भारत-रूस संबंध: आखिर क्या रहस्य है 50 साल पुरानी इस नायाब दोस्ती का?

Putin India Visit: दुनिया की दूसरी ताकतवर महाशक्ति रूस के मुखिया व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) अगर भारत की सरजमीं पर आकर ये कहें कि "हम भारत को एक बड़ी शक्ति, एक मित्र राष्ट्र और समय के साथ परखे गए दोस्त के रूप में देखते हैं”, तो इसे दोनों मुल्कों के बीच पिछले 50 साल से चली आ रही और न टूटने वाली दोस्ती की नायाब मिसाल ही समझा जायेगा. हालांकि पिछले सात साल में मोदी सरकार ने दोस्ती के इस रिश्ते को और अधिक मजबूत करने के साथ ही उसे नये मुकाम तक ले जाने की भरपूर कोशिश की है. इसे कूटनीतिक व सामरिक रणनीति की एक बड़ी उपलब्धि कहना इसलिये भी गलत नहीं होगा कि भारत ने दुनिया के दोनों सुपरपॉवर देशों अमेरिका व रूस के साथ अपने रिश्तों में एक संतुलन बनाते हुए दोनों को ही अपनी बढ़ती ही ताकत का अहसास कराने में सफलता पाई है. हालांकि कड़वा सच ये भी है कि अमेरिका और रूस भी भारत के साथ अपने रिश्तों में कोई कड़वाहट नहीं आने देना चाहते. इसकी बड़ी वजह ये है कि हथियार व रक्षा संबंधी अन्य साजो सामान खरीदने वाला भारत,दुनिया का सबसे बड़ा देश है. लिहाज़ा, दोनों महाशक्तियों की कोशिश यही रहती है कि वे भारत को अपने अधिकतम रक्षा उपकरण बेच सकें.
रक्षा व व्यापार से जुड़े समझौते करने के मकसद से ही आज दिल्ली में पुतिन-मोदी की जो गर्मजोशी भरी हुई मुलाकात हुई, उसका संदेश भी यही है कि भारत इस दोस्ती को निभाने में कोई कंजूसी नहीं बरत रहा बल्कि दिल खोलकर उसके साथ सौदे कर रहा है. हालांकि रूस ने कभी ये आंकड़ा सार्वजनिक नहीं किया है, लेकिन ये तथ्य है कि साल 1971 से लेकर अब तक रूस का खजाना भरने में भारत का सबसे बड़ा योगदान रहा है और ये सिलसिला लगातार जारी है.
दरअसल, पुतिन-मोदी की आज हुई बैठक दोनों देशों के लिए ही अपने-अपने लिहाज से महत्वपूर्ण थी. रूस अन्य साजो सामान के अलावा हमें एस-500 अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम देने के लिये तैयार है, जो अमेरिका को रास नहीं आ रहा है और वो इसे लेकर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए प्रतिबंध लगाने की चेतावनी दे चुका है. जानकार मानते हैं कि अमेरिका के लिए ऐसा कर पाना उतना आसान नहीं होगा और भारत की अन्तरराष्ट्रीय कूटनीति इसका भी कोई रास्ता निकाल ही लेगी.
इस बैठक के दौरान पीएम मोदी ने कोविड की चुनौतियों का जिक्र करते हुए साफ किया कि "भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों और सामरिक भागीदारी में कोई बदलाव नहीं आया है. आर्थिक क्षेत्र में भी हमारे रिश्तों को आगे बढ़ाने के लिए हम एक दीर्घकालिक दृष्टि अपना रहे हैं. हमने 2025 तक 30 बिलियन डॉलर ट्रेड और 50 बिलियन डॉलर के निवेश का लक्ष्य रखा है. दोनों मुल्कों की प्राथमिकता देखते हुए ये एक अहम फैसला है. मोदी ने ये भी स्पष्ट किया कि 2021 हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस वर्ष दोनों देशों के बीच 1971 में हुई ' ट्रीटी ऑफ पीस फ्रेंडशिप एंड कोऑपरेशन' के पांच दशक और हमारी सामरिक भागीदारी के दो दशक पूरे हो रहे हैं.
वहीं कोविड महामारी के बाद बीते जून में अमेरिका के दौरे के बाद छह महीने के भीतर सीधे भारत आकर पुतिन ने चीन समेत अन्य देशों को भी एहसास करा दिया कि भारत उसके लिए कितना महत्वपूर्ण है. मोदी से बैठक के दौरान पुतिन ने अपने इस दौरे पर खुशी जताते हुए कहा कि पिछले साल दोनों देशों के बीच ट्रेड में 17% की गिरावट हुई थी, परन्तु इस साल पहले 9 महीनों में ही व्यापार में 38% की बढ़ोतरी देखी गई है. भारत को अपना विश्वस्त सहयोगी बताते हुए उन्होंने कहा कि बहुत महत्वपूर्ण चीजों पर हम साथ काम कर रहे हैं, जिसमें ऊर्जा क्षेत्र, अंतरिक्ष सहित उच्च तकनीक शामिल हैं. आज हमने यहां जिन प्रोग्राम पर बात की है, उन्हें पूरी तरह से लागू किया जाएगा, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग भी शामिल है.
लेकिन भारत-रूस की इस दोस्ती का बड़ा सच ये है कि भारतीय सेनाओं के पास 86 प्रतिशत हथियार रूसी मूल के हैं. जब लद्दाख में भारतीय सेना और चीनी सेनाएं आमने सामने आ गई थीं, उस वक्त भारत काफी हद तक रूसी मूल के हथियारों पर ही निर्भर था. साल 2014 से लेकर अब तक भारत के करीब 55 प्रतिशत रक्षा उपकरण रूस से ही खरीदे गए हैं. नौसेना की बात करें तो 41% से अधिक उपकरण रूस निर्मित हैं, जबकि वायुसेना के दो-तिहाई उपकरण रूसी मूल के हैं. रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक रूसी मूल की प्रणालियों पर भारत की निर्भरता सेना में सबसे अधिक होने की वजह ये है. इन प्रणालियों का कार्यकाल लंबा होता है, इसलिए आगे भी निर्भरता बनी रहेगी.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]


























