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BLOG: कोरोना के संकट के बीच औरतों के लिए एक संकट पीपीई का भी है

पीपीई यानी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण महिलाओं को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं. उनकी जरूरतों के हिसाब के नहीं हैं.

औरतों की जरूरतों के बारे में सोचकर योजनाएं नहीं बनाई जातीं- न फैसले किए जाते हैं. कोविड-19 के प्रकोप के बीच भी ऐसा ही हुआ है. महिला प्रवासियों की जरूरतें, पुरुष प्रवासियों से बहुत अलग हैं- ऐसा ही स्वास्थ्यकर्मियों के लिए भी कहा जा सकता है. कोविड-19 जैसी महामारी हेल्थकेयर वर्कर्स पर अलग ही सितम ढा रही है. खासकर महिला हेल्थकेयर वर्कर्स पर. अब सुनने में आ रहा है कि पीपीई यानी व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण महिलाओं को ध्यान में रखकर नहीं बनाए गए हैं. उनकी जरूरतों के हिसाब के नहीं हैं- महिला हेल्थकेयर वर्कर्स को इसके साथ बहुत सारी दिक्कतें आ रही हैं. और इनके बिना उनका गुजारा भी नहीं है.

केयर गिविंग औरतों की ही जिम्मेदारी

हमारे देश ही नहीं, पूरी दुनिया में हेल्थकेयर वर्क में औरतों की संख्या बहुत बड़ी है. डब्ल्यूएचओ ने 104 देशों के अध्ययनों की मदद से बताया है कि दुनिया भर में हेल्थकेयर और सोशल वर्कर्स यानी नर्स, मिडवाइफ या दूसरी सेवाओं में महिलाओं का हिस्सा 70 प्रतिशत है. उसके पिछले साल के हेल्थ वर्कफोर्स के वर्किंग पेपर में यह बात कही गई है. भारत में नेशनल सैंपल सर्वे के 68वें चरण की रोजगार संबंधी रिपोर्ट में कहा गया है कि क्वालिफाइड नर्स और मिडवाइव्स जैसे पेशों में औरतों की संख्या 88.9 प्रतिशत है.

दरअसल केयर गिविंग का सारा काम अधिकतर औरतों के ही हिस्से आता है. हमारे देश में बहुत से राज्यों में आंगनवाड़ी कर्मचारियों में भी औरतों की संख्या काफी बड़ी है. आशा वर्कर्स भी औरतें ही हैं. देश में लगभग दस लाख सामुदायिक हेल्थ वर्कर्स में अधिकतर आशा हैं और आंगनवाड़ी कर्मचारियों में 14 लाख महिलाएं हैं. कोविड-19 के हाहाकार के बीच उनसे कहा गया है कि वे अपने इलाके में इस बीमारी के लक्षणों पर नजर रखें. ऐसे में उनके लिए सुरक्षा बहुत मायने रखती है. चूंकि उन्हें संक्रमण का सबसे पहले खतरा है. लेकिन पीपीई उनके हिसाब से तैयार नहीं किए गए हैं. अधिकतर छह फुट के पुरुषों के लिए मुफीद हैं- महिलाएं तो बस उन्हें पहन भर लेती हैं.

पीपीई के मामले में भेदभाव

पीपीई सूट्स की बात करें, तो उनके साइज और फिटिंग को लेकर कई तरह की समस्याएं हैं. कई जगहों पर तो एन 95 मास्क उपलब्ध ही नहीं है. जहां हैं, वहां पुरुषों के चौड़े चेहरे के अनुसार बनाए गए हैं. इन्हें जबरदस्ती बांधने या नोस ब्रिज को ढंकने के फेर में त्वचा को नुकसान हो रहा है. इसके अलावा गॉगल्स, शील्ड्स, कवरऑल जैसी कई दूसरी चीजें महिला हेल्थवर्कर्स के शरीर के हिसाब से काफी बड़ी हैं. कवरऑल्स के बाजू और ट्राउजर बहुत लंबे और ढीले ढाले हैं, जिससे पीपीई को पहनना या न पहनना एक ही बात है.

इस संबंध में गार्डियन जैसे अखबार ने एक लेख प्रकाशित किया है जिसमें ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन की यूके कंसल्टेंट कमिटी की उपाध्यक्ष डॉ. हेलन फिलडर ने कहा था कि महिला हेल्थकेयर वर्कर्स की जान हमेशा जोखिम में रहती हैं. चूंकि उन्हें सही मास्क नहीं मिलते. ब्रिटेन की एक्टिविस्ट और लेखिका कैरोलिन क्रेडो

पेरेज ने एक किताब लिखी है, इनविज़िबल विमेन. इसमें बताया गया है कि कैसे रोजाना इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं को महिलाओं नहीं, पुरुषों के हिसाब से डिजाइन किया गया है. इस किताब में पीपीई पर एक पूरा अध्याय है जिसमें औरतों ने पीपीई से जुड़ी अपनी दिक्कतों के बारे में बताया है. यह भी कि पूरी तरह से फिट न होने के कारण किस तरह महिला हेल्थ वर्कर्स के लिए संक्रमण का खतरा बना रहता है.

चूंकि औरतों को हर पड़ाव से गुजरना होता है

एक विषय पर ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जाता. औरतों के जीवन में कई पड़ाव होते हैं. उन्हें पीरियड्स होते हैं- वे गर्भवती भी होती हैं, और बच्चों को ब्रेस्ट फीड भी कराती हैं. इन सभी पड़ावों में उनके कम्फर्ट की तरफ भी लोगों का ध्यान जाना चाहिए. पीपीई बनाते वक्त यह याद नहीं रखा जाता कि जिन महिला हेल्थवर्कर्स को इन्हें पहनना है, वे इन सभी पड़ावों से गुजरती हैं. उन्हें टॉयलेट्स भी इस्तेमाल करना होता है, और पैड्स भी बदलने होते हैं. लेकिन कवर ऑल्स इसमें कोई राहत नहीं देते. यूथ की आवाज जैसी वेबसाइट पर अपनी आपबीती बताने वाली बेंगलुरू एक महिला डॉक्टर ने कहा, हमारे कवरऑल्स में धब्बे लग जाते हैं, पर हम कुछ नहीं कर सकते. वैसे पीपीई सूट इतना महंगा है तो उसे खराब भी नहीं होना चाहिए. लंबे समय तक पैड्स न बदलने के कारण मैन्स्ट्रुअल हाइजीन का मसला भी रहता है. गर्भवती हेल्थ केयर वर्कर को कई बार वॉशरूम जाना पड़ता है, जो पीपीई सूट्स के साथ बड़ी परेशानी है. ब्रेस्ट फीड कराने वाली महिलाओं को शारीरिक असुविधा का सामना करना पड़ता है.

करें यह कि हर प्रॉडक्ट को औरतों के लिहाज से भी बनाएं

इन समस्याओं का हल क्या है.. हल यह है कि किसी प्रॉडक्ट को डिजाइन करने में औरतों को भी भागीदार बनाएं. नीतियां और योजनाएं बनाते समय औरतों को भी प्रतिनिधित्व दें. जैसे सबसे पहले पीपीई को औरतों के लिहाज से तैयार किया जाना चाहिए. उनकी शारीरिक बनावट के हिसाब से. उन्हें दो पीस में तैयार किया जा सकता है- अपर बॉडी पार्ट के लिए अलग, और लोअर अलग. अस्पतालों को भी उन्हें खरीदते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए. और उनके पास कई साइज का विकल्प भी होना चाहिए. पीरियड्स के समय के लिए अतिरिक्त पीपीई सूट होना चाहिए. साथ ही महिला हेल्थ वर्कर्स को रोटेशन में शिफ्ट करने का मौका मिलना चाहिए.

दरअसल पीपीई पैकेज में मैन्स्ट्रुअल प्रॉडक्ट्स को हमेशा नजरंदाज किया जाता है. चीन में जब कोरोना संकट गहराया तो इस बात पर भी चिंता जाहिर की गई है कि लंबी शिफ्ट्स में शरीर को पूरी तरह से ढंकने वाले जंपसूट्स के साथ कैसे काम किया जाएगा. महिला हेल्थवर्कर्स पीरियड्स के दौरान क्या करेंगी. तब शंघाई के एक अस्पताल ने यह घोषणा की कि वह हारमोनल बर्थ कंट्रोल पिल्स देगा ताकि महिला हेल्थ वर्कर्स के पीरियड्स को पोस्टपोन किया जा सके. इस कदम की आलोचना हुई और कहा गया कि इसके बजाय पैड, टैम्पोन्स, पीरियड अंडरवियर और एडल्ट डायपर्स दिए जाएं.

दुनिया भर में हेल्थकेयर और सोशल वर्कर्स फ्रंटलाइन पर काम करती हैं इसलिए उनके बीमार होने की आशंका अधिक है. यह सीधा-सीधा औरतों को अधिक प्रभावित करता है. कोविड 19 का भी एक जेंडर पहलू है, जिसे अब समझा जा रहा है. इस हालात में अगर उनकी सुरक्षा का भी ख्याल नहीं किया जाएगा तो हालात और भयावह हो जाएंगे.

(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

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