आतंकी हमले: भारत की आन, बान व शान पर आखिर क्यों है पाकिस्तान की नापाक निगाह?

हमारे दो पड़ोसी मुल्क ऐसे हैं जो कतई नहीं चाहते कि भारत अपनी आज़ादी की 75वीं सालगिरह को बड़ी धूमधाम व सुकून के साथ मनाये. पाकिस्तान तो अपने वजूद में आने के साथ ही हमारा दुश्मन बन गया था लेकिन अब चीन भी उसे भारत में आतंक फैलाने के लिए न सिर्फ उकसा रहा है बल्कि उसे भरपूर आर्थिक मदद भी दे रहा है. पिछले दो दिन में तीन आतंकी हमलों के जरिए कश्मीर घाटी को दहलाने की जो कोशिश की गई है उसके दो मकसद हैं.
एक तो ये कि घाटी के अमनपसंद लोगों में इतनी दहशत पैदा कर दी जाए कि वे देश की आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए घर से बाहर ही न निकलें. दूसरा यह कि दुनिया के मंच पर भारत के इस दावे को झूठा साबित किया जाए कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद वहां के हालात सामान्य हैं. यही वजह है कि आतंकी सिलसिलेवार हमले करके अपने मंसूबों को अंजाम देने में जुटे हैं. सुरक्षा बलों के सूत्रों को आशंका है कि कुछ आतंकी पाकिस्तान से ट्रेनिंग लेकर घाटी में घुसपैठ करने में कामयाब हो गए हैं और वे 15 अगस्त से पहले किसी बड़े आतंकी हमले को अंजाम देने के मौके की तलाश में हैं.
हालांकि स्वतंत्रता दिवस के मद्देनजर घाटी में सुरक्षा इंतजाम बेहद चाक-चौबंद हैं. इसके बावजूद अगर आतंकी अपने मंसूबों को पूरा करने में कामयाब हो रहे हैं तो मतलब साफ है कि उन्हें कट्टरपंथी सोच वाले स्थानीय लोगों की मदद मिल रही है. इसलिये पिछले तीन दशक से कश्मीर की नब्ज समझने वाले जानकार मानते हैं कि जब तक आतंकियों के इन स्थानीय "मददगारों" पर लगाम नहीं कसी जाती घाटी से पूरी तरह से आतंकवाद का खात्मा हो पाना लगभग नामुमकिन है.
सुरक्षा बलों का अनुमान है कि फ़िलहाल जम्मू-कश्मीर में तकरीबन 140 आतंकियों की मौजूदगी है. इनमें से 55 स्थानीय हैं जो जैश व लश्कर जैसे आतंकी समूहों के साथ जुड़े हुए हैं लेकिन करीब 85 आतंकी वे हैं जो मूल रूप से पाकिस्तानी हैं लेकिन किसी तरह से घाटी में घुसकर अपना ठिकाना बनाने में कामयाब हो गये हैं. लेकिन ये सब स्थानीय मदद मिले कभी मुमकिन नहीं हो सकता. हमारे सुरक्षा बलों की बड़ी मजबूरी ये है कि वे घाटी के हर घर में तलाशी अभियान नहीं छेड़ सकते. पुख्ता सूचना मिलने या शक होने पर ही उस खास घर या उसके आसपास के मकानों की तलाशी ली जाती है.
विश्लेषक कहते हैं कि सुरक्षा बलों को अगर हर घर तलाशी का हक मिल जाये तो हो सकता है कि एक ही साथ बड़ी तादाद में आतंकी और उनके मददगार पकड़ में आ जाएं. लेकिन सरकार चाहते हुए भी सुरक्षा बलों को ये इजाज़त नहीं दे सकती क्योंकि ऐसा होते ही घाटी में सक्रिय तमाम राजनीतिक दलों समेत ह्यूमन राइट्स संगठन इसे मानवाधिकार हनन और नागरिकों के उत्पीड़न का मुद्दा बनाते हुए हाहाकार करेंगे और अंतराष्ट्रीय मंचों पर भारत सरकार के ख़िलाफ़ अपना जहर उगलेंगे.
घाटी में सक्रिय आतंकवाद को लेकर राजनीतिक बयानबाजी चाहे जो होती रहे और सरकार भले ही इसके पूरी तरह से सफाया करने के जो मर्जी दावे करती रहे लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि साल भर पहले तक आतंकी समूहों ने अपनी सक्रियता घटाई थी. लेकिन उसके बाद पिछले दस महीनों में दर्ज़न भर से ज्यादा टारगेट किलिंग्स के जरिये वे अपनी मौजूदगी का अहसास करा रहे हैं. आतंक के ख़िलाफ़ होने वाले आपरेशन से जुड़े अधिकारी भी मानते हैं कि घाटी में मौजूद स्थानीय एवं विदेशी आतंकियों का अभी पूरी तरह से खात्मा नहीं हुआ है और दूसरी ज्यादा परेशान करने वाली बात ये है कि आतंकी समूहों के 'ब्रेनवॉश' करने वाले स्कूल से निकलने वाले इन 'फिदायीन' की भर्ती को आखिर कैसे रोका जाये. उनके मुताबिक इन दोनों मोर्चों पर जब तक हम ग्राउंड ज़ीरो पर कामयाब नहीं हो जाते, तब तक ये दिल बहलाने व खुद को तसल्ली देने वाला ख़्वाब ही है कि कश्मीर घाटी में अब सब कुछ सामान्य है. सिर्फ पत्थरबाजों पर नकेल कसने के बाद न तो निश्चिंत होकर बैठा जा सकता है और न ही आतंकवाद के पूरी तरह से सफाए का दावा ही किया जा सकता है.
दरअसल, हमारी खुफिया एजेंसियों ने सीमा पार से जो सूचनाएं जुटाई हैं उनके मुताबिक पाकिस्तान का सारा जोर अब "फिदायीन" दस्ते तैयार करने पर है. यानी ऐसे आतंकी जो अपने शरीर पर बम बांधकर खुद मरने के साथ ही उस हमले को इतना घातक बना सकें जिसमें ज्यादा से ज्यादा लोग मारे जाएं. बताया जाता है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के मनशेरा, कोटली व मुजफ्फराबाद इलाके में फ़िलहाल आतंकियों के दर्जन भर ट्रेनिंग कैंप सक्रिय हैं, जहां पांच सौ से भी ज़्यादा आतंकियों को ट्रेनिंग दी जा रही है. खुफिया जानकारी के अनुसार सीमा पार करने के लिए लॉन्चिंग पैड पर करीब 160 आतंकी तैयार बैठे हैं.
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