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ये क्रिकेट है, खूब जश्न मनाओ, पर दो मुल्कों की जंग तो न बनाओ

आज शाम दुबई में भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का मुकाबला हो रहा है लेकिन इसे दोनों देशों के बीच अगर कोई एक जंग के तौर पर देखता है और उसी लिहाज़ से अपना जश्न मनाता है तो मान लीजिये कि वे इस पार और उस पार रहने वाली ऐसी फिरकापरस्त ताकतें हैं जो कभी नहीं चाहतीं कि दोनों मुल्कों के बीच फिर से मोहब्बत का रिश्ता कायम हो जाये. इतिहास गवाह है कि खेलों को राजनीति का अखाड़ा कभी नहीं बनने दिया गया और जब ऐसी हरकत हुई भी तो उसका माकूल जवाब भी किसी और ने नहीं बल्कि देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने ही देकर ऐसी तमाम ताकतों के मुंह पर पट्टी लगाने का ऐसा काम कर दिया जिसकी तारीफ़ सिर्फ पाकिस्तान की जनता ने ही नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र ने भी की थी.

राजनीति कहें या कट्टरता वो खेलों पर भी कितनी उग्रता से अपना रंग दिखाती है इसकी सबसे बड़ी मिसाल हिंदुत्व का झंडाबरदार कहलाने वाली शिव सेना ही है. बेशक आज वो बीजेपी से अलग हो गई है लेकिन उससे जुड़े लोगों ने भारत की धरती पर तकरीबन दर्ज़न बार या तो भारत-पाक का क्रिकेट मैच होने ही नहीं दिया या फिर उसमें ऐसी अड़चनें डालीं कि पाक टीम को खुद ही उल्टे पांव अपने मुल्क लौटने पर मजबूर होना पड़ा.

लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शिव सैनिकों की इस करतूत का जवाब सिर्फ एक संदेश में दिया था कि "भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के बीच ये मैच न सिर्फ होकर रहेगा बल्कि टेस्ट मैच के खत्म होने के बाद दोनों टीमों की मैं पीएम आवास पर मेजबानी भी करूंगा." ऐसा ही हुआ.

दरअसल, साल 1999 में पाकिस्तान की क्रिकेट टीम को दिल्ली के फ़िरोज़शाह कोटला मैदान में भारत की टीम से मैच खेलना था. मैच होने से चंद दिन पहले दिल्ली शिव सेना के तत्कालीन अध्यक्ष जय भगवान गोयल ने अपने कुछ साथियों के साथ कोटला ग्राउंड में जाकर पूरी पिच को खोद डाला. मीडिया ने तो इस खबर को प्रमुखता से छापा लेकिन खेल व सियासी जगत में इसकी बेहद तीखी प्रतिक्रिया हुई. पूर्व क्रिकेटर व उस जमाने में बीजेपी के नेता रहे कीर्ति आज़ाद ने अचानक फोन करके पूछा कि इसका कैसे व क्या जवाब दिया जाए? 
मैंने सिर्फ इतना सुझाया कि आप सब पुराने खिलाड़ियों को एकजुट होकर आवाज उठानी होगी जिसके लिए आप "खेल बचाओ अभियान" या Save Sports Campaign जैसा कोई मंच बनाकर सीधे पीएम वाजपेयी से मिलिये और उन्हें बताएं कि हम जैसे पुराने खिलाड़ियों को ये कतई मंजूर नहीं है. मुझे याद है कि कीर्ति आज़ाद ने न सिर्फ ऐसा किया बल्कि बिशन सिंह बेदी से लेकर अलग-अलग खेलों के तमाम चर्चित चेहरों को सुबह साढ़े नौ बजे से 7 रेसकोर्स स्थित पीएम आवास पर भी जुटा लिया. तकरीबन 10 बजे जब पीएम वाजपेयी अपने लॉन में तमाम पुराने दिग्गज़ खिलाड़ियों से मुखातिब होने आए तब उनके पीछे देश-विदेश के तमाम फोटोग्राफर व पत्रकार मौजूद थे.

उस दौरान वाजपेयी जी ने बेहद संक्षिप्त भाषण देकर सिर्फ एक वाक्य में अपना संदेश दे दिया कि, "हमें न तो खेलों में कोई राजनीति पसंद है और न ही ऐसे किसी भी आयोजन में विध्न डालने वाली ताकतें. मैं आप सबके सामने ये ऐलान करता हूं कि भारत-पाकिस्तान के बीच ये क्रिकेट मैच होकर रहेगा. जीत चाहे जिसकी भी हो लेकिन मैच खत्म होने के बाद दोनों टीमों के सारे होनहार खिलाड़ी मेरे मेजबान होंगे."

जाहिर है कि उस वक्त के पीएम से निकले ये बोल शिव सेना के लिए बेहद सख्त संदेश था क्योंकि अटलजी का पुराना स्वभाव था कि वे किसी का नाम लेकर उसे कठघरे में कभी नहीं खड़ा करते थे. याद दिला दें कि शिव सेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे तब जीवित थे और बताते हैं कि तब पीएम वाजपेयी का ये बयान सुनने-पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी दिल्ली इकाई के सर्वेसर्वा की खासी फजीहत कर दी थी कि उनकी मर्जी व अनुमति के बगैर इतना बड़ा फैसला आखिर क्यों लिया गया. इससे जाहिर होता है कि बाल ठाकरे का हिंदुत्व राजनीति के लिहाज से अपनी जगह सही हो सकता है लेकिन जब उन्हें महसूस हुआ कि खेलों में राजनीति को लेकर वाजपेई इतने उत्तेजित हो सकते हैं तो जरुर कुछ गड़बड़ है.

लेकिन हैरानी की बात ये भी है कि पिच खोदने के बाद दिल्ली शिव सेना ने धमकी दी थी कि वे मैच के दौरान जहरीले सांपों को आउटफील्ड में छोड़ देंगे. हालांकि, बीसीसीआई ने एहतियात बरतते हुए स्टेडियम के अंदर दिल्ली के इक्कीस सर्वश्रेष्ठ सपेरों के एक समूह को तैनात करके सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी. आखिरकार वह मैच ऐसा खुशनुमा बना कि टेस्ट मैच की दूसरी पारी में  स्पिनर अनिल कुंबले ने 10 विकेट लेकर एक रिकॉर्ड  बनाया.

मैच खत्म होने के बाद अटलजी के सरकारी आवास पर दोनों टीमों के स्वागत में रखी गई हाई-टी में उस वक़्त के पाकिस्तान के भारत में स्थित राजदूत और उनका परिवार भी शामिल था. उनकी दो बेटियां भी साथ थीं जो  सचिन तेंदुलकर से लेकर भारतीय टीम के तमाम खिलाड़ियों से ऑटोग्राफ लेने और उनके साथ अपनी तस्वीरें लेने के लिए ऐसी बेताब थीं कि कोई सोच भी नहीं सकता कि उनका नाता पाकिस्तान से है. लिहाजा, दुबई में आज कोई हारे, कोई जीते, उसे दिल से मत लगाना. ये क्रिकेट है, पाकिस्तान से कोई जंग नहीं है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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