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'बम से भी ज्यादा खतरनाक है गर्भाशय' की थ्योरी देने वाले ने ही बताया था जनसंख्या-विस्फोट को रोकने का तरीका

नई दिल्लीः दुनिया के मशहूर अर्थशास्त्री गुन्नार मिर्डल ने करीब 50 बरस पहले ही ये अनुमान लगा लिया था कि आने वाले सालों में एशिया के देशों में किस कदर जनसंख्या का विस्फ़ोट होने वाला है. उन्होंने अपनी किताब 'एशियन ड्रामा' में इसे विस्तार से समझाते हुए इस एक खास बात पर जोर दिया था कि (Womb is more dangerous than Bomb) यानी बम से भी ज्यादा खतरनाक है गर्भाशय. स्वीडन में जन्मे मिर्डल को उनकी इस पुस्तक के लिए 1974 में अर्थशास्त्र-विज्ञान की श्रेणी में दुनिया के सबसे महान कहलाने वाले नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था.

भारत के कुछ राज्यों में बढ़ती हुई आबादी और उसे रोकने के लिए सख्त कानून बनाने को लेकर छिड़ी  बहस के बीच ये बताना जरुरी है कि दुनिया की कुल आबादी का दो तिहाई हिस्सा सिर्फ एशिया के देशों में बसता है. इनमें चीन, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका से लेकर अन्य कई देश शामिल हैं. तब उस अर्थशास्त्री ने अपनी किताब के जरिये ये भी आगाह किया था कि अगर एशियाई मुल्कों ने आबादी की बढ़ती रफ़्तार पर काबू नहीं पाया, तो दुनिया उस मुहाने तक जा पहुंचेगी, जहां सामने सिवा तबाही के और कोई मंज़र नहीं दिखेगा. क्योंकि इस दो तिहाई आबादी को जिंदा रखने के लिए इन देशों की सरकार के पास संसाधन ही नहीं बचेंगे और ज्यादातर लोग भुखमरी के चलते असमय ही दम तोड़ देंगे. इसलिये लगे हाथ उन्होंने ये सुझाव भी दे डाला था कि इसे रोकने के लिए किसी कानूनी डंडे की नहीं, बल्कि इन देशों को अपने यहां फैली गरीबी और निरक्षरता को मिटाने की जरुरत है, ताकि लोग खुद ही इतने जागरुक हो जाएं कि वे कम बच्चे पैदा करें.

अगर हम अपने पूरे देश की बात करें, तो यहां फिलहाल जनसंख्या विस्फ़ोट जैसी कोई स्थिति नहीं है.ये ठीक है कि पिछले कुछ सालों में बिहार व उत्तरप्रदेश में प्रजनन दर में इज़ाफ़ा हुआ है लेकिन यूपी सरकार उसे विस्फ़ोट मानकर कानून बना रही है,जबकि बिहार इस पर खामोश है,जबकि वहां तो प्रजनन दर ज्यादा है.अब ये अलग बात है कि अगले साल होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए क़ानून लाने,बनाने के सियासी मकसद हो सकते हैं.

लेकिन देश और दुनिया की जनसंख्या नीति के अध्ययन से जुड़े एक्टिविस्ट और दिल्ली हाइकोर्ट के एडवोकेट रवींद्र कुमार कहते हैं," ये इंटरनेशनल लॉ ऑफ कन्वेंशन है,जिस पर हमारे देश ने भी हस्ताक्षर किए हैं कि हम जनसंख्या नियंत्रण को स्वैक्षिक ही रखेंगे. मतलब कि जो जितने चाहता है, उतने बच्चे पैदा कर सकता है. लिहाजा, यूपी सरकार के इस फैसले को अंतराष्ट्रीय कन्वेंशन तोड़ने वाला समझा जाना चाहिए कि इससे समाज में विभाजन पैदा होगा. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो हिन्दू है, मुसलमान है, सिख है या ईसाई.''

वैसे जनसंख्या विस्फोट के इस सियासी जुमले के बीच ये भी हैरान करने वाली बात है कि सिर्फ दो राज्यों को छोड़ सब जगह आबादी की रफ़्तार पर रिमोट कंट्रोल लग गया दिखता है. आंकड़ों  के मुताबिक भारत के कई राज्यों में प्रजनन दर घट रही है. पिछले साल जारी सरकार के स्वास्थ्य डेटा के अनुसार, 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 19 ऐसे हैं,जहां औसतन महिलाएं दो से कम बच्चे को जन्म दे रही हैं.

भारत की गिरती प्रजनन दर की बात करें, तो साल 1992-93 में 3.4 फीसदी से गिरकर वर्तमान में यह 2.2 फीसदी पर आ गई है. लेकिन यह भी सच है यूपी की प्रजनन दर राष्ट्रीय दर से अधिक है. नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार, यूपी में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.74 शिशु प्रति महिला थी, यह राष्ट्रीय दर 2.2 शिशु प्रति महिला से अधिक थी और बिहार की 3.41 टीएफआर के बाद दूसरे नंबर पर थी.

मुद्दे की बात भी है और सवाल भी ये है कि जिस अर्थशास्त्री मिर्डल की किताब से लिये गए जनसंख्या -विस्फोट को इतना उछाला जा रहा है,तो उसके दिए सुझाव को अपनाने पर आखिर हम क्या कर रहे हैं?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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