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रुस-यूक्रेन जंग: अमेरिका इस आग को बुझाने की बजाय उसमें घी क्यों डाल रहा है ?

भारत समेत समूची दुनिया बर्बादी के जिस मंजर को न अपनी आंखों से देखना चाहती है और न ही उसका शिकार बनना लेकिन रुस-यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग शायद उसी रास्ते पर आगे बढ़ती हुई लग रही है.अमेरिका ने रूस के ख़िलाफ़ कल और भी ज्यादा कड़े प्रतिबंध लगाकर रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सीधे तौर पर धमकी दे डाली है कि रुस और नाटो सेनाओं के बीच होने वाली जंग का अंजाम तीसरा विश्व युद्ध होगा.

पिछले 17 दिन से चली आ रही इस लड़ाई में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पहली बार इतनी तल्ख व चेतावनी भरी भाषा का इस्तेमाल किया है.इसीलिये अन्तराष्ट्रीय कूटनीति के विशेषज्ञ कहते हैं कि अमेरिका की इस धमकी को हल्के में नहीं लिया जा सकता और आने वाले दिनों में ये जंग थमने की बजाय हालात और भी ज्यादा बिगड़ने के खतरा सामने नज़र आ रहा है.बाइडन ने यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेन्सकी से फोन पर बात करके उनकी जो हौसला अफजाई की है,उसे कूटनीतिक जगत में एक बड़े खतरे का संकेत समझा जा रहा है.लिहाज़ा,ये मान लेना कि एक छोटे-से मुल्क पर इतने दिनों से हो रही बमों की बारिश इतनी जल्द थमने वाली है,बड़ी भूल होगी.

हालांकि बाइडन ने शुक्रवार को ये भी साफ कर दिया कि अमेरिका,रुस से सीधे युध्द नहीं लड़ेगा लेकिन जिस अंदाज में उन्होंने पुतिन को धमकाया है,उससे ऐसे आसार नजर आ रहे हैं कि दुनिया की दो सबसे बड़ी ताकतें सिर्फ अपने अहंकार के लिए पूरी मानवता को विनाश की भट्टी में झोंकने के लिए मानो तैयार खड़ी हैं.लेकिन गौतम बुद्ध के दिखाये अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले भारत ने दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यानी संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की बैठक में कल फिर यही दोहराया कि कूटनीति और बातचीत के जरिये ही इसका समाधान निकाला जाये और दुनिया को किसी भी तरह के युद्ध की आग में न झोंका जाये.

लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति का ये बयान सामने के बाद ही दूसरा बड़ा घटनाक्रम जो हुआ है,वह कूटनीति के विशेषज्ञों को भी चौंकाने वाला लग रहा है.रुस और यूक्रेन के बीच छिड़ी इस जंग के बीच दोनों देशों को बातचीत की टेबल पर लाने के लिए तैयार करने वाला दुनिया का पहला देश था-इजरायल. उसकी मध्यस्थता के बाद ही दोनों मुल्कों के बीच औपचारिक तौर पर तीन दौर की वार्ता हो चुकी है.इजरायली राष्ट्रपति बेनेट नेफ्टाली इस युद्ध को ख़त्म करवाने के लिए पिछले हफ्ते पुतिन से मिलने के लिये मास्को भी जा पहुंचे थे.लेकिन वही इजरायल अब एकाएक अपना पाला बदलता दिख रहा है.वजह ये कि इजरायली राष्ट्रपति ने शुक्रवार को यूक्रेनी राष्ट्रपति से हुई बातचीत में साफ कह दिया है कि "अगर युद्ध रोकना है,तो वे पुतिन का प्रस्ताव मान लें."

कूटनीतिक भाषा में इसे चाशनी में लिपटी हुई धमकी से कमतर नहीं माना जाता क्योंकि इजरायल को भी अहसास हो गया है कि यूक्रेन का साथ देने के लिए अब अमेरिका भी खुलकर मैदान में आ गया है.लिहाज़ा,उसने रुस के पाले में जाकर उसकी ही जुबान बोलना शुरु कर दी है.सामरिक विशेषज्ञ इसे भी शुभ संकेत नहीं मानते और उनके मुताबिक अमेरिका अब और ज्यादा भड़केगा.

लेकिन बेशरमी की हद देखिये कि सैकड़ों बेगुनाह लोगों को मौत की नींद सुला देने वाले और 25 लाख से ज्यादा नागरिकों को अपना वतन छोड़ने पर मजबूर कर देने वाले इस युद्ध की शुरुआत के लिये अब दुनिया की दोनों बड़ी ताकतें एक-दूसरे को कसूरवार साबित करने में जुट गई हैं.शुक्रवार को हुई UN सुरक्षा परिषद की बैठक में रुस ने दावा किया कि यूक्रेन के पास केमिकल वेपन यानी जैविक हथियार है और वो अपने यहां पर बायोलॉजिकल लैब्स (Biological Labs) चला रहा है. उसका आरोप तो ये भी है कि ये सब अमेरिका के इशारे पर हो रहा है और वो रुस के ख़िलाफ़ ही इसके लिए यूक्रेन की धरती का इस्तेमाल कर रहा है.हालांकि अमेरिका ने उसके इस दावे को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि रुस अपने हमले को सही साबित करने के लिए एक बड़े झूठ के जरिये दुनिया को गुमराह करना चाहता है.

हालांकि रुस, अमेरिका व यूक्रेन के सिवा दुनिया का कोई भी देश ये नहीं जानता कि आखिर सच कौन बोल रहा है.लेकिन रुस ने  अपने हमले को जायज ठहराने के लिए जो दलील दी है,वैसी ही दलीलें हमें अपने देश की अदालतों में सुनने को मिलती हैं लेकिन कानून विस्फोटक दलीलों को सुनकर नहीं बल्कि सबूतों के आधार पर ही अपना फैसला सुनाता है.

सुरक्षा परिषद की बैठक में रूस ने दावा किया है कि उसके रक्षा मंत्रालय के पास अब ऐसे दस्तावेज हैं जो इसकी तस्दीक करते हैं कि यूक्रेन में कम से कम 30 जैविक सीमाओं वाला एक नेटवर्क था,जहां खतरनाक जैविक प्रयोग किए गए थे. लेकिन अमेरिका ने रुस के इस दावे को सिरे से नकारते हुए कहा कि यूक्रेन के पास किसी भी तरह का बायोलॉजिकल वेपन प्रोग्राम नहीं है और ये भी कि यूक्रेन में अमेरिका के समर्थन से चलने वाली एक भी बायोलॉजिकल लैब्स नहीं हैं. ऐसी कोई भी लैब रूस की सीमा या उसके आस-पास नहीं है. अमेरिका ने उल्टे रुस पर ये आरोप जड़ दिया कि  रूस ने इस बैठक का आयोजन सिर्फ इसलिए किया,ताकि वो यहां पर झूठ और गलत सूचनाओं को फैला सके.सच तो ये है कि रूस,यूक्रेन के खिलाफ राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के युद्ध के फैसले को सही ठहराने के लिए गलत सूचना को सही बना रहा है. साथ ही वो अन्तराष्ट्रीय बिरादरी को धोखा देने के लिए सुरक्षा परिषद का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है.लेकिन चीन भी रूस के समर्थन में इस दुष्प्रचार को फैला रहा है. तो अब बड़ा सवाल ये है कि क्या अमेरिका सचमुच इस जंग को टालना चाहता है या फिर इस आग में घी डालकर उसे और भड़काना चाहता है?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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