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BLOG: फेक न्यूज की महिमा अपरंपार है, चुगली इसकी मम्मी है!

आजकल फेक न्यूज का बड़ा हल्ला है. कई लोग फेक न्यूज फेंक कर मंद-मंद मुस्काते हैं और कई लोग भय से थर-थर कांपते रहते हैं कि पता नहीं कौन फेक न्यूज का गुब्बारा फोड़ कर ऐन दीवाली पर ही होली खेल जाए! फेक न्यूज फैलाने वाले शूरवीर भूमिगत रहते हैं और आसानी से पकड़ में इसलिए नहीं आते कि फेक न्यूज की ही तरह उनकी आइडेंटिटी भी फेक होती है. फेक न्यूज अपने विरोधियों के चेहरे पर कालिख मलने के काम आती है. इसकी रचना-प्रक्रिया कुछ इस तरह है:-
हर्र लगे न फिटकरी फिर भी रंग चोखा करने के महान इरादे से हवाहवाई खबर पैदा करनी पड़ती है. विरोधियों के चेहरों को फोटोशॉप के जरिए हास्यास्पद बनाना पड़ता है. होनूलुलू की फोटो को झुमरीतलैया का बताना पड़ता है. राम के मुंह में रहमान का ऑडियो डालना पड़ता है. अमरीश पुरी के धड़ पर अमिताभ का सिर फिट करना पड़ता है. लेकिन जब यही शिल्पकारी दूसरे पक्ष की फेक सेना करने लगती है तो फाउल-फाउल चिल्लाना पड़ता है. यह वैसा ही अमल है जैसे कि मंदिर से अक्सर चप्पल-जूते चुराने वाला शख्स पकड़े जाने की सूरत में खुद अपने चप्पल-जूते चोरी हो जाने का शोर मचाता है और पतली गली से निकल लेता है.
भारत में जब इस मामले की कलई खुलने लगी तो फेक न्यूज फैलाने वालों ने आपात मीटिंग करके इसके बढ़ते दुष्प्रभाव पर गहन चिंता जताई. फेक न्यूज को फाइनेंस करने वालों ने इसे शैतानी हरकत बताते हुए घंटों भाषण दिए. फेक न्यूज की कॉपी लिखने वालों ने संपादकीय पन्ने काले कर दिए. व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में शोक सभाएं हुईं. सोशल मीडिया पर धरना-प्रदर्शन हुए. नगरों में दूधिया लाइट तले मोमबत्ती जुलूस निकल पड़े. अचानक पैदा हुई इस भयंकर जागरूकता के दबाव में दोषियों को सजा देने पर उच्चस्तरीय गंभीर विचार-विमर्श हुआ. लेकिन होना-जाना कुछ नहीं था. अंधेरे एसी रूम में संगठित फेक न्यूज इंडस्ट्री के दिग्गजों का आपसी गुप्त समझौता हो गया. बात आई गई हो गई. अब सेल्फ रेग्युलेटेड फेक न्यूज की बहार आ गई.
मुझे लगता है फेंकू शब्द की उत्पत्ति फेक शब्द से ही हुई है. अगर फेक न्यूज का अस्तित्व न होता तो हमारे देश में फेंकू भी न पैदा होते. इसका नाभिनाल संबंध भारतीय समाज के प्राचीन और लोकप्रिय व्यसन चुगली से भी जोड़ा जा सकता है. चुगली करने वाले जिस तरह मूल स्टोरी में अपनी उर्वर कल्पनाशक्ति से काम लेते हैं, फेक न्यूज में भी कुछ-कुछ ऐसा ही होता है और परिणाम भी एकसमान निकलता है, यानी सिरफुटौव्वल! अतः फेक न्यूज फैलाने वालों की असल प्रेरणा भारत के माहिर चुगलीबाज ही हैं, इति सिद्धम्!
प्रमाण भी देता हूं- कोई गुणवान चुगलखोर कान में फुसफुसाता है कि किसी सवर्ण पड़ोसी की लड़की को अवर्ण लड़का भगा ले गया है. लेकिन उसमें सच्चाई का अंश मात्र इतना ही होता है कि लड़की अपने चचेरे भाई के साथ मामा के यहां गई हुई थी. इसी तर्ज पर कहीं के दंगे का फोटो चेंप कर फेक न्यूज बताती है कि धार्मिक ग्रंथ का अपमान होने पर एक समुदाय के लोगों ने संगठित होकर दूसरे समुदाय पर बर्बर हमला कर दिया, जबकि असल न्यूज यह होती है कि बकरी चराने के विवाद में एक ही समुदाय के लोग आपस में भिड़ गए थे! फेक न्यूज की महिमा अपरंपार है. यह सूचनाएं नहीं, वोट बरसाती हैं.
बहस इस बात को लेकर भी है कि मेरी फेक न्यूज से तुम्हारी फेक न्यूज ज्यादा काली कैसे? इसका निबटारा इस बात से हो सकता है कि किसी मुद्दे या अफवाह से जुड़े फर्जी लिंक कौन ज्यादा प्रामाणिक तरीके से तैयार कर सकता है, तस्वीरों की मॉर्फिंग में गच्चा देने की बेहतर कलाकारी किसे आती है, फर्जी वीडियो बनाने में एडीटिंग और लिप सिंकिंग वगैरह की सफाई किसके काम में अधिक है, पाठकों-दर्शकों को तमाशाई से दंगाई बनाने में कंवर्जन रेट किसका ज्यादा है? जो पक्ष इस हुनर में कमतर पड़े उसे तकनीक में पिछड़ा हुआ मानकर उसकी फेक न्यूज की फैक्ट्री में अलीगढ़ का ताला जड़ दिया जाए. यह काम प्रेस काउंसिल अथवा पुलिस-उलिस के वश का नहीं है. इसके लिए तत्काल प्रभाव से फेक लोकपाल नियुक्त करना होगा अथवा फेक न्यूज विशेषज्ञों की एक समिति गठित करनी होगी जो नीर-क्षीर विवेक से अपना स्पष्ट निर्णय लेगी और फेंकुओं की तरह गोल-मोल बातें नहीं करेगी.
भारतीय राजनीति में फेक न्यूज अपना अभूतपूर्व योगदान दे रही है. यह दीगर बात है कि कुछ सिरफिरे और सत्यनिष्ठ लोग इसे अनैतिक बताते हैं. लेकिन हमें उन्हें पिछड़े विचारों वाला करार देकर नजरअंदाज कर देना चाहिए. अगर इन पोंगापंथियों की नैतिकता के चक्कर में पड़ गए, तब तो जीत चुके चुनाव! अरे भाई, लोकतंत्र में चुनाव जीतने से परम और चरम उद्देश्य भला कोई और होता है क्या?
कृपया विजयप्राप्ति के साधनों की पवित्रता, असहमति का सम्मान और लेवल प्लेइंग फील्ड जैसे विधर्मी टर्मों का अनर्गल प्रलाप करके लक्ष्य से भटकाया न जाए. फेक न्यूज नहीं होगी तो खाक ध्रुवीकरण होगा! क्या आप चाहते हैं कि विरोधियों की सरकार बन जाए? इसका मतलब आप भी फेक हैं और हमारे विरोध में फेंक रहे हैं. ओरिजिनल न्यूज की बात बाद में कर लेंगे, फिलहाल दोनों भुजाएं उठाकर फुल गले से- ‘फेक न्यूज मैय्या की जय!’
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(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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