीमार रहे, लेकिन उनकी जिंदादिली में कोई कमी नहीं आई. दो दिन पहले तक वो व्हील चेयर पर ही सवार होकर अपनी सोसायटी में नीचे जाते रहे थे और हर मिलने वाले को जय श्रीकृष्ण के साथ अभिवादन कर हंसी-मजाक करते रहते थे.
तारक महेता के शौक गिने-चुने थे. लेखन के अलावा घुमने-फिरने और रेडियो सुनने का उन्हें बड़ा शौक था. पत्नी इंदुबेन उनकी इच्छा के मुताबिक उन्हें मुंबई घुमाने ले जाती थी, जिस शहर में वो अपने नाटक और व्यंग्य लेखन के जरिये शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचे थे. तारक मेहता गुजरात के कपड़वंज इलाके के हनुमान मंदिर और कच्छ के मशहूर शक्ति पीठ मातानो मठ के दर्शन के लिए भी जाते थे, जिन दोनों धर्म स्थानों में गहरी आस्था थी उनकी. रात में रेडियो पर कभी विविध भारती तो कभी समाचार सुनते थे तारक महेता, वो भी देर रात तक. रेडिया सुनने का शौक अंतिम समय तक जारी रहा.
जाते-जाते भी तारक मेहता लीक से अलग हटकर ही चले. पत्नी इंदुबेन से उन्होंने कहा था कि उनका अंतिम संस्कार शवदाह के तौर पर न किया जाए, बल्कि उनकी देह का दान किसी हॉस्पिटल में कर दिया जाए ताकि उनके अंग जरुरतमंदों के काम आ सकें. लीक से अलग हटकर चलने की उनकी आदत ही थी, जो उन्हें भीड़ से अलग लेकर गई और दुनिया उनके उल्टे चश्मे के जरिये समाज और देश में होने वाली गतिविधियों को सीधी नजरों से देख पाई. अलविदा तारक मेहता




























