Opinion: कश्मीर में अमन-चैन से बौखलाया पाकिस्तान, बदल ली रणनीति, भारत को इसके जवाब में उठाना होगा ये कदम

जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन से बौखलाए पाकिस्तान ने अपनी रणनीति बदल दी है. वह अब आतंक फैलाने के लिए बच्चों व महिलाओं को आतंकी नेटवर्क से जोड़ रहा है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई अब इनका इस्तेमाल आतंकवादियों के पास संदेश, हथियार और ड्रग्स पहुंचाने में कर रहे हैं. इस जानकारी के बाद सुरक्षा बलों को और सतर्क कर दिया गया है ताकि पाकिस्तान की कोई भी साजिश सफल नहीं हो सके. सवाल ये ही उठ रहा है कि एलओसी के पार बैठे दहशत के व्यापारी फिर से घाटी में माहौल बिगाड़ने में कामयाब रहेंगे या भारत उन पर लगाम लगाए रख पाएगा और जम्मू-कश्मीर विकास की राह पर चलता जाएगा.
इस्लामिक दुनिया में भी पाकिस्तान बदहाल
पाकिस्तान की स्ट्रेटेजी में बदलाव करना उसकी खुद की मजबूरी है. उसकी टू नेशन थियरी का खुद पाकिस्तान में ही समर्थन नहीं हो रहा है. बहुत सारे इंटेलेक्चुअल, एलीट और एकेमेडिशियन खुद ही डिवाइडेड हैं. अभी जैसे न्यूक्लियर फिजिसिस्ट परवेज हुडभोय का वीडियो वायरल हुआ. वो जैसे पाकिस्तान को भ्रम की स्थिति में बना हुआ देश बता रहे हैं, तो पाकिस्तानी खुद भ्रमित हैं. जो केंद्रीयता थी जम्मू-कश्मीर की द्विराष्ट्र सिद्धांत में, ये खुद बहुत बुरी तरह हिल गया है. अब उनके नैरेटिव में, स्ट्रेटेजी में, पॉलिसी में उनको बदलाव लाना पड़ा है. इस्लामिक वर्ल्ड खुद पाकिस्तान को छोड़ रहा है. हाल ही में जी20 की कश्मीर में जो बैठक हुई, वह भी पांच साल पहले या एक दशक पहले संभव नहीं था. पाकिस्तान इस्लामिक जगत का बेताज बादशाह था. परमाणु बम की क्षमता उसके पास होने की वजह से और उस बम को 'इस्लामिक बम' कहा जाता था और वह एक वर्चस्व रखता था.
पाकिस्तान खुद इतने सारे आंतरिक मामलों से जूझ रहा है कि लगभग बर्बादी की कगार पर है. इसलिए भी जम्मू और कश्मीर की केंद्रीयता उसके लिए खत्म हुई है, हालांकि वह अपने उपाय और कुचाल तो जारी रखे हुए है, क्योंकि 70 वर्षों से वह कश्मीर को लेकर रो रहा है, उसके लिए साजिशें रच रहा है. पाकिस्तान के लिए वह सबसे बड़ा मुद्दा है ही, लेकिन अब ये है कि पाकिस्तान के चाहने या न चाहने से वह एक सेंट्र्ल ईशू नहीं रहा है. तो, आंतरिक और बाह्य दबाव की वजह से ही पाकिस्तान अपनी रणनीति में बदलाव कर रहा है.
महिलाओं-किशोरों का इस्तेमाल पाक की मजबूरी
जहां तक महिलाओं और किशोरों का इस्तेमाल करने की बात है, तो एशियाई देशों में खासकर महिलाओं और बच्चों के इस्तेमाल से आपके एजेंडे को धार मिलती है. भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में, महिलाएं आर्थिक और राजनीतिक तौर से अधिक इस्तेमाल की जाती हैं. जम्मू और कश्मीर में इस्लामिक मसलों पर महिलाएं पहले से मुखर रही हैं, जैसे आशिया आंद्राबी थे. पाकिस्तान की चूंकि इकोनमी बहुत खस्ताहाल है, तो वह फंड नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए वो सॉफ्ट टारगेट के तौर पर महिलाओं और बच्चों का इस्तेमाल कर रहे हैं. स्थितियां पहले से बदल गयी हैं और यह पाकिस्तान को समझ आ रहा है.
भारत पहले से मजबूत हो रहा है, भारत का वर्चस्व दक्षिण एशिया में बढ़ता जा रहा है और पाकिस्तान लगभग टूटने की राह पर है, एक 'फेल्ड नेशन' बनने की राह पर है. महिलाएं चूंकि सॉफ्ट टारगेट हैं, ड्रग्स या हथियार या कोई भी निगेटिव एजेंडा हो, उसे चलाने में कम पैसे में वो महिलाओं और बच्चों का इस्तेमाल कर ले जा रहे हैं. वहां का संतुलन भी थोड़ा जनसंख्या के मसले में लॉप-साइडेड ही है, इसलिए पाकिस्तान ये जान-बूझकर कर रहा है.
फटेहाल पाकिस्तान खुद को संभाले, उसी में भलाई
जम्मू-कश्मीर हमेशा से ही टू-नेशन थियरी का केंंद्र रहा है, तो पाकिस्तान के सर्वाइवल के लिए वह जरूरी मुद्दा है. पाकिस्तान उसको तो छोड़ेगा नहीं. अब चूंकि पाकिस्तान कमजोर पड़ता जा रहा है. 370 के हटने के बाद कश्मीर विकास की ओर बढ़ रहा है, हाल ही में जी20 की बैठक में ही पूरी दुनिया ने देख लिया कि कश्मीर का मुद्दा अभी वैसा डिविडेंड देनेवाला नहीं रहा. इसलिए पाकिस्तान को अब दूसरा फ्रंट तो खोलना जरूरी ही था. इसलिए, उनको खालिस्तान के तौर पर एक बना-बनाया मसला मिल गया है. पहले भी आप देखिए तो वह कश्मीर के साथ खालिस्तान को भी हवा देने में पीछे नहीं रहे हैं. कनाडा के माध्यम से पाकिस्तान ने हमेशा ही खालिस्तानियों को मोरल और मटीरियल सपोर्ट दिया है. अब उनके लिए जरूरी हो गया है कि भारत को वह एक साथ कई मुद्दों पर उलझाएं. पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद से ये मसले और बढ़े हैं.
पंजाब में ड्रग्स वे ड्रोन से पहुंचा रहे हैं, तो गुजरात के पोर्ट से भी पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. जो जियाउल हक के समय 'ब्लीड इंडिया थ्रू थाउजैंड कट्स' वाली पॉलिसी रही है, वही पाकिस्तान अभी भी आजमा रहा है. वह भारत के लिए एक साथ कई मोर्चे खोलने की कोशिश कर रहा है, ताकि भारत डी-स्टैबिलाइज हो सके. हालांकि, पाकिस्तान को यह समझना पड़ेगा कि ऐसा करने से उसकी समस्याएं ना तो सुलझेंगी, न ही उसकी इकोनॉमी ठीक होगी.
पाकिस्तान में डिवाइडेड जुडिशियरी हो, इकोनॉमी बिल्कुल कंगाली की राह पर है, तालिबान का अपना अलग मसला है ही, सिंध-बलूचिस्तान में विद्रोही सिर उठा रहे हैं, चीन और अमेरिका भी पूरी तरह उसकी मदद को नहीं आ रहे हैं, तो पाकिस्तान को यह समझना चाहिए कि वह खुद पर काम करें, अपना आंतरिक सर्वेक्षण और सुधार करें. भारत को बर्बाद करने की उनकी इच्छा तो पूरी होनेवाली नहीं है. इतने साल उन्होंने भारत-विरोधी नैरेटिव चलाने की कोशिश की है, चल भी गया है, लेकिन अब एक साथ पाकिस्तान कई सारे मसलों से जूझ रहा है. इस तरह एक साथ सारे मसले पाकिस्तान में उठे हैं कि वह तो सर्वाइवल के लिए संघर्ष कर रहा है, भारत के लिए समस्याएं भला वह क्या ही खड़ी कर पाएगा?
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]




























