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कश्मीर: उरी जैसे आतंकी हमले को दोहराने के पीछे कहीं चीन की साजिश तो नहीं थी?

क्या आपको लगता नहीं कि हमें अपने देश की आज़ादी का अमृत महोत्सव धूमधाम से न मनाने देने के लिए सिर्फ आतंकी ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क भी भारत पर गिद्ध  नज़र लगाये बैठा है कि आखिर ये इतनी शांति व सुकून के साथ इसे क्यों मना पायें? ये सवाल उठाने के पीछे ठोस व पुख्ता वजह भी है जिसका वास्ता दुनिया की सबसे बड़ी पंचायत यानी संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद से जुड़ा हुआ है.इसे आप महज़ संयोग कहेंगे या फिर उस ड्रैगन की करतूत मानेंगे कि जिस वक्त वो एक खूंखार आतंकवादी को बचाता है,उसके चंद घंटों के भीतर ही कुछ आतंकी बेख़ौफ़ होकर कश्मीर घाटी में एक ऐसे बड़े हमले को अंजाम देने की हिम्मत दिखाते हैं,मानो हमारे सुरक्षा बल भांग पीकर सोए हुए हैं.

हालांकि हमारे सुरक्षा बलों ने उरी हमले को दोहराने आये दो आतंकियों को मार गिराया और 10 व 11 अगस्त के चौबीस घंटों के दौरान कुल पांच आतंकियों को मौत के घाट उतारते हुए हमारे तीन जांबाज़ जवानों को भी शहीद होना पड़ा.लेकिन ये हमला एक बड़े खतरे का अलार्म बजाता है क्योंकि आतंकियों का आका कहलाने वाले पाकिस्तान का "माय बाप" यानी चीन भी अब इनका सबसे बड़ा हमदर्द बन चुका है,जो भारत के लिहाज़ से ज्यादा खतरनाक है.

हालांकि कश्मीर घाटी के राजौरी जिले में हुए इस आतंकी हमले को लेकर सियासत भी गरमा गई है और कांग्रेस ने कहा है कि इस तरह के हमलों के बाद सरकार छिप नहीं सकती और उसे जवाब देना होगा. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने ट्वीट किया, ‘‘राजौरी में एक और आतंकी हमले के बारे में सुनकर दुखी हूं.इस हमले में हमारे बहादुर जवानों की जान गई है. देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं.’’उन्होंने आगे लिखा, ‘‘भारत सरकार हमारे लोगों पर इस तरह के हमलों के बाद छिप नहीं सकती. उसे जवाब देना होगा.’’

आतंकवाद पर सियासत अपनी जगह है लेकिन भारत-अमेरिका की नजदीकी से चिड़े बैठे चीन की बदलती हुई कूटनीति के विश्लेषक मानते हैं कि आज़ादी की 75 वीं वर्षगांठ का उत्सव मनाने से पहले कश्मीर घाटी में लगातार दो दिन तक जिस तर्ज पर आतंकी हमलों को अंजाम देने की हिमाकत की गई,उसके पीछे सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि  चीन की भी शह है.वह इसलिये कि चीन अब भारत में आतंक फैलाने के लिए पाकिस्तान को एक बड़े हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की दिशा की तरफ  बढ़ रहा है और वह इसके लिए वहां की हुकूमत की बजाय अब उसकी खुफिया एजेंसी ISI को ही सीधा पैसा दे रहा है.सब जानते हैं कि आईएसआई ही नौजवानों के जेहन में पहले इस्लामिक कट्टरता का जहर घोलती है और फिर उन्हें पैसों समेत तमाम  तरह के लालच देकर आतंकी बनाने की ट्रेनिंग देती है. जब वे पूरी तरह से तैयार हो जाते हैं,तब उन्हें भारत में आतंक फैलाने के लिए सीमापार से भेजने का पूरा इंतज़ाम भी करती है.ये अलग बात है कि हमारे सुरक्षा बलों की चौकसी व सतर्कता के चलते वे आतंकी कई बार या तो घुसपैठ ही नहीं कर पाते और अगर कुछेक बार कामयाब हो भी गये, तो मुठभेड़ में मारे जाते हैं.
              
चीन की भारत के साथ खुंदक पालने की दूसरी बड़ी वजह ये भी है कि पिछले कुछ सालों में हमने अपना आयात एकतरफा रुप से घटाकर न सिर्फ उसकी आर्थिक कमर तोड़ी है,बल्कि अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती हुई नजदीकियां भी उसकी आंख की किरकिरी बन चुकी हैं.यही कारण है कि अमेरिका के बाद भारत के प्रति भी अब वह उतना ही बौखलाया हुआ है.

बेशक चीन और पाकिस्तान की दोस्ती की तुलना हम किसी नये-नवेले प्रेमी जोड़े के बीच पनपे प्यार से नहीं कर सकते.ये दोस्ती एक दशक से भी ज्यादा पुरानी है,जहां दोनों के अपने स्वार्थ हैं.चीन ने पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश सिर्फ इसलिये नहीं कर रखा है कि उसे इस इस्लामिक मुल्क से मोहब्बत है.उसका टारगेट पाकिस्तान की समुद्री-सीमा के जरिये भारत को अपने निशाने पर लेना है.वो तो इससे भी दूर की कौड़ी खेलते हुए उस पर अपना दांव भी लगा चुका है.अफगानिस्तान में तालिबानी सरकार बनते ही चीन ने उसे ये ऑफर दिया था कि वो अफगानिस्तान से पाकिस्तान को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे का पुनर्निर्माण अपने खर्च पर करने के लिए तैयार है.दरअसल,वो इसके जरिये अपना सैन्य साजो-सामान सुगम तरीक़े से पाकिस्तान में लाकर भारत कर खिलाफ अपना मजबूत ठिकाना बनाना चाहता है.हालांकि तब तालिबानी सरकार ने चीन से कहा था कि वो इस प्रस्ताव पर आपस में सलाह-मशविरा करके अपना फैसला बतायेगा.पर,विश्लेषक मानते हैं कि देर-सवेर अफगान की तालिबान सरकार इस प्रस्ताव को इसलिये मंजूर कर लेगी क्योंकि उसे पैसा चाहिए औऱ चीन इसके लिए इफ़रात में पैसा देने को तैयार है.इसलिये कि रणनीतिक लिहाज़ से इस क्षेत्र में चीन को इससे बेहतर ठिकाना कोई और मिल नहीं सकता. इसलिये भारत को पूर्वोत्तर और लद्दाख की सीमा के अलावा अब चीन से निपटने के लिए कश्मीर को लेकर भी न सिर्फ ज्यादा सतर्क रहना होगा,बल्कि उसका करारा जवाब देने की माकूल रणनीति भी बनानी होगी.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

 

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