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जोशीमठ के बनने से लेकर उजड़ने तक की कहानी

जोशीमठ... आज कल हर कोई सिर्फ एक ही बात कर रहा है कि जोशीमठ का क्या होगा? लेकिन क्या आपको पता है जोशीमठ बना कैसे? क्यों जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है? जोशीमठ की भोगौलिक स्थिती क्या है? लोगों के साथ साथ आर्मी के लिए जोशीमठ की क्या इम्पोर्टेंस है? अगर जोशीमठ के पहाड़ दरक जाते हैं तो क्या बद्रीनाथ धाम का क्या होगा? और सबसे अहम सवाल जोशीमठ की इस हालत का ज़िम्मेदार कौन है? इस वीडियो में आपको जोशीमठ से जुड़े हर सवाल का जवाब देने की कोशिश होगी? तो चलिए सुनाते हैं आपको जोशीमठ के बनने से लेकर उजड़ने तक की कहानी.

ज्योतिर्मठ के जोशीमठ बनने की यात्रा काफी लंबी रही है. जोशीमठ सिर्फ एक जगह नहीं है बल्कि सनातन धर्म से जुड़ा एक प्रतीक है. आदि शंकराचार्य से भी शताब्दियों पहले से पौराणिक कथाओं में जोशीमठ का उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि जब भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की पुकार पर नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध किया तो उनका गुस्सा शांत नहीं हो रहा था. तब भगवान नरसिंह को शांत करने के लिए प्रह्लाद ने जप किया और भगवान नरसिंह शांत रूप में जोशीमठ में विराजमान हुए. जोशीमठ में भगवान नरसिंह का मंदिर है और भगवान बद्रीविशाल सर्दियों में बद्रीनाथ धाम छोड़कर जोशीमठ के इस मंदिर में ही निवास करते हैं. जोशीमठ को आदि गुरू शंक्राचार्य की वजह से भी जाना जाता है. 8वीं सदी में शंक्राचार्य ने जोशीमठ में तपस्या की थी और भारत में बने चार मठों में से सबसे पहला मठ उन्होंने यहीं स्थापित किया था इस जगह को तब ज्योतिर्मठ कहा जाता थो जो बाद में जोशीमठ कहलाया.

जोशीमठ के नरसिंह मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां विराजमान भगवान नरसिंह की दाहिनी भुजा पतली होती जा रही है और स्कंद पुराण के केदारखंड में लिखा है कि जब ये भुजा टूटकर गिर जाएगी तब नर पर्वत और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ जाने का रास्ता बंद हो जाएगा. जिसके बाद भगवान बद्रीविशाल कहीं और जगह पूजे जाएंगे जिसे भविष्य बद्री कहा जाता है. ये जगह बद्रीनाथ से 19 किलोमीटर दूर तपोवन में है. जोशीमठ का संबंध 7वीं से 11वीं शताब्दी के बीच कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र पर शासन करनेवाले कत्यूरी राजवंश से भी बताया जाता है. कहा जाता है कि कत्यूरी शासन में जोशीमठ का नाम कीर्तिपुर था, जो उनकी राजधानी थी. कत्यूरी शासक ललितशूर के ताम्रपत्र में इसे कीर्तिपुर और कहीं कार्तिकेयपुर नाम दिया गया है.. माना जाता है कि कत्यूरी राजवंश के संस्थापक कंटुरा वासुदेन ने यहां अपना शासन स्थापित किया था. इस राजवंश के राजाओं ने यहां हर तरफ मंदिरों की स्थापना करवाई. कीर्तिपुर को ही बाद में जोशीमठ कहा गया.

लेकिन जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार क्यों कहा जाता है? इसका एक पौराणिक और एक वास्तविक उत्तर है. कहा जाता है कि जब पांडवों ने राजपाठ छोड़कर स्वर्ग जाने का निश्चय किया तो उन्होंने जोशीमठ  से ही पहाड़ों का रास्ता चुना. बद्रीनाथ के पास पांडुकेश्वर को पांडवों की जन्मस्थली बताया जाता है. बद्रीनाथ के बाद माणा गांव पार करने के बाद एक शिखर पड़ता है स्वर्गारोहिणी. यहीं से पांडवों ने एक एक कर युधिष्ठिर का साथ छोड़ना शुरू किया था फिर अंत में एक कुत्ता ही युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक गया था. इसी पौराणिक कथा के चलते जोशीमठ को स्वर्ग का द्वारा कहा जाता है. लेकिन इसका एक वास्तविक उत्तर भी है. जोशीमठ को पार करने के बाद आगे फूलों की घाटी आती है और औली की शुरुआत होती है जिसकी सुंदरता स्वर्ग जैसी है जिसके चलते भी जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है.

तो ये है जोशीमठ का इतिहास और उससे जुड़ी किवदंतियां. अब आते हैं जोशीमठ की भोगौलिक स्थिती पर. हिमालय की तलहटी में बसा जोशीमठ उत्तराखंड के Rishikesh-Badrinath National Highway (NH-7) पर बसा एक छोटा शहर है. ये शहर त्रिशूल पीक की उतरती ढलान पर स्थित है जो एक संकरी जगह है... ये शहर यहां अलकनंदा नदी के बाएं किनारे पर स्थित है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 6000 मीटर है. जबकि त्रिशूल पर्वत की ऊंचाई 7250 फीट है. इसके उत्तर-पश्चिम में बद्री पर्वत (7100 फीट.) है . उत्तर में कामेट पर्वत (7750 फीट.) सबसे चिंता वाली बात ये है कि जोशीमठ भारत के सबसे ज़्यादा भूकंप प्रभावित इलाके ज़ोन - 5 में आता है. यहां की पॉपुलेशन की बात करें तो साल 2011 के सेंसस के मुताबिक यहां करीब 4000 घर हैं जहां 17000 लोग रहते हैं लेकिन ये आंकड़ा 12 साल पुराना है तो यहां की जनसंख्या अब पिछले आंकड़े से काफी ज्यादा होगी. बद्रीनथा, हेमकुंड साहिब जाने वाले टूरिस्ट जशीमठ में ही आकर रूकते हैं तो यहां पर पिछले कुछ सालों काफी होटलों का भी निर्माण हुआ है.

लेकिन जितना अहम जोशीमठ आम जनता के लिए है उससे कहीं ज्यादा अहमियत ये आर्मी के लिए रखता है. 1962 के युद्ध में चीन से लोहा लेते वक्त भारतीय सेना जोशीमठ में ही आकर रूकी थी. चीन बॉर्डर पर स्थित नीतीमाणा गांव जाने का रास्ता जोशीमठ से ही होकर गुज़रता है. और LAC पर देश की सुरक्षा में रत आर्मी का कैंप भी जोशीमठ में ही स्थित है. यही कारण है कि जो 900 करोड़ की लागत से चार धाम रोड बन रहा है वो भी जोशीमठ से होकर गुज़रता है. चीन के साथ सीमा विवाद दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है और भारतीय सेना को सीमा तक आवाजाही करने, रसद और एम्यूनेशन पहुंचाने के लिए चार धाम रोड परियोजना स्ट्रीजिक रूप से काफी अहम हो जाती है. लेकिन कहीं यही चार धाम परियोजना ही तो जशीमठ के पतन का कारण तो नहीं बन गई?

बस यहीं पर हम बात करेंगे इस वीडियो के आखिरी और सबसे अहम सवाल पर कि आखिर जोशीमठ की इस हालत का जिम्मेदार कौन है? और क्या जोशीमठ को बचाया जा सकता है या नहीं? इस सवाल का जवाब जानने के लिए आपका इतिहास में Geologists ने जोशीमठ और उसके आस पास के एरिया के बारे में क्या कहा था उसके बारे में जानना ज़रूरी हो जाता है. सबसे पहले साल 1939 में आरनोल्ड हेम और ऑगस्ट गैनसर ने अपनी किताब Central Himalaya में बताया था कि जोशीमठ इतिहास में आए एक बड़े लैंड स्लाइड पर बसा है. इतिहासकार Shiv Prasad Dabral भी अपनी किताब में लिख चुके हैं कि जोशीमठ में लगभग 1000 साल पहले एक लैंडस्लाइड आया था जिसके चलते कत्यूर राजाओं को अपनी राजधानी जोशीमठ से शिफ्ट करनी पड़ी थी. लेकिन पिछले 50 साल की ओर देखें तो 1976 के आसा पास जोशीमठ में लैंडस्लाइड के काफी इवेंट्स हुए थे जिसकी जांच के लिए तात्कालीन गड़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में उत्तराखंड सरकार ने एक कमेटी बनाई थी. मिश्रा ने जियोलॉजिस्ट्स की मदद से गहन जांच की और एक टू द प्लाइंट रिपो्र्ट तैयार की.

इस रिपोर्ट में भी साफ कहा गया था कि जोशीमठ किसी ठोस चट्टान पर नहीं बल्की पहाड़ों के मलबे पर बना है जो अस्थिर है. और अगर जोशीमठ को बचाना है तो यहां पर कंस्ट्रक्शन को कम करने की ज़रूरत है और अगर कोई खास कंस्ट्रक्शन करनी भी है तो उसे गहन जांच के बाद ही शुरू किया जाए. जोशीमठ में बड़े कंस्ट्रक्शन पूरी तरह बंद किए जाएं. जोशीमठ के आस पास Erratic boulders यानी की बड़े बड़े चट्टानी पत्थरों को बिल्कुल न छेड़ा जाए और ब्लास्टिंग पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाए. जोशीमठ के आस पास के एरियाज़ में पेड़ लगाने की बात भी कही गई थी ताकि ज़मीन की पकड़ बनी रहे और पनी की निकासी के लिए Pucca Drain बनाने की सलाह भी दी गई थी. लेकिन ये एक सरकारी रिपोर्ट थी और सरकारों ने इस रिपोर्ट को डस्टबिन में डाल दिया.

क्योंकि पिछले कुछ दशकों में जोशीमठ में वो सब हुआ जिसके लिए मिश्रा रिपोर्ट में मना किया गया था. आर्मी के लिए इस्टेब्लिशमेंट्स बनाई गईं, ITBP का कैंप बना, औली में कंस्ट्रक्शन हुई, Tapovan-Vishnugad Hydropower Project के इर्द गिर्द कंस्ट्रक्शन की गई. बद्रीनथ जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए बड़े बड़े होटलों का निर्माण हुआ. जिससे जोशीमठ की स्लोप पर काफी छेड़छाड़ हुई और ड्रेनेज की कोई व्यवस्था न होने की वजह से होटलों और घरों से निकलने वाले पानी ने स्लोप को खोखला कर दिया. जिसके चलते जोशीमठ एक टिकिंग टाइम बॉम्ब में तबदील हो गया. जिओलॉजिस्ट्सी के मुताबिक जोशीमठ की इस हालत के पीछे  Tapovan-Vishnugad Hydropower Project और चार धाम परियोजना के तहत बन रहे Helang Bypass की सबसे अहम भूमिका है. Hydropower Project के लिए जो टनल खोदी जा रही है उसकी खुदाई के लिए पहले जहां ब्लास्टिंग का इस्तेमाल किया गया वहीं टनल बोरिंग मशीन ने साल 2009 में जोशीमठ के पास एक पुराने वॉटर सोर्स को पंक्चर कर दिया था जिससे जोशीमठ में पानी की समस्या तक पैदा हो गई थी. उस वक्त इसे लेकर काफी प्रदर्शन भी हुए थे और NTPC ने इस नुकसान की भरपाई करने की बात भी कही थी . हालांकि ये टनल बोरिंग मशीन कई बार फिर फंसी और इसे फिर निकाला गया जिसके लिए ब्लास्टिंग भी की गई और 2019 में ये आखिरी बार फंसी थी और अभी भी वहीं फंसी हुई है और टनल का काम 2 किलोमीटर तक का बचा हुआ है. फिर 7 फरवरी 2021 को रिशीगंगा में आई भीषण बाड़ ने भी जोशीमठ को काफी नुकसान पहुंचाया. इसके अलावा Helang Bypass के निर्माण के दौरान भी अहतियात नहीं बरती गई जिसका परिणाम आज जोशीमठ भुगत रहा है. सबसे हैरान करने वाली बात है कि इतने फ्रैजाइल एरियाज़ में इतने बड़े बड़े निर्माण करने के दौरान किसी तरह की hydrogeological study तक नहीं की गई कि धरती के अंदर पानी की क्या स्थिती है.

लेकिन ऐसा नहीं है कि इसमें सिर्फ सरकारों का ही दोष है. इसकी ओर आम लोगों को भी ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि जियोलॉजिस्ट्स की मानें तो जोशीमठ की भौगोलिक स्थिती के मुताबिक इसे एक गांव ही रहने देना चाहिए था लेकिन अर्बनाइज़ेंशन और व्यापार के चलते इस इलाके पर इमारतों का बोझ बढ़ता गया जिसका परिणाम आज हम भुगत रहे हैं. यही नहीं जियोलोजिस्ट्स की मानें तो जो जोशीमठ के नीचे अलकनंदा नदी बह रही है वो भी लगातार पहाड़ की स्लोप की जड़ को काट रही है. चार धाम परियोजना के खिलाफ भी सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी ताकि पहाड़ी इलाकों को बचाया जा सके लेकिन ये फैसला भी सरकार के हक में ही रहा था और अब जोशीमठ में इस परियोजना के परिणाम भी दिखने लगे हैं. यानी व्यापारियों से लेकर सरकारी बाबूओं और ईंजीनियर्स द्वारा जियोलॉजिस्ट्स की अनदेखी के चलते पहाड़ों का ये हाल हो रहा है. खैर ये तो इतिहास की बात हुई लेकिन क्या जोशीमठ को बचाया जा सकता है? इस पर जियोलोजिस्ट्स SP Satti का कहना है कि अब साइंस का कोई रोल नहीं रह गया है. अब तो सिर्फ लोगों को बचाने पर काम करना चाहिए क्योंकि जो नुकसान हो चुका है उसे अब ठीक नहीं किया जा सकता. यानी दुनिया के लिए ये स्वर्ग का द्वार न जाने अब किस घड़ी बंद हो जाए.

[निजी विचारों पर आधारित यह आलेख लिखा गया है.]

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