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नफरत खत्म करने और उग्रवाद को रोकने में कितनी अहम है उलेमाओं की भूमिका?

दुनिया के सबसे बड़े इस्लामिक देश इंडोनेशिया के उलेमाओं का एक प्रतिनिधिमंडल भारत आया हुआ है, ये देखने के लिये कि आखिर इस्लाम और आतंकवाद यहां एक दूसरे के पूरक क्यों और कैसे बन गए हैं. देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने उनसे मुखातिब होते हुए कुछ बड़ी बातें कहीं हैं, जिनके बेहद गहरे मायने हैं और इस्लाम के धर्म गुरुओं को इस पर गौर करना चाहिये कि आखिर वे इस पैगाम को अपनी कौम में फैलाने में नाकाम क्यों हो रहे हैं.

डोभाल ने अपनी लंबी तक़रीर में ये समझाने की कोशिश की है कि इस्लाम में कहीं भी, किसी भी रुप में आतंकवाद का समर्थन नहीं किया गया है लेकिन बदकिस्मती से दुनिया के कई मुल्कों में चरमपंथ फैलाने वाली ताकतों का वास्ता इस्लाम से ही रहा है. हालांकि सच तो ये है कि चरमपंथ और आतंकवाद इस्लाम के मतलब के खिलाफ हैं, क्योंकि इस्लाम का मतलब होता है शांति और सलामती ऐसी ताकतों के विरोध को किसी धर्म के खिलाफ नहीं देखा जाना चाहिए. यह एक चाल है.

उनके मुताबिक इसकी बजाय, हमें अपने धर्मों के असल संदेशों पर ध्यान देना चाहिए. जो इंसानियत, शांति और आपसी समझ के मूल्यों पर ज़ोर देते हैं. इसमें कोई शक नहीं कि पवित्र कुरान सिखाती है कि एक इंसान की हत्या पूरी इंसानियत की हत्या है और एक इंसान को बचाना इंसानियत को बचाना है. इस्लाम कहता है कि सर्वोच्च जिहाद, 'जिहाद अफ़जल' है. जो  इंसान की इंद्रियों पर नियंत्रण या उसके अपने घमंड के खिलाफ जिहाद है- यह मासूम नागरिकों के खिलाफ नहीं है.

बता दें कि डोभाल के निमंत्रण पर ही इंडोनेशिया के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार महमूद मोहम्मद मंगलवार को दिल्ली पहुंचे हैं. महफूद इंडोनेशिया में राजनीति, कानून और सुरक्षा मामलों में समन्वय करने वाले प्रमुख मंत्री भी हैं. उनके साथ उलेमाओं का एक उच्च-स्तरीय प्रतिनिधिमंडल भी आया हुआ है.

दरअसल,डोभाल की सोच है कि एक दूसरे के धर्म के प्रति शांति और सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में उलेमाओं की सबसे अहम भूमिका है और उनका धार्मिक ज्ञान समाज से नफ़रत खत्म करने में काफी हद तक एक कारगर औजार साबित हो सकता है.

इसीलिये डोभाल ने सीमा पार आतंकवाद और आईएसआईएस से प्रेरित आतंकवाद को मानवता के खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती करार देते हुए कहा कि ऐसी ताकतों के विरोध को इस्लाम के ख़िलाफ़ टकराव के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. युवकों की ऊर्जा को सही दिशा देने की ज़रूरत है और उलेमाओं से बेहतर इसे कोई और अंजाम नहीं दे सकता. सिविल सोसायटी से गहरे जुड़े होने के कारण उलेमा ये काम बेहतर कर सकते हैं. 

धर्म का संकीर्ण इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. लेकिन प्रोपेगेंडा और नफरत से निपटने के लिए उलेमाओं को टेक्नोलोजी का भी प्रयोग करना चाहिए. वैसे भी किसी भी लोकतंत्र में हेट स्पीच, पक्षपात, प्रोपेगेंडा, हिंसा और धर्म के दुरुपयोग का कोई स्थान नहीं है. डोभाल ने बेशक उलेमाओं से मुखातिब होते हुए ये बातें कही हैं लेकिन कट्टरवादी हिंदू ताकतों पर भी ये उतनी ही लागू होती हैं.

जिस तरह से सीरिया और अफगानिस्तान को आतंकवाद का मंच बना दिया गया है, वह भारत के साथ ही इंडोनेशिया के लिये भी उतना ही बड़ा खतरा है. इसीलिये डोभाल का जोर की हमारा लक्ष्य एशिया में सौहार्द्र और शांति स्थापित करना है. वैसे  भी भारत और इंडोनेशिया का रिश्ता सदियों पुराना है. चोल वंश के समय भी भारत का इंडोनेशिया से व्यापारिक रिश्ता था.दोनों देशों के बीच गहरा रिश्ता होने की एक बडी वजह टूरिज़्म भी है.

भारत से बड़ी संख्या में सैलानी बाली जाते हैं, साथ ही वहां हिंदू मंदिर भी है.गुजरात और बंगाल के कई सूफ़ी इंडोनेशिया मूल से रहे हैं. मुस्लिम आबादी के लिहाज़ से भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है. लिहाज़ा इंडोनेशिया और भारत के उलेमाओं के बीच बनने वाला ये तालमेल उग्रवाद की नई फसल को तैयार होने से रोक सकता है.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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