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ब्लॉग: देश की सर्वोच्च अदालत से मिलेगा उन्नाव की बेटी का इंसाफ

उन्नाव रेप पीड़िता के मामले में सुप्रीम कोर्ट तेजी से सक्रिय हो चुका है। अदालत ने आदेश दिया है कि इस मामले से जुड़े सारे मुकदमे अब राज्य बाहर ट्रांसफर किये जाये। कोर्ट के इस रुख से उन्नाव की बेटी के साथ इंसाफ की उम्मीद जगी है।

उत्तर प्रदेश में सुशासन का दावा कठघरे में आ गया है सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश से। उन्नाव केस में तो कम से कम यही सच है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद अब 45 दिन में फैसला होने की उम्मीद है। निचली अदालत रोजाना मामले की सुनवाई करेगी। इतना ही नहीं योगी सरकार को पीड़ित को 25 लाख रुपए बतौर मुआवजा देने होंगे। साथ ही पीड़ित के परिवार को सीआरपीएफ की सुरक्षा दी जाएगी। सत्ता और सिस्टम का लचर रवैया किस तरह विधायक की दबंगई के सामने बेबस बना था और पीड़ित को इंसाफ से दूर कर रहा था। ये अब खुल कर सबके सामने है, तब भी जब पीड़ित परिवार बार-बार अपनी जान की सुरक्षा की गुहार लगाता रहा। अपने साथ अनहोनी की आशंका जताता रहा। दो साल से चले आ रहे इस मामले में भाजपा ने विधायक पर कोई कार्रवाई नहीं की। आखिरकार जब सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई, मामला लखनऊ से दिल्ली पहुंच गया, तो सेंगर को पार्टी से बाहर करने की खबरें आने लगी। हालांकि इसे लेकर न तो लेकर कोई आधिकारिक बयान किसी नेता ने दिया, न ही कोई विज्ञप्ति जारी की गई। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेंगर का रसूख कितना बड़ा है। उन्नाव मामले को लेकर भाजपा और योगी सरकार चौतरफा घिर गई है।

सुप्रीम कोर्ट का केस ट्रांसफर करने का आदेश क्या यूपी पुलिस और प्रशासन की नाकामी का सबूत नहीं है? यूपी में उन्नाव पीड़ित को इंसाफ न मिल पाना क्या सत्ता तंत्र की दबंगई का सबूत नहीं है? और सबसे गंभीर सवाल जो योगी सरकार पर अब खड़ा हो रहा है कि क्या मजलूम और महिलाओं को सुरक्षा देने में नाकाम है योगी सरकार ?

सुप्रीम कोर्ट के एक फरमान ने पूरी की पूरी यूपी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। उन्नाव की रेप पीड़ित के सारे अंदेशों को सच साबित कर कर दिया। कुछ घंटे पहले तक भाजपा में रहे विधायक कुलदीप सेंगर की दबंगई को उजागर कर दिया। दबंग सत्ताधारी विधायक के रसूख में दबी पुलिस और प्रशासन की नाकामियों को सामने ला दिया सुप्रीम कोर्ट के एक फरमान ने। सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप पीड़िता का केस यूपी से ट्रांसफर कर दिल्ली करने का निर्देश दिया है। ये मांग पीड़ित परिवार लंबे समय से कर रहा था।

ये आरोप सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सच नज़र आने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट का निर्देश यूपी के तेज़तर्रार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए भी बड़ा झटका हो सकते हैं। आखिर कैसे उनके तमाम निर्देशों के बावजूद पुलिस और प्रशासन पीड़िता की गुहार पर कान बंद किए बैठा रहा आखिर कैसे प्रशासन रेप के आरोप में जेल में बंद विधायक की हरकतों पर आंख मूंदे बैठा रहा। रेप कांड को 25 महीने बीत गए और पीड़िता को इंसाफ की जगह मिला एक ऐसा हादसा, जिसने उसकी जिंदगी को वेंटिलेटर पर पहुंचा दिया। एक-एक सांस की जंग लड़ रही पीड़िता के लिए सुप्रीम कोर्ट का निर्देश उम्मीद की पहली किरण है।

इस मसले पर सियासत भी जमकर हो रही है। सपा और बसपा पहले ही सरकार की मंशा पर सवाल उठा चुकी है...और अब दूसरे नेता भी इसे लेकर खुल कर भाजपा सरकार पर निशाना साध रहे हैं....

इतने हंगामे के बाद जाहिर है कि आंच सिर्फ मुख्यमंत्री योगी तक नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी आलाकमान तक पहुंचनी ही थी। आनन-फानन में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतत्र देव सिंह को दिल्ली तलब किया गया और खुलेतौर पर एलान हुआ कि जेल में बंद आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेगर भाजपा से निकाल दिए गए हैं।

लेकिन लीपा-पोती का खेल अभी थमा नहीं है। पीड़ित से मिलने कई दिन बाद पहुंची महिला आयोग की अध्यक्ष विमला बाथम ने डॉक्टरों की रिपोर्ट से अलग अपनी रिपोर्ट जारी कर दी है।

महिला आयोग की अध्यक्ष विमला बाथम असल में तो भाजपा नेता हैं, पूर्व विधायक भी हैं तो क्या इसीलिए वो एक मज़लूम और रेप पीड़ित की गुहार से ज्यादा अपनी पार्टी को बचाने में जुटी हैं, क्या उन्हें अहसास नहीं है कि उनके बयान से पार्टी की और ज्यादा फजीहत हो सकती है।

सरकार की जिम्मेदारी होती है कानून व्यवस्था का पालन करवाना और लोगों को इंसाफ दिलाना। ये जिम्मेदारी तब और बढ़ जाती है जब मामला रेप पीड़ित का हो और आरोप सत्ताधारी पार्टी के विधायक पर हो। कानून की नजर में सब बराबर है। जनता के किसी नुमाइंदे पर रेप जैसे गंभीर आरोप का होना न सिर्फ सरकार, संगठन और सिस्टम पर सवाल होता है, बल्कि समूची सियासत और समाज के लिए शर्मनाक भी। ऐसे में सिर्फ आरोप कहकर विधायक के बचाव में दलीलें गढ़ना, लचर पैरवी करना या उसे रसूख दिखाने का मौका देना, लोकतंत्र के भरोसे को कमजोर करना है। तभी ऐसे मामलों में न्यायपालिका जब फैसला करती है या आदेश देती है तो पूरी व्यवस्था कठघरे में खड़ी नजर आती है।

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ओपिनियन

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