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भिंडरावाले, खालिस्तान की भूमिका और कनाडा-पाकिस्तान... जानें 39 साल पहले ऑपरेशन ब्लू स्टार ने कैसे देश को हिलाया

आज ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी है. आज से ठीक 39 साल पहले अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से आतंकवादियों को निकालने के लिए सेना ने ऑपरेशन ब्लू स्टार किया था. आज हरमंदिर साहिब में श्री अकाल तख्त पर खालिस्तान के नारों के बीच ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी मनाई गई. इस बीच देश में एक ऐसी पूरी पीढ़ी बड़ी हो गयी है, जिसे इसके बारे में कुछ पता नहीं है. ऑपरेशन ब्लू स्टार और उसके आगे-पीछे के कारणों को बता रहे हैं खालिस्तान पर पीएचडी कर रहे मनीष बड़थ्वाल  

दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन ठीक फैसला

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बारे में हम जब भी बात करते हैं तो यह समझना चाहिए कि यह दुर्भाग्यपूर्ण पन्ना है इस देश का. ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए थी, सिखों की भावना को आहत होना पड़ा. एक सवाल हालांकि यह भी उठता है कि क्या उस समय ऐसी परिस्थितियां थीं, कि इसे टाला जा सकता था या उस समय अगर सरकार या आर्मी यह नहीं करती तो उसका पंजाब और पूरे देश में कुछ और प्रभाव पड़ता. एक आम नागरिक की तरह भी बात की जाए, तो यह दुखद है कि सिख समुदाय के धर्मस्थल को जो कुछ भी झेलना पड़ा. हालांकि, जिस तरह से भिंडरावाले और बाकी आतंकियों ने जिस तरह से एक धार्मिक स्थल को आतंक का अड्डा बना लिया था और वहां से गतिविधियां कर रहे थे, तो वह भूमिका ठीक लगती है. अगर सरकार उस समय वहां कार्रवाई न करती तो आगे चलकर बहुत दूरगामी परिणाम होते और देश को शायद बहुत कुछ झेलना पड़ता. तो, उस समय के दृष्टिकोण से देखें तो वह फैसला बहुत सही था. 

ऑपरेशन ब्लू स्टार या खालिस्तान की भूमिका एक साल या महीने में नहीं पड़ी. हम जानते हैं कि विभाजन के समय भारत के पंजाब को भी बहुत कुछ झेलना पड़ा, सिख समुदाय उससे काफी प्रभावित हुआ. उसके बाद भी पंजाब के लोगों और सिख समुदाय की मांग को सरकार ने उस तरह से पूरा नहीं किया. जब राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन हुआ तो सिखों की भी मांग थी कि उनकी भाषा और धर्म के आधार पर राज्य बने. वह मांग पूरी होते-होते 1966 आ गया. उसके बाद जब राज्य बना, तो चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा दोनों की राजधानी बना दिया. पार्टिशन के बाद ये मसला भी सिखों को आहत करनेवाला था. इसके बाद जब हम आगे बढ़ते हैं, तो अनंतपुर साहिब रेजोल्यूशन के बाद अकाली दल किस तरह 1970 के दशक में सक्रिय हो गया था. उसके बाद जब आपातकाल आया, तो कांग्रेस ने पूरे देश में लोकतंत्र को खत्म किया और उसके बाद ही अकाली दल की पैठ पंजाब में बड़ी हो गयी. उसके बाद और पहले भी कई गलतियां हुईं. अनंतपुर साहिब के समय भी ये कहा गया कि ये तो अलग होने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि हम सभी जानते हैं कि सिखों ने भारत में क्या किया है, उनका क्या योगदान रहा है? उन्होंने देश के निर्माण में कितनी सकारात्मक भूमिका निभाई है. 

भिंडरावाले थे इंदिरा गांधी की देन

अकाली दल को काउंटर करने के लिए इंदिरा गांधी ने भिंडरावाले को आगे किया और हमें यह समझना होगा कि भिंडरावाले का संबंध दमदमी टकसाल से था. वह दमदमी टकसाल जो गुरु गोविंद सिंह से संबंधित था और उसी से भिंडरावाले भी संबंधित थे. भिंडरावाले ने सिखों को कट्टरता की ओर बढ़ाया और उसमें सिखों के दूसरे समुदाय, जैसे निरंकारी के साथ ही हिंदू भी निशाने पर आ गए. 1978 में जब निरंकारियों ने जुलूस निकाला तो हिंसा भड़कती है. कुछ लोग मारे जाते हैं और जब उन पर कार्रवाई होती है, तो भिंडरावाले कहते हैं कि उनके लोगों पर कार्रवाई गलत हुई है. यहीं से वह विभाजन, वह खाई, वह बाइनरी गहरी होती है- सिख बनाम अन्य की. उसके बाद दमदमी टकसाल जो धार्मिक मामलों की जगह थी, की पॉलिटिकल शुरुआत भी होती है. 1980 में गुरुबचन सिंह, जो निरंकारी पंथ के प्रमुख थे, उनकी भी हत्या हो जाती है. तो, कहने का मतलब है कि 1977 से 1980 के समय में काफी कट्टरता बढ़ी, उन्माद बढ़ा. ऑपरेशन ब्लू स्टार कोई एक दिन की देन नहीं थी. उसी दौर में गज खालसा, धरमेश रेजिमेंट, ऑल इंडिया स्टूडेंट सिख फेडरेशन जैसे कई आतंकी संगठन खड़े हो जाते हैं, भिंडरावाले उसी सोच को बढ़ाते हैं, वे बसों से लोगों को उतारकर गोली मार देते हैं, लूटपाट करते हैं, हत्याएं करते हैं और पंजाब में लगभग निरंकुशता की स्थिति हो जाती है, पुलिस का नियंत्रण नहीं रहता, लोग डर के माहौल में रहने लगते हैं और तब गोल्डन टेंपल में वो कब्जा करते हैं, प्रबंधक कमिटियों पर वे कब्जा करते हैं.

इसमें कांग्रेस की बड़ी भूमिका है. भिंडरावाले ने 1980 के चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया और अकाली दल को कमजोर करने के चक्कर में कांग्रेस ने भिंडरावाले को सपोर्ट किया. इस राजनीति ने बाद में न केवल पंजाब में, बल्कि पूरे देश में खासा नुकसान पहुंचाया. इसका नुकसान केवल कांग्रेस को नहीं, पंजाब को नहीं, पूरे देश को हुआ. इस अराजकता ने, इस आतंक ने खासा नुकसान किया, इसलिए, मैं कहता हूं कि जब ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ तो ठीक हुआ. आप देखिए कि ऑपरेशन ब्लू स्टार जब खत्म हुआ तो 554 आतंकियों की मौत हुई थी, हमारे 83 जवानों ने बलिदान दिया था. उस समय कुलदीप सिंह बरार जो उसका नेतृत्व कर रहे थे, वो भी जट सिख थे. बाद में के पी एस गिल ने जब खालिस्तानियों का खात्मा किया, तो वो भी जट सिख थे. आज जब हम और आप बात कर रहे हैं, तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि सारे सिख वैसे ही हैं. केवल कुछ लोग हैं जो चरमपंथी हैं. 

सिख समुदाय की भावनाओं का दोहन

हां, ऑपरेशन ब्लू स्टार से सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुई, यह समझना होगा. फिर, बाद में लोंगोवाल पैक्ट से जिस तरह राजीव गांधी पलट गए, तो सिख समुदाय बार-बार खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगा. उसी भावना का फायदा अतिवादी चरमपंथियों ने उठाया और आतंकवाद को हवा देते रहे. हां, इस अध्याय को समझ लेंगे तो ऑपरेशन ब्लू स्टार को भी समझना आसान हो जाएगा. इसमें पाकिस्तान का भी हाथ था, यह भी हमें देखना पड़ेगा कि सिखों को हमसे तोड़ने के लिए वह लगातार प्रयास करता रहा है. भिंडरावाले के पास से आरपीजी जैसे एडवांस्ड वेपन मिले थे.

जिस तरह बांगलादेश उस समय पाकिस्तान से अलग हुआ था, वह टीस तो पाकिस्तान में थी ही. पाकिस्तान के लिए पंजाब एक वैसा पॉइंट था, जहां वह अपनी नापाक कोशिश कर सकता था. उसने हथियारों और रुपयों के बदौलत उस समय यह करने की कोशिश की. आज के समय आप देख लें तो पाएंगे कि सिख फॉर जस्टिस, जो एक प्रतिबंधित संगठन है, ने 2020 में एक नक्शा जारी किया, खालिस्तान का. उसमें पाकिस्तान का कोई हिस्सा नहीं है, जबकि पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और भारत के कई राज्य शामिल हैं. राजस्थान और उत्तर प्रदेश तक के हिस्से उसमें हैं.

पाकिस्तान के अंदर ननकाना साहिब, करतारपुर, लाहौर सब हैं, लेकिन उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है. वही एसएफजे पाकिस्तान से बोल रहा है कि जब हम खालिस्तान लेंगे तो हमें सपोर्ट करना. उसी तरह पाकिस्तान में सिखों पर अत्याचार हो रहा है, लड़कियों को कनवर्ट कर रहे हैं, तब भी खालिस्तानी उस पर कुछ नहीं बोलते. अमृतपाल का मसला लीजिए तो वो बिल्कुल ही भिंडरावाले के अंदाज में आया था और अचानक छा गया. उसी तरह विदेशों में भी सिखों को वोटबैंक बनाने के चक्कर में वहां की सरकारें गलतियां कर रही हैं, चाहे वह कनाडा हो या यूके हो. कनाडा तो खुद ही भुक्तभोगी रहा है. 1985 में कनिष्क बमकांड याद होगा आपको कि 300 से अधिक लोगों को आतंकियों ने उड़ा दिया था. तो, कनाडा खुद उसी आग से खेल रहा है, जिस से वो कभी जल चुका है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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