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कंगाली से बेहाल पाकिस्तान अब भी क्यों अलाप रहा है कश्मीर का राग?

साल 1996 में पहली बार बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने से ठीक पहले 11 अशोक रोड स्थित बीजेपी मुख्यालय में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में अटल बिहारी वाजपेयी से एक अहम सवाल पूछा गया था कि पाकिस्तान को लेकर आपकी सरकार की रणनीति क्या होगी? तब अटलजी ने बगैर किसी लाग-लपेट के बेहद साफ़गोई से जवाब दिया था कि, "वो हमारा पड़ोसी है और हम अपना पड़ोसी तो बदल नहीं सकते लेकिन उसकी करतूत पर निगाह भी रखेंगे और जरूरत पड़ी तो उसके कान मरोड़ने से पीछे भी नहीं हटेंगे." अटल जी तो सरकार में रहते हुए अपने सबसे कमजोर लेकिन नजदीकी पड़ोसी से दोस्ताना रिश्ते रखने के लिए दिल्ली से लाहौर तक दोस्ती की बस लेकर भी चले गए लेकिन पाकिस्तान न तब सुधरा था और न ही अब सुधरने को राजी है.

अपने मुल्क की बदहाली से तंग आकर दुनिया में कर्ज़ मांगने का कटोरा लेकर घूम रहे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ बेहद बेबस व लाचार दिख रहे हैं और भारत से मदद की गुहार लगाते हुए भी नजर आ रहे हैं. लेकिन कहते हैं कि पाकिस्तान के पानी में ही कुछ ऐसी तासीर है कि वहां के हुक्मरानों को कश्मीर का राग अलापे बगैर अपनी रोटी हज़म ही नही होती. शहबाज़ भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं ये सोचे बगैर कि भारत की मौजूदा ताकत को देखते हुए इसके कितने बुरे अंजाम हो सकते हैं जिसे आखिरकार मुल्क के आवाम को ही भुगतने पर मजबूर होना पड़ेगा.

दरअसल, कंगाली की अब तक की सबसे बुरी मार झेल रहे अपने मुल्क की हुकूमत पर बने रहने के लिए शहबाज़ शरीफ इन दिनों कर्ज़ का कटोरा लेकर सऊदी अरब में हैं. वहां उन्होंने अल अरबिया टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में साफतौर पर ये माना है कि भारत की मदद मिले बगैर पाकिस्तान की गरीबी व बदहाली दूर नहीं हो सकती. लेकिन मदद की गुहार लगाने वाले सबसे कमजोर हुक्मरान ने कश्मीर का राग छेड़कर अपनी बची-खुची उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया. वे शायद ये भूल गये कि भारत ऐसी किसी भी पेशकश को अपने जूतों तले ही रखता आया है जहां कश्मीर के मसले पर किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता करने का जिक्र आयेगा.

पाकिस्तान में बदहाली का जो आलम है और आटे की क़िल्लत से लोग जिस कदर बेहाल हैं उन तस्वीरों को देखकर हमारे सियासी गलियारों में ये चर्चा थी कि हो सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मानवीय आधार पर पाकिस्तान को मदद पहुंचाने का फैसला ले सकते हैं. लेकिन शहबाज़ ने कश्मीर मसले पर अपनी हेकड़ी दिखाते हुए मदद तो दूर की बात है अब तो पाकिस्तान के साथ बातचीत के सारे रास्ते भी बंद कर दिये हैं. वैसे भी पाकिस्तान के साथ बातचीत तब तक नहीं हो सकती जब तक कि वो अपनी जमीन पर मौजूद तमाम आतंकी ट्रेनिंग सेंटरों का खात्मा करने के साथ ही ये ऐलान नहीं करता कि उसका अब आतंकवद को पालने-पोसने से कोई वास्ता नहीं है.

यही वजह है कि शरीफ की तरफ से टीवी इंटरव्यू के जरिए शांति प्रस्ताव को भारत फिलहाल अधिक तवज्जो नहीं देते दिख रहा है. उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक पाक प्रधानमंत्री ने विदेशी धरती पर दिए टीवी इंटरव्यू में भले ही बातचीत और शांति प्रयासों को लेकर कुछ बातें कही हों लेकिन उनकी ही सरकार के भीतर से दिए जा रहे बयानों में कई विरोधाभास नजर आ रहे हैं. साथ ही सीमा पार से भारत में चलाई जा रही आतंकी गतिविधियों का ग्राफ भी किसी बदलाव की तरफ इशारा नहीं कर रहा है. ऐसे में भारत शहबाज की पेशकश को फिलहाल "इग्नोर" करने के मूड में है.

बता दें कि शरीफ ने इस इंटरव्यू में कहा है कि वे भारत के साथ कश्मीर सहित अन्य मुद्दों पर गंभीरता से बातचीत चाहते हैं. हालांकि बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस इंटरव्यू पर स्पष्टीकरण जारी किया है. पीएमओ का ये कहना है कि पीएम शहबाज़ शरीफ़ ने ये स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए बिना भारत के साथ बातचीत संभव नहीं. हालांकि इंटरव्यू के दौरान शहबाज़ शरीफ़ ने ये भी कहा था कि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भारत और पाकिस्तान को बातचीत की टेबल पर लाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

पाकिस्तानी पीएम ने कहा- भारतीय नेतृत्व और पीएम नरेंद्र मोदी को मेरा संदेश यही है कि चलिए कश्मीर सहित अन्य मुद्दों को हल करने के लिए बातचीत करते हैं. शरीफ़ ने कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं और अगर दोनों देशों में युद्ध छिड़ गया तो कोई बताने के लिए भी नहीं रहेगा कि क्या हुआ था. हालांकि उन्होंने कश्मीर में हर दिन मानवाधिक हनन का आरोप भी लगाया. याद दिला दें कि पिछले साल अप्रैल में जब पाकिस्तान में इमरान ख़ान की सरकार गिर गई थी और शहबाज़ शरीफ़ प्रधानमंत्री बने थे तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर उन्हें बधाई दी थी. उस समय मोदी ने लिखा था- भारत इस क्षेत्र को आतंकवाद मुक्त चाहता है, जहां शांति और स्थिरता रहे, ताकि हम विकास की चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित कर सकें और अपने लोगों की समृद्धि और ख़ुशहाली सुनिश्चित कर सकें. लेकिन बदले में शहबाज़ शरीफ़ ने अपना कश्मीर राग अलाप कर पाकिस्तान का इरादा जता दिया कि आखिर वो चाहता क्या है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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