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सोनिया के 19 साल: 10 साल सत्ता दिलाई, अब इटालियन-भारतीय परंपरा से बेटे को सौंपी कमान

कांग्रेस की सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाली सोनिया गांधी ने रिटायर होने का फैसला किया है. बेटे राहुल गांधी ने आज नये अध्यक्ष की कमान संभाल ली है. एक दिन पहले ही सोनिया गांधी ने रिटायर होने की घोषणा कर एक बेहद समझदारी भरा काम किया है. सोनिया ने सभी कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं को साफ संकेत दे दिये हैं कि अब से कांग्रेस को लेकर सारे फैसले राहुल गांधी को ही लेने हैं और लोग टिकट नहीं मिलने या दूसरी अन्य किस्म की नाराजगी पर सोनिया की दर पर नहीं आएं.

इटालियन परंपरा को निभाया

इससे कांग्रेस के अंदर एक बड़ा कन्फुजन सोनिया गांधी ने अपनी तरफ से दूर कर दिया है. वैसे भी गुजरात चुनाव में सोनिया गांधी ने एक भी रैली नहीं की. रैली तो हिमाचल प्रदेश में भी नहीं की थी लेकिन वहां के मतदाताओं के नाम खुला खत जारी कर कांग्रेस को वोट देने की अपील की गयी थी लेकिन गुजरात के लिए तो अपील तक जारी नहीं की गयी. हो सकता है कि इसके पीछे की रणनीति यह रही हो कि सोनिया के चुनाव मैदान में आने या खत तक जारी करने से 2007 विधान सभा चुनाव का मौत का सौदागर वाला बयान ताजा हो जाएगा और राहुल को जवाब देना भारी पड़ेगा. खैर, जो भी वजह हो उसमें भी एक समझदारी दिखी. वैसे सोनिया गांधी इटालियन परंपराओं से गहराई से जुड़ी रही हैं और वहां भी विरासत लड़कों को ही सौंपी जाती है, लड़कियों को नहीं. यही वजह है कि प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति से दूर रखते हुए हमेशा राहुल गांधी को ही आगे बढ़ाया गया.

सोनिया गांधी रिटायर हो रही हैं तो क्या वह अगला लोकसभा चुनाव रायबरेली से नहीं लड़ेगी. लगता तो यही है हालांकि कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि सोनिया गांधी अध्यक्ष पद से रिटायर हो रही हैं और राजनीतक रुप से सक्रिय रहेंगी. अगर सोनिया गांधी रायबरेली से 2019 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ती हैं तो हो सकता है कि राहुल गांधी को अमेठी की जगह रायबरेली से चुनाव लड़वाया जाए और यह भी संभव है कि अमेठी से प्रियंका गांधी स्मृति ईरानी को टक्कर दें. (यह इस समय की कयासबाजी ही है लेकिन सच भी साबित हो सकती है). सोनिया गांधी मार्गदर्शक का काम कर सकती हैं. विपक्ष के नेताओं के साथ मिलकर महागठबंधन बनाने में राहुल की मदद कर सकती हैं. अभी तक तो यही देखा गया है कि राहुल गांधी से ज्यादा विपक्षी दलों में पैठ सोनिया गांधी की ही है. वैसे सोनिया गांधी के रिटायर होने से राहुल गांधी को अपनी टीम चुनने में आसानी होगी.

जब सोनिया ने परिपक्वता का परिचय दिया

एक दिलचस्प बात है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को राजनीति में आने से सोनिया गांधी ने रोका था. यह बात वह ऑन रिकार्ड भी कह चुकी हैं. तब उन्हें लगता था कि राजीव गांधी को राजनीति से दूर रहना चाहिए. यहां तक कि राजीव गांधी की हत्या के बाद भी सोनिया गांधी ने कांग्रेस नेताओं के बार-बार के आग्रह के बावजूद पार्टी की कमान संभालने से मना कर दिया था. तब कांग्रेस के एक बड़े नेता ने टिप्पणी की थी कि सोनिया गांधी ने मना कर परिपक्वता का परिचय दिया है और उनमें बड़ा नेता बनने के तमाम गुण हैं.

कांग्रेस को फिर अगले आठ साल तक सोनिया गांधी का इतंजार करना पड़ा. इस दौरान नरसिंह राव की सरकार के काम में सोनिया गांधी की तरफ से हस्तक्षेप करने के भी कम ही किस्से बाहर आए. अलबत्ता तमिलनाडू की राजनीति और डीएमके की भूमिका को लेकर सोनिया गांधी की नाराजगी की खबरें छपती रही थी और जैन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद कांग्रेस ने तब की केन्द्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. 1998 में कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार दो लोकसभा चुनाव हारी. यहां 1999 में उनकी राजनीतिक परिपक्वता भी सामने आई जब उन्होंने राष्ट्रपति से मिलने के बाद 272 सांसदों के समर्थन का दावा किया था और मुलायम सिंह यादव के लिए सिर्फ मुलायम सिंह शब्द का इस्तेमाल किया था. लेकिन सोनिया ने तब हार नहीं मानी थी. कांग्रेस को एकजुट करने का काम किया.

सोनिया की पहली परीक्षा

पहली राजनीतिक परीक्षा तो शरद पवार, अर्जुन सिंह, पी ए संगमा जैसे नेताओं ने सोनिया गांधी की भारतीयता का सवाल उठाकर सामने रखी थी. सोनिया गांधी ने तब चुनावी रैलियों में सिर पर दुपटटा रख इसका जवाब देने की कोशिश की थी. तब की एक शुरुआती रैली जोधपुर में हुई थी. वहां मेरा भी कवरेज के लिए जाना हुआ था. सोनिया के आने में समय था और मैं भाषण सुनने आई ग्रामीण महिलाओं से सोनिया के विदेशी मूल पर सवाल जवाब कर रहा था. एक गांव की बूढ़ी महिला ने तब कहा था कि बहु तो हमेशा से बाहर से ही आती हैं. सोनिया भी बाहर से आई लेकिन यहां आने के बाद उन्होंने ऐसा क्या नहीं किया जो एक भारतीय दुल्हन नहीं करती है. यानि उनकी नजर में सोनिया गांधी ने भारतीय बहु की तरह ही व्यवहार किया और ससुराल की लाज रखी. यही बात अगले दिन हरियाणा में हुई सोनिया की रैली में वहां पहुंची गांव की महिलाओं ने कही थी.

जाहिर है कि विपक्षी दल खासतौर से बीजेपी भले ही सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर उबल रहे हों लेकिन देश की महिलाओं ने सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे को खत्म कर दिया था. बाद में अर्जुन सिंह की कांग्रेस में वापसी हुई, शरगद पवार ने सोनिया का कांग्रेस से मिलकर महाराष्ट्र में सरकार चलाई और पी ए संगमा की बेटी अगाथा संगमा मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री तक बनी. मुझे याद है कि जब राष्ट्रपति अगाथा संगमा को मंत्री पद की शपथ दिलवा रहे थे तो अगली पंक्ति में बैठी सोनिया गांधी बड़ी ही ममतामयी नजरों से अगाथा निहार रही थी जैसे कि प्रियंका गांधी शपथ ले रही हों. सोनिया गांधी ने अपनी तरफ से पी ए संगमा का भी दिल जरुर जीता होगा.

एक बार कांग्रेस के बड़े नेता ने आपसी बातचीत में कहा था कि आम कांग्रेसी नेता को नेहरु- गांधी परिवार का साया सिर पर सिर्फ इसलिए चाहिए ताकि वह चुनाव जीत सके यानि नेहरु- गांधी परिवार की अहमिलत इसलिए है कि वह चुनाव जितवाने का माद्दा रखते हैं. विपक्ष को किया धूलधूसरित

सोनिया गांधी यहां भी 2004 और 2009 में खरी उतरी. इंडिया शाइनिंग और भारत उदय के उस दौर में कौन भला सोच सकता था कि वाजपेयी की सरकार चली जाएगी और कांग्रेस को सत्ता में आने का मौका मिलेगा. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली में कांग्रेस की जबरदस्त हार हुई थी. लेकिन लोकसभा चुनाव में हार की सारी कसक दूर हो गयी थी. चुनाव जीतने के साथ ही सोनिया गांधी के सामने सबसे बड़ी परीक्षा मुंह बाय खड़ी थी. एक तरफ प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पूरी करने का मौका था तो दूसरी तरफ विदेशी मूल के मुद्दे पर नेस्तनाबूद कर राहुल गांधी के लिए आगे की जमीन तैयार करने का मौका. तब आपको याद होगा सुषमा स्वराज और उमा भारती के बयान. कोई कह रहा था कि सोनिया प्रधानमंत्री बनी तो खाट पर सोना त्याग दिया जाएगा और चने खा कर जिंदगी जी जाएगी तो कोई सिर घुटा देने की बात कर रहा था. तब सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह का नाम आगे कर विपक्ष की सारी राजनीतिक को एक झटके में धूलधूसरित कर दिया था.

हालांकि राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी ) का गठन कर सोनिया गांधी ने अपनी सामांनतर सरकार चलाई, वह भी बिना किसी जिम्मेदारी के. इस दौरान झोलेवालों ( एनजीओ ) से कांग्रेस के मंत्री परेशान रहते थे जिन्हें सोनिया गांधी तरजीह दिया करती थी. हालांकि यह बात भी सच है कि सोनिया और एनएसी के कारण ही देश को सूचना का अधिकार जैसा कानून मिला. मनरेगा भी सोनिया की वजह से ही आया जिसने यूपीए-2 को सत्ता दिलवाने में भूमिका निभाई. राइट टू एजूकेशन से लेकर लोकपाल के गठन तक में सोनिया की भूमिका रही. इससे भी बड़ी बात है कि कुछ सहायक दलों के विरोध के बाद भी सोनिया गांधी के कारण ही महिला आरक्षण बिल राज्यसभा में पारित हो सका. लेकिन इस दौरान उनपर यही आरोप लगता रहा कि असली सरकार तो दस जनपथ से चल रही है. यहां तक कि जब राहुल गांधी ने सजायाफ्ता नेताओं को राहत देने वाले बिल को फाड़ा और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इकबाल का अपमान किया तब सोनिया गांधी पुत्रमोह में चुप रहीं. 2013 में जयपुर में कांग्रेस अधिवेशन में सोनिया गांधी के सामने राहुल गांधी को उपाध्यक्ष पद की कमान सौंपी गयी थी. तब सोनिया ने कहा था कि वह 70 साल की होने पर रिटायर होना चाहती हैं. अब वह 70 साल की हो चुकी हैं और रिटायर हो रहीं हैं. हो सकता है कि सोनिया गांधी में यह कसक रहे कि वह सक्रिय राजनीति में खुद के रहते रहते वह राहुल गांधी की झोली में बड़ी उपलब्धियों को नहीं देख सकीं.

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