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ग़ुलामी भरे इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दिया जायेगा आज दिल्ली का "राजपथ"!

Rajpath Becomes Kartavya Path: 75 बरस पहले देश को आजादी मिलने के बाद आज यानी 8 सितंबर को मोदी सरकार (Modi Govt) देश के इतिहास की एक नई इबारत लिखने जा रही है. इतने सालों में जो कभी किसी सरकार ने सोचा तक नहीं, उसी ग़ुलामी की निशानी को वो आज पूरे जोशो-खरोश के साथ मिटाने जा रही है. दरअसल, इसके जरिये ब्रिटेन समेत दुनिया के बाकी देशों को ये संदेश दिया जा रहा है कि भारत अब उस हैसियत में आ चुका है कि वो गुलामी (Slavery) की हर निशानी को मिटाने की ताकत रखता है.

हालांकि ये सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि ब्रिटिश हुक्मरानों के लिए भी एक ऐसा ऐतिहासिक पल होगा,जब वे भी देखेंगे कि सिर्फ एक महत्वपूर्ण सड़क का नाम बदल देने भर से ही भारत दासता की जंजीरों की निशानी बने एक नाम को चकनाचूर करके उसे किस तरह से डस्टबिन में फेंकने का हौंसला रखता है. आज शाम को पीएम मोदी जब ब्रिटिश वास्तुविद एडमंड लुटियंस की बनायी नयी दिल्ली की तस्वीर बदलने वाले सेंट्रल विस्टा का उद्घाटन करेंगे, ठीक उसी वक़्त से राजपथ का नाम भी "कर्त्तव्य पथ" हो जायेगा.
            
दरअसल, इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन को जोड़ने वाली ये ऐसी सड़क है, जहां देश को आज़ादी मिलने के बाद भी उससे गुजरने वाले हर देशवासी को वो ये अहसास दिलाती रही है कि ये राजपथ (Rajpath) है, यानी ये वो रास्ता है, जहां से सिर्फ राजा ही आया-जाया करते हैं. अंग्रेजों ने तकरीबन 190 साल तक भारत पर राज किया और जब वे यहां से गये तो इतना कुछ लूटकर ले गए कि हमारे देश का खजाना ही खाली हो गया. ब्रिटिश हुकूमत के दौरान साल 1911 में जब जार्ज पंचम भारत आये तो उनकी शान में इस सड़क का नाम "किंग्स वे" रखा गया, यानी ये राजा के आवागमन का मार्ग है.

आज़ादी मिलने के बाद पंडित नेहरु की सरकार को उनके सलाहकारों ने सुझाया कि हमें इस सड़क का नाम भी अब बदल देना चाहिए और तय ये हुआ कि इसका भाषायी अनुवाद करते हुए इसका नाम राजपथ रख दिया जाये. तबसे लेकर वही नाम चला आ रहा था, जो आज शाम से इतिहास की किताब का आखिरी काला पन्ना बनकर रह जायेगा. अंग्रेजों की गुलामी वाली निशानियों को मिटाना, सिर्फ पीएम मोदी या उनकी सरकार का ही मकसद नहीं है बल्कि ये आरएसएस यानी संघ के एजेंडे में शुरु से ही सर्वोपरि रहा है. शायद इसीलिए बीते स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से पीएम ने देशसवासियों से जिन पांच संकल्पों को अपनाने का आह्वान किया था, उसमें से एक ये भी था कि गुलामी के प्रतीक चिन्हों को भी हमें मिटाना है.

एक अहम बात ये भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) लगभग हर हफ्ते देश के किसी हिस्से में या तो किसी योजना की आधारशिला रखते हैं या फिर किसी का शुभारंभ करते हैं, लेकिन सेंट्रल विस्टा (Central Vista) को जनता को समर्पित करने के साथ ही 'कर्तव्य पथ' का उद्घाटन उनके लिए कितना अहम है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि इसे लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय यानी पीएमओ ने विस्तृत बयान जारी किया है, ताकि विपक्ष इस पर कोई उंगली न उठा सके.

पीएमओ ने कहा कि पूर्ववर्ती ‘राजपथ’सत्ता का प्रतीक था और उसे ‘कर्तव्य पथ’का नाम दिया जाना बदलाव का परिचायक है और यह सार्वजनिक स्वामित्व और सशक्तीकरण का एक उदाहरण भी है. ‘कर्तव्य पथ’का उद्घाटन और सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण प्रधानमंत्री के अमृत काल में नए भारत के लिए ‘पंच प्रण’ के आह्वान के दूसरे प्रण के अनुकूल है, जिसमें उन्होंने औपनिवेशिक मानसिकता की हर निशानी को समाप्त करने की बात कही थी. राजपथ और सेंट्रल विस्टा एवेन्यू के आसपास के इलाकों में भीड़ के कारण बुनियादी ढांचे पर पड़ते दबाव और सार्वजनिक शौचालय, पीने के पानी, स्ट्रीट लाइट, फर्नीचर और पार्किंग स्थल की पर्याप्त व्यवस्था जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण राजपथ का पुनर्विकास किया गया है.

पीएमओ ने विपक्ष की तरफ से कोई भी आरोप लगने से पहले ही ये स्पष्ट कर दिया है कि इसमें Architecture यानी वास्तु शिल्प का चरित्र बनाये रखने और अखंडता भी सुनिश्चित की गई है. 'कर्तव्य पथ' बेहतर सार्वजनिक स्थानों और सुविधाओं को प्रदर्शित करेगा, जिसमें पैदल रास्ते के साथ लॉन, हरे-भरे स्थान, नवीनीकृत नहरें, मार्गों के पास लगे बेहतर बोर्ड, नयी सुविधाओं वाले ब्लॉक और बिक्री स्टॉल होंगे. इसके अलावा इसमें पैदल यात्रियों के लिए नए अंडरपास, बेहतर पार्किंग स्थल, नए प्रदर्शनी पैनल और रात्रि के समय जलने वाली आधुनिक लाइट से लोगों को बेहतर अनुभव होगा.

दरअसल, इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा उसी स्थान पर स्थापित की जा रही है, जहां इस साल की शुरुआत में पराक्रम दिवस (23 जनवरी) के अवसर पर नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया गया था. पीएमओ के मुताबिक ग्रेनाइट से बनी यह प्रतिमा हमारे स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी के योगदान के लिए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी, और देश के उनके प्रति ऋणी होने का प्रतीक होगी. 

नेताजी की प्रतिमा मुख्य मूर्तिकार अरुण योगीराज द्वारा तैयार की गई है, जो 28 फुट ऊंची है और इसे एक ग्रेनाइट पत्थर पर उकेरा गया है, जिसका वजन 65 मीट्रिक टन है. देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए इंडिया गेट (India Gate) से लेकर विजय चौक तक का इलाका पिछले कई महीनों से बंद था लेकिन अब उन्हें उसी सड़क पर चलते हुए गर्व महसूस हो सकता है कि अब वे राजा के रास्ते पर नहीं बल्कि "कर्त्तव्य पथ" (Kartavya Path) पर चल रहे हैं!

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

 

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