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'कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद ममता के क्यों बदले सुर, पश्चिम बंगाल खोने का तो नहीं है डर'

कर्नाटक में कांग्रेस की प्रचंड जीत होती है. ये महज़ एक राज्य में सत्ता हासिल होने से जुड़ा मसला था. लेकिन पिछले 9 साल में बीजेपी के खिलाफ किसी विपक्षी दल की सबसे बड़ी जीत होने की वजह से इसका महत्व केंद्रीय राजनीति के लिहाज से बढ़ जाता है. पिछले कुछ महीनों से  2024 के आम चुनाव में बीजेपी के खिलाफ  राष्ट्रीय स्तर पर जिस विपक्षी एकता को सुनिश्चित करने की बात की जा रही थी, उस मुहिम को इससे एक नई ताकत मिलती दिख रही है. तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख और पश्चिम बंगाल की  मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ताजा बयान से यहीं कहा जा सकता है.

क्या है ममता के बयान के पीछे का मंसूबा?

हालांकि ममता बनर्जी के बयान के पीछे राजनीतिक मंसूबा छिपा हुआ है, जिसका गहरा ताल्लुक केंद्र की राजनीति से ज्यादा पश्चिम बंगाल की राजनीति से है. कर्नाटक चुनाव के पहले तक ममता बनर्जी के जो भी बयान आ रहे थे, उससे ये संकेत मिल रहा था कि वे 2024 में विपक्षी एकता की अगुवाई कांग्रेस को सौंपने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं, लेकिन 15 मई को उन्होंने जिस तरह की बातें कही है, उससे इस पर बहस होने लगी है कि क्या कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद उनका सुर बदलने लगा है.

दरअसल ममता बनर्जी के बयान में बहुत कुछ छिपा है. उनके बयान में सबसे बड़ा तथ्य ये है कि ममता बनर्जी को अपना गढ़ पश्चिम बंगाल बचाने की सबसे ज्यादा चिंता है. ममता बनर्जी कहती हैं कि जहां भी कांग्रेस मजबूत है, उन्हें लड़ने दीजिए. हम उन्हें समर्थन देंगे. इसके बाद ममता बनर्जी एक शर्त भी लगा देती हैं कि कांग्रेस को भी बाकी राजनीतिक दलों का समर्थन उन राज्यों में करना होगा, जहां वे काफी मजबूत है.

ममता बनर्जी कहती हैं कि जहां-जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, बीजेपी उनका मुकाबला नहीं कर सकती है. जहां-जहां विपक्षी दल मजबूत हैं, उन राज्यों में विपक्षी दलों को एक साथ मिलकर लड़ना चाहिए.

क्यों दे रही हैं कांग्रेस को कुर्बानी की नसीहत?

कुछ राज्यों का जिक्र करते हुए ममता बनर्जी ने बड़े ही साफगोई अंदाज में कांग्रेस को ये भी संदेश दे दिया कि किन-किन राज्यों में कांग्रेस को अपने राजनीतिक मंसूबों का बलिदान करना होगा, अगर वो विपक्षी एकता की बागडोर अपने हाथ में रखना चाहती है. ममता बनर्जी के मुताबिक सबसे पहले तो कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में ही क्षेत्रीय दल यानी उनकी पार्टी को प्राथमिकता देनी होगी. इसके अलावा ममता ने दिल्ली, बिहार, ओडिशा, तमिलनाडु, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पंजाब का भी नाम लिया. उनके मुताबिक कांग्रेस को इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों को प्राथमिकता देनी ही होगी. 

जब ममता बनर्जी कहती है कि जहां कांग्रेस मजबूत है, वहां उन्हें हम सब समर्थन करेंगे. इस बात को कहते हुए उन्होंने एक संख्या का भी जिक्र किया और वो संख्या 200 सीटों की है. उनके बयान से कांग्रेस के लिए ये स्पष्ट संदेश है कि भले ही आप देश में सबसे बड़े जनाधार वाले विपक्षी पार्टी हैं, लेकिन विपक्षी लामबंदी के तहत हम आपको 200 सीटों से ज्यादा पर चुनाव लड़ने नहीं देंगे और अगर कांग्रेस को ये शर्त मंजूर है, तो फिर आगे बात बन सकती है. ममता कहती हैं कि कांग्रेस को उस नीति को छोड़ना होगा कि हम आपको कर्नाटक में समर्थन देते हैं और आप बंगाल में टीएमसी से ही रोज़ लड़ रहे हैं.

पहली पार विपक्षी एकता पर रुख किया साफ

ममता ने जिस बेबाकी से ये बात कही हैं कि अगर आप कुछ अच्छा पाना चाहते हैं तो आपको भी कुछ कुर्बानी देनी होगी. ममता का ये बयान कांग्रेस के लिए तो संदेश हैं ही, इसके साथ ही विपक्षी एकता की मुहिम को अमली जामा पहनाने की कोशिशों में जुटे नेताओं के सामने भी उन्होंने टीएमसी के रुख को पहली बार इतनी सफाई के साथ सार्वजनिक तौर से रख दिया है.

इन बातों के जरिए ममता बनर्जी ने कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों के लिए एक तरह से 2024 के आम चुनाव के लिए सीट बंटवारे के फार्मूले को भी पेश कर दिया है. अब ममता की बात से स्पष्ट है कि वे चाहती हैं कि कांग्रेस 2024 के चुनाव के लिए पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब, बिहार, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना इन 9 राज्यों में अपने आप को समेट कर रखे. यानी इन राज्यों में जो भी क्षेत्रीय दल हैं, उनको कांग्रेस को पूरा समर्थन करना होगा.

पश्चिम बंगाल के समीकरणों को साधने की कोशिश

इनमें 9 राज्यों में से पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी 2011 से सत्ता में हैं. यहां की 42 लोकसभा सीटों पर वो चाहती हैं कि बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस और बाकी विपक्षी दल जिसमें लेफ्ट पार्टियां हैं, पूरी तरह से टीएमसी का समर्थन करें. ऐसे भी 2021 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन कर चुनावी दंगल में उतरी कांग्रेस और सीपीएम को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी. वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ़ 2 सीट पर जीत मिली थी और सीपीएम का तो उसमें भी खाता नहीं खुला था. कांग्रेस और सीपीएम के इस तरह के प्रदर्शन को देखते हुए ही ममता बनर्जी जब 2024 में देशव्यापी विपक्षी मोर्चा बने तो पश्चिम बंगाल में बीजेपी के खिलाफ 42 में ज्यादातर सीटों पर सिर्फ उनकी ही पार्टी के उम्मीदवार हों. एक या दो सीट पर वो समझौता कर सकती हैं. ममता बनर्जी के बयान से यही जाहिर होता है.

उसी तरह ममता बनर्जी चाहती हैं कि जिन कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल या दल विशेष मजबूत हैं, वहां भी कांग्रेस को एकदम शांत रहना होगा. जैसे दिल्ली की बात करें, तो यहां लोकसभा की 7 सीटें हैं और 2014 के साथ ही 2019 के चुनाव में सभी सीटों पर बीजेपी को जीत मिली थी.

विपक्ष के बाकी नेताओं पर दबाव बनाने की कोशिश

हालांकि ममता बनर्जी के बयान से आशय है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी पिछले दो विधानसभा चुनाव से काफी मजबूत है और 2024 में आम आदमी पार्टी को ही विपक्षी गठबंधन के तहत ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलनी चाहिए. ये बात सही है कि दो बार से विधानसभा चुनाव में दिल्ली में केजरीवाल को भारी समर्थन मिलते रहा है, लेकिन ये भी गौर करने वाली बात है कि लोकसभा में आम आदमी पार्टी का कुछ ख़ास नहीं रहा है. 2019 में भले ही कांग्रेस दिल्ली में कोई सीट नहीं जीत पाई थी, वो यहां की 5 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी और उसका वोट शेयर भी आम आदमी पार्टी से 4 फीसदी ज्यादा रहा था. हमारे यहां विधानसभा और लोकसभा में वोटिंग का पैटर्न अलग-अलग होता है और इस नजरिए से विपक्षी एकता के नाम पर दिल्ली में कांग्रेस के आम आदमी पार्टी को प्राथमिकता देना शायद आसान नहीं होगा.

ममता बनर्जी का बयान ये साफ इशारा करता है कि कांग्रेस उन राज्यों में सीटों के लिए ज्यादा न सोचें, जहां क्षेत्रीय दल मजबूत हैं. ममता बनर्जी इसके जरिए बिहार में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव, , झारखंड में हेमंत सोरेन, पंजाब में अरविंद केजरीवाल, ओडिशा में नवीन पटनायक, तमिलनाडु में एम. के स्टालिन और तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव के लिए रास्ता आसान बनाना चाह रही हैं.

दरअसल ममता बनर्जी चाहती हैं कि कांग्रेस लोकसभा की 543 में से सिर्फ़ 200 सीटों के आसपास ही चुनाव लड़े और बाकी सीटों पर अलग-अलग राज्यों में जो भी क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में है उनके समर्थन में कांग्रेस रहे. इसके जरिए चुनाव पूर्व विपक्षी एकता की संभावना होने पर ममता बनर्जी तीन बातें सुनिश्चित करना चाहती हैं:

  • कांग्रेस विपक्षी एकता की अगुवाई चुनाव से पहले करे, लेकिन नतीजों के बाद वो इस स्थिति में न रहे कि बाकी विपक्षी दलों का महत्व कम कर सके.
  • बीजेपी के खिलाफ पूरे देश में ज्यादातर सीटों पर विपक्ष की ओर से वन टू वन फॉर्मूला लागू हो सके, ताकि मजबूत बीजेपी को चुनाव में हराने की संभावना ज्यादा बने.
  • इस कड़ी में तीसरी बात सबसे अहम है. ममता बनर्जी चाहती हैं कि वो पश्चिम बंगाल का अपना गढ़ 2024 में किसी भी तरह से बचा लें. वे यहां की 42 लोकसभा सीटों में से ज्यादा पर टीएमसी की जीत सुनिश्चित करना चाहती है, जिससे पार्टी की साख भी बनी रहे और साथ ही चुनाव नतीजों के बाद उनकी पीएम दावेदारी की संभावनाओं को भी ज्यादा बल मिल सके. 

कांग्रेस का 200 सीटों पर मानना आसान नहीं

कर्नाटक की हार अलग बात है, लेकिन इस बात में उतना ही दम है कि लोकसभा चुनाव के नजरिए से बीजेपी अभी भी इतनी बड़ी ताकत है कि उसको बिखरे विपक्ष से कोई ज्यादा नुकसान नहीं होने वाला है. ऐसे में ममता बनर्जी को ये अच्छे से पता है कि कांग्रेस चाहेगी कि विपक्षी गठबंधन बने. हालांकि कांग्रेस के लिए पूरे देश में महज़ 200 सीटों के लिए मान जाना इतना आसान नहीं है. कांग्रेस को ये अच्छे से पता है कि ममता बनर्जी ने जिन राज्यों का जिक्र किया है, उन राज्यों में अगर कांग्रेस कुर्बानी देती है तो उसका ममता बनर्जी से लेकर केसीआर तक को तो बहुत लाभ मिलेगा. लेकिन इसके विपरीत बाकी राज्यों में इन दलों के कांग्रेस को समर्थन का कोई ख़ास फायदा नहीं है. जैसे टीएमसी, समाजवादी पार्टी, जेडीयू, आरजेडी, केसीआर की पार्टी, नवीन पटनायक की बीजेडी और स्टालिन की डीएमके पार्टी का अपने-अपने राज्य से बाहर कोई ख़ास प्रभाव नहीं हैं. खुद टीएमसी पश्चिम बंगाल से बाहर किसी भी राज्य में कांग्रेस को फायदा पहुंचाने की स्थिति में नहीं है. 

बीजेपी पश्चिम बंगाल में है अब बड़ी ताकत

ममता बनर्जी के लिए 2024 में चुनाव से पहले विपक्षी एकता से ज्यादा अपनी पार्टी को लेकर चिंता है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी 2011 से सत्ता में हैं और ये उनका तीसरा कार्यकाल चल रहा है. 2024 के चुनाव तक टीएमसी के बंगाल में सत्ता के 12 साल हो जाएंगे. दो पहलू है जो ममता बनर्जी को डरा रहा है. एक तो 12 की सत्ता की वजह से टीएमसी को एंटी इनकंबेंसी का डर खतरा है. खुद ममता बनर्जी ने जब 15 मई को विपक्षी एकता पर पार्टी का रुख साफ कर रही थीं. तो ये माना था कर्नाटक में बीजेपी को एंटी इनकंबेंसी से नुकसान हुआ है. ममता बनर्जी के जर के पीछे दूसरा पहलू है पश्चिम बंगाल में बीजेपी का पिछले कुछ सालों में लगातार मजबूत होते जाना. 2024 में पश्चिम बंगाल में टीएमसी की राजनीतिक हैसियत दांव पर रहेगी.

पश्चिम बंगाल में बीजेपी का दायरा बढ़ चुका है

पश्चिम बंगाल में बीजेपी का जनाधार पिछले 10 साल से धीरे-धीरे लगातार बढ़ रहा है. धीरे-धीरे अपनी पैठ बढ़ाते हुए बीजेपी अब  ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई है.  2011 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कुल 294 में से 289 सीटों पर चुनाव लड़ी और एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो सकी. 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी  291 सीटों पर चुनाव लड़ी और पहली बार 3 सीटें जीतने में सफल रही. बीजेपी ने पश्चिम बंगाल में पहली बार विधानसभा चुनाव में 10 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने के पड़ाव को पार कर ली और यहीं से राज्य में तृणमूल कांग्रेस के लिए अब सीपीएम और कांग्रेस की बजाए बीजेपी मुख्य विरोधी पार्टी बनने की राह पर चलने लगी.

कहीं बंगाल में बीजेपी, टीएमसी से ज्यादा सीट न जीत ले

2014 लोकसभा चुनाव में टीएमसी 42 में से 34 सीटें जीतने में कामयाब रही थी, वहीं बीजेपी को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी.  लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ममता बनर्जी के बादशाहत को एक तरह से खत्म करने के साथ ही पश्चिम बंगाल की राजनीति में सीपीएम और कांग्रेस को विपक्ष के तौर पर हाशिये पर पहुंचाने का काम कर दिया. 42 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 18 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही. उसे 16 सीटों का फायदा हुआ था. वहीं बीजेपी का वोट शेयर भी 40% से ऊपर पहुंच गया. टीएमसी 12 सीटों के नुकसान के साथ सिर्फ 22 सीट ही जीत पाई. लोकसभा के नजरिए से 2019 में पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने टीएमसी के साथ मुकाबले को करीब-करीब बराबरी का बना दिया. इस चुनाव के नतीजों से ये तो तय हो ही गया कि लोकसभा में 2024 तक बीजेपी, टीएमसी को भी पीछे छोड़ सकती है और यही डर ममता बनर्जी को सता रहा है.

हालांकि इसके बाद ममता बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव में अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज की, लेकिन बीजेपी की सीटें विधानसभा में 3 से बढ़कर 77 पर पहुंच गई. आश्चर्य की बात ये थी कि बीजेपी का वोट शेयर करीब 38 फीसदी तक जा पहुंचा, जो पिछली बार के विधानसभा चुनाव के मुकाबले करीब 28 फीसदी ज्यादा था. ये एक तरह से पश्चिम बंगाल में भविष्य के लिए बीजेपी को विधानसभा में नए विकल्प के तौर पर स्थापित करने सरीखा नतीजा था.

बीजेपी का 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य

ममता बनर्जी को इसी बात का डर है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में बीजेपी सीट जीतने में टीएमसी से आगे नहीं निकल जाए. ऐसे भी इस बार बीजेपी पश्चिम बंगाल में 42 में से 35 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर अपनी रणनीति को अंजाम देने में जुटी है.

ये बात सही है कि टीएमसी की राजनीति का आधार ही लेफ्ट दलों और कांग्रेस का विरोध रहा है. लेकिन अब पश्चिम बंगाल में जिस तरह का समीकरण है, उसके हिसाब से बीजेपी को वहां रोकने के लिए ममता बनर्जी चाहती हैं कि विपक्षी गठबंधन के बहाने कांग्रेस के साथ ही सीपीएम भी उसकी राह में रोड़ा नहीं बने. वो यहां बीजेपी के खिलाफ वन टू वन लड़ाई लड़ना चाहती हैं, ताकि बीजेपी विरोधी वोटों का बिखराव नहीं हो. पश्चिम बंगाल में अगर टीएमसी और बीजेपी के अलावा कांग्रेस और लेफ्ट दल मिलकर अलग से हर सीट पर प्रत्याशी उतारते हैं, तो ये तय है कि कांग्रेस-लेफ्ट को जो भी वोट मिलेंगे एक तरह से वो बीजेपी विरोधी वोट ही होगा. तीन हिस्से में वोटों के इस बंटवारे में टीएमसी को सबसे ज्यादा नुकसान होने की संभावना है.

पश्चिम बंगाल का गढ़ बचाना चाहती हैं ममता

यहां की राजनीति पर नज़र रखने वाले अधिकांश लोगों का मानना रहा है कि पिछले कुछ सालों से पश्चिम बंगाल में भी हिन्दू-मुस्लिम का मुद्दा खूब चर्चा में रहा है और यहां बीजेपी के बढ़ते जनाधार के पीछे का एक कारण ये भी है. ममता बनर्जी की परेशानी वोटों के ध्रुवीकरण को लेकर भी है. जैसे-जैसे 2024 का वक्त करीब आ रहा है, उनके लिए इसका तोड़ निकालना आसान नहीं दिख रहा है. अब उन्हें कर्नाटक नतीजों के बाद एक संभावना दिखी है कि अगर उनकी शर्तों पर कांग्रेस की अगुवाई में भी विपक्ष का गठबंधन बन जाता है तो इसमें उनका दोहरा फायदा है. इस बहाने अगर वो  पश्चिम बंगाल में 2014 की तरह ही 34 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती हैं, तो उनका गढ़ भी बच जाएगा और केंद्र की राजनीति में ज्यादा दखल के लिए एक मौका भी होगा.

[यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]

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