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तो क्या 10 साल बाद मुंबई समेत दर्ज़नों शहर समुद्र में समा जाएंगे ?

नयी दिल्लीः कहते हैं कि कुदरत के साथ छेड़छाड़ करना ही मनुष्य के विनाश का कारण बनता है और सृष्टि की रचना से लेकर अब तक के इतिहास पर गौर करें, तो प्रकृति के साथ किया गया खिलवाड़ ही किसी मुल्क के एक हिस्से का या फिर पूरे देश के विनाश की वजह रही है. जलवायु परिवर्तन को लेकर संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट अन्य देशों के अलावा भारत के लिये एक बड़े खतरे की घंटी है, जिसे हल्के में लेना हमारे लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है. इस रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी के बढ़ते तापमान की वजह से अगले एक दशक में समुद्र के पानी का स्तर इतना अधिक बढ़ेगा कि मुंबई, गोवा, गुजरात से लेकर कई राज्यों के समुद्र के किनारे बसे दर्जनों शहर उसमें डूब जाएंगे.

जलवायु परिवर्तन पर अधिकार प्राप्त अंतर सरकारी समिति (आईपीसीसी) की इस रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी की जलवायु इतनी गर्म होती जा रही है कि एक दशक में तापमान संभवत: उस सीमा के पार पहुंच जाएगा जिसे दुनिया भर के नेता रोकने का आह्वान करते रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इसे “मानवता के लिये कोड रेड" करार दिया है.

दुनिया के 234 वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई 3000 पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि आने वाले दशक में पृथ्वी की जलवायु तेज़ी से बदलेगी और इंसानों का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाएगा. हीटवेव, तूफ़ान जैसी प्राकृतिक आपदाएं अब और भयंकर रूप लेंगी और तबाही मचाएंगी. रिपोर्ट में ये भी साफ़ कर दिया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग की सबसे बड़ी वजह कार्बन डायऑक्साइड ही है. सभी ग्रीनहाउस गैस एमिशन्स (Greenhouse Gas Emissions) में कार्बन डायऑक्साइड की मात्रा सबसे अधिक है. वैसे

ग्रीनलैंड में जब बर्फ़ पिघलती है या फिर आर्कटिक (Arctic) का तापमान सामान्य से ज़्यादा गर्म दर्ज किया जाता है तब वैज्ञानिक पृथ्वी पर इसके दुष्प्रभाव की गणना करते हैं. ऑनलाइन सिमुलेशन्स (Online Simulations) में ये पता चला है कि पृथ्वी के तटवर्ती शहरों पर बहुत बड़ा संकट मंडरा रहा है और ये शहर कुछ साल में पानी में समा सकते हैं.

इस रिपोर्ट में सबसे अधिक डराने वाली बात ये है कि भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई भी डूब सकती है. मुंबई के कोलाबा, दादर, बांद्रा और कुछ पश्चिमी इलाके भी पानी में समा सकते हैं. वहीं मुंबई के बाहरी इलाके मसलन मीरा रोड,भायंदर,वसई, विरार, नालासोपारा आदि पर भी खतरा है. मराहाष्ट्र के अन्य शहरों में अलीबाग, मुरुद, कोंकण-मालवन, चिपलून जैसे इलाके भी समंदर में समा सकते हैं.

रिपोर्ट में चेताया गया है कि गुजरात के कई तटवर्ती इलाकों का भी जल स्तर बढ़ेगा.सूरत, भरूच, भावनगर पर खतरा बढेगा.जलस्तर बढ़ने पर भुज, कच्छ, गांधीधाम सबसे ज़्यादा प्रभावित होंगे.गोवा क्व अलावा केरल, कर्नाटक, तेलंगाना आदि दक्षिणी राज्यों के कई तटवर्ती इलाकों के डूबने की आशंका भी इस रिपोर्ट में जाहिर की गई है.

अमेरिका के वायुमंडलीय अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय केंद्र की वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक और इस रिपोर्ट की सह-लेखक लिंडा मर्न्स ने कहा, “इस बात की गारंटी है कि चीजें और बिगड़ने जा रही हैं. मैं ऐसा कोई क्षेत्र नहीं देख पा रही जो सुरक्षित है…कहीं भागने की जगह नहीं है, कहीं छिपने की गुंजाइश नहीं है.” वैज्ञानिक हालांकि जलवायु तबाही की आशंका को लेकर थोड़ी ढील देते हैं.

उल्लेखनीय है कि पेरिस जलवायु समझौते पर 2015 में करीब 200 देशों ने हस्ताक्षर किए थे और इसमें विश्व नेताओं ने सहमति व्यक्त की थी कि वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से कम रखना है और वह पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) से अधिक नहीं हो. कार्बन उत्सर्जन में कितनी कटौती की जाएगी इस पर आधारित भविष्य के सभी पांच परिदृश्य इस समझौते में तय ऊपरी सीमा के पार जा रहे हैं.

रिपोर्ट कहती है कि किसी भी सूरत में दुनिया 2030 के दशक में 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी जो पुराने पूर्वानुमानों से काफी पहले है. आंकड़े दर्शाते हैं कि हाल के वर्षों में तापमान बढ़ा है.

रिपोर्ट में कहा गया कि उदाहरण के लिये जिस तरह की प्रचंड लू पहले प्रत्येक 50 सालों में एक बार आती थी अब वह हर दशक में एक बार आ रही है और अगर दुनिया का तापमान एक और डिग्री सेल्सियस (1.8 डिग्री फारेनहाइट) और बढ़ जाता है तो ऐसा प्रत्येक सात साल में एक बार होने लग जाएगा.लिहाज़ा,ये रिपोर्ट मनुष्य जाति को सचेत करती है कि अगर अपना अस्तित्व बचाना चाहते हो,तो प्रकृति से छेड़खानी बंद कर दीजिये.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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