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नेपोटिज्म, स्टार किड्स और टैलेंट... बॉलिवुड में सर्वाइवल की जद्दोजहद

एक बात स्पष्ट कर दूं नेपोटिज्म हर जगह मौजूद है. लेकिन बॉलीवुड में इसकी सबसे ज्यादा चर्चा है. नेपोटिज्म खराब है लेकिन नेपोटिज़्म के लिए केवल बॉलीवुड को दोष देना अनुचित है. पूरा मामला तब शुरू हुआ जब मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ़ झाँसी की स्टार कंगना रनौत ने करण जौहर को कॉफी विद करण के विवादित एपिसोड के दौरान नेपोटिज्म का झंडाबरदार' कहा..

देखिए जिंदगी में कभी ना कभी किसी ना किसी रास्ते पर हमें एक पुश या सपोर्ट की जरूरत पड़ती है. और अगर आपको वह पुश या सपोर्ट आपके पारिवारिक संबंध के कारण मिल रहा है तो क्या ये वास्तव में इतना बुरा है?

आज बात नेपोटिज्म और बॉलीवुड की.. क्या बॉलीवुड इंडस्ट्री में बचे रहने के लिए, आगे बढ़ने के लिए सिर्फ फैमिली कनेक्शन काफी है?? क्या नेपो किड्स को इंडस्ट्री में सर्वाइव करने के लिए टैलेंट की जरूरत नहीं है?

उदाहरण के लिए आलिया भट्ट को लें, उन्हें अपने करियर की शुरुआत में सबसे ज्यादा बैकलैश किया गया था क्योंकि वह "महेश भट्ट की बेटी" हैं और करण जौहर ने उनका समर्थन किया था. ये 100 प्रतिशत नेपोटिज्म है..

लेकिन वहीं अगर हम उनकी बहन पूजा भट्ट की बात करें तो पूजा भी महेश भट्ट की बेटी हैं और वह एक अभिनेत्री भी हैं और उनके पिता के सभी संपर्कों तक उनकी पहुंच है लेकिन पूजा उतनी लोकप्रिय नहीं है जितनी आलिया. आलिया भट्ट को शुरुआत करण जौहर की स्टूडेंट ऑफ द ईयर से मिली लेकिन अब वो अपनी बेहतर परफॉर्मेंस की वजह से टॉप पर है. जॉली एलएलबी 2 का वह डायलॉग याद है?...'आलिया भट्ट महेश भट्ट का बॉलीवुड में सबसे अच्छा योगदान है'. हाईवे, उड़ता पंजाब, डियर जिंदगी में आलिया का प्रदर्शन शानदार था.

मैं नेपोटिज्म का समर्थन नहीं कर रही लेकिन सच तो यह है कि आलिया ने अपनी परफॉर्मेंस से बार-बार अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है. उन्होंने कई बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार जीता है और उनकी कई शानदार भूमिकाओं के लिए उनकी प्रशंसा की गई है. उन्हें महेश भट्ट की बेटी के रूप में नहीं जाना जाता है, वास्तव में, वह अपने पिता से कहीं अधिक लोकप्रिय हैं। क्यों ??…..क्योंकि यह उसका काम है. हो सकता है कि उसे वह शुरुआती धक्का मिला हो जिसकी बहुत जरूरत थी लेकिन अब वह जो है वह वास्तव में उसका है.

चलो अब बात करते हैं कुछ और स्टार किड्स की..

कपूर परिवार फिल्म इंडस्ट्री में अपने योगदान के लिए जाना जाता है. रणबीर कपूर, करीना कपूर, करिश्मा कपूर को भले ही कपूर फैमिली के बच्चे होना का फायता मिला हो, लेकिन फिर भी इतने साल ये इंडस्ट्री में अपने बलबूते ही सर्वाइव किया है.


नेपोटिज्म, स्टार किड्स और  टैलेंट...  बॉलिवुड में सर्वाइवल की जद्दोजहद

भले ही सलमान खान बॉलीवुड पर राज किया, लेकिन उनके भाई अरबाज और सोहेल नहीं कर पाए. क्यों? क्षमताएं (इस मामले में, अभिनय से अधिक, विपणन क्षमताएं लेकिन अंत में क्षमताएं)

जाह्नवी कपूर, ईशान खट्टर, सारा अली खान को भले ही अपने माता-पिता/भाई-बहनों की बदौलत पहली फिल्में मिली हों, लेकिन अगर उनका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा तो वे बॉलीवुड में टिक नहीं पाएंगी.

एक 'स्टार किड' होने का एक नुकसान यह है कि आपके माता-पिता या भाई-बहनों के साथ लगातार तुलना की जाती है, जो आपके करियर को बर्बाद कर सकती है, उदाहरण- अभिषेक बच्चन. अभिषेक बुरे अभिनेता नहीं हैं, लेकिन अमिताभ बच्चन से तुलना ने उनके बॉलीवुड करियर को कभी फलने-फूलने नहीं दिया.


नेपोटिज्म, स्टार किड्स और  टैलेंट...  बॉलिवुड में सर्वाइवल की जद्दोजहद

बॉलीवुड में सेल्फ मेड सितारे भी हैं, जैसे शाहरुख खान और अक्षय कुमार, वर्तमान पीढ़ी में सुशांत सिंह राजपूत और राजकुमार राव. प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनौत, अनुष्का शर्मा, दीपिका पादुकोण की कोई बॉलीवुड पृष्ठभूमि नहीं रही है, लेकिन वे सभी फिल्म उद्योग पर राज कर रहे हैं.
हाँ.

हां, बिना कनेक्शन वाले किसी व्यक्ति को शुरू करने के लिए अतिरिक्त 2-3 साल की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन बस इतना ही. आगे क्या होता है यह उसके प्रदर्शन और 'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' पर निर्भर करता है

यह सच है कि नेपोटिज्म आपको एक जगह पाने में मदद कर सकता है, लेकिन फिर यह आप ही हैं जिन्हें कड़ी मेहनत करनी है और अपने लिए एक जगह बनानी है.

नेपोटिज्म या पक्षपात जो स्टार किड्स को स्व-निर्मित कलाकारों पर बढ़त देने के लिए दिया जाता है, भारत के मनोरंजन उद्योग में काफी अंतर्निहित है. बॉलीवुड किड्स और नेपोटिज्म की बहस सबसे ज्यादा जिंदा है. यह इस बात पर केंद्रित है कि कैसे प्रतिभाशाली अभिनेताओं को बॉलीवुड के उच्च और शक्तिशाली लोगों द्वारा पीड़ित किया जाता है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जिन सेलेब्रिटी बच्चों को काम मिल जाता है वे ज्यादा खुश या ज्यादा सफल होते हैं. वास्तव में, भाई-भतीजावाद उनके मन में एक डर पैदा कर सकता है कि वे उस काम के लायक नहीं हैं जो उन्हें मिलता है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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