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BLOG: हिंदु मुस्लिम के खेल से कांग्रेस को होगा नुकसान

राजनीति मे छवि का खासा महत्व है . यह बात बड़ी मुश्किल से राहुल गांधी ने सीखी थी . गुजरात और कर्नाटक में इसपर अमल भी किया था . इसका फल भी मिलने लगा था . गुजरात में कड़ी टक्कर और कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता से दूर करना. इससे भी बड़ी बात है कि देश भर में राहुल की छवि बदलने लगी थी .

विश्व कप फुटबाल का आयोजन पूरा हुआ है . लगता है कि कांग्रेस ने फीफा कप बड़े ध्यान से देखा है और सेल्फ गोल कर डाला है. यह सेल्फ गोल किया शशि थरुर और राहुल गांधी ने. राजनीति मे छवि का खासा महत्व है. यह बात बड़ी मुश्किल से राहुल गांधी ने सीखी थी . गुजरात और कर्नाटक में इसपर अमल भी किया था. इसका फल भी मिलने लगा था . गुजरात में कड़ी टक्कर और कर्नाटक में बीजेपी को सत्ता से दूर करना. इससे भी बड़ी बात है कि देश भर में राहुल की छवि बदलने लगी थी. उन्हें लोग एक गंभीर नेता के रुप में लेने लगे थे. उनकी हिंदुवादी छवि लोग स्वीकारने लगे थे. बीजेपी को इस छवि से इतना डर लगने लगा था कि उसके नेता राहुल गांधी के जनेऊधारी वाले रुप पर इतने तंज किये कि राहुल की हिदुंवादी छवि और ज्यादा निखर गयी. सबसे बड़ी बात है कि राहुल गांधी के मंदिर मंदिर जाने से किसी मुस्लिम को कोई एतराज नहीं था. इस बीच सोनिया गांधी ने भी एक मीडिया संस्थान के अधिवेशन में कहा था कि चूंकि बीजेपी कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी बनाने पर अमादा है इसलिए राहुल गांधी को अपनी मंदिर जाती तस्वीरों और वीडियो को वाइरल करना पड़ रहा है. यह अपने आप में एक ऐसी ईमानदार स्वीकारोक्ति थी कि बीजेपी को इसका तोड़ नहीं मिल रहा था. उधर बीजेपी या यूं कहा जाए कि मोदी सरकार साधु संतों के निशाने पर आ रही थी . भक्त पूछने लगे थे कि राम मंदिर का क्या हुआ , धारा 370 का क्या हुआ , समान नागरिक संहिता का क्या हुआ. एक तरफ बेरोजगारी के आंकड़े , दूसरी तरफ किसानों का आक्रोश और तीसरी तरफ अपनों का ही हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनों को घेराना. इस त्रिकोण से निकलने का रास्ता बीजेपी को सूझ नहीं रहा था. अखबारों में भी मोदी समर्थक कई लेखक अब मोदी सरकार को सीख देने लगे थे कि उसने गाय के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों का हौंसला बढ़ाकर दलितों के साथ साथ उदारवादी हिंदु को भी पार्टी से अलग कर दिया है. गुजरात में बामुश्किल जीत , कर्नाटक का हाथ से जाना , टीडीपी का आंन्ध्र प्रदेश में एनडीए का साथ छोड़ना , यूपी में फूलपुर और गोरखपुर के बाद कैराना में हार , राजस्थाना में अलवर और अजमेर के लोकसभा उपचुनाव में करारी से करारी हार , बिहार में उपचुनाव में हार के बीच नीतीश कुमार का आंख दिखाना , कश्मीर में पीडीपी से अलग होने की मजबूरी को भुनाने की कोशिश .....बीजेपी सचमुच दोराहे पर खड़ी हुई थी . उग्र राष्ट्रवाद सिर चढ़ नहीं रहा था और उग्र हिंदुत्व की हांडी फिर चढ़ेगी इसकी गांरटी नहीं ली जा सकती थी. बीजेपी ने कांग्रेस के पुराने पापों को केन्द्र में रख सियासी हमले तेज करने शुरु किए. आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र की हत्या फिर से बताया गया . नेहरु से लेकर राजीव गांधी तक नेहरु गांधी परिवार को देश की हर समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराया जाने लगा. ट्रिपल तलाक बिल को अटकाने के आरोप लगे. इससे जोड़कर मोदी सरकार के कामकाज और योजनाओं को देखा गया. लेकिन इससे बात नहीं बन रही थी. बीजेपी के सामने यूपी था जहां बुआ-भतीजे का मिलन कहर बरपा सरका सकता है. एबीपी न्यूज और सीएसडीएस का सर्वे बताता है कि अगर यूपी में सपा , बसपा , कांग्रेस और आरएलडी एक साथ आ गये तो बीजेपी की सीटों की संख्या इकाई में हो सकती है जबकि पिछले लोसभा चुनाव में उसने साथियों के साथ मिलकर 73 सीटे जीती थी. जाति का तोड़ धर्म होता है लेकिन कांग्रेस कोई मौका ही नहीं दे रही थी. गुजरात में कांग्रेस ने दंगों का नाम तक नहीं लिया था. नाममात्र के मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव में उतारे थे. कर्नाटक में कांग्रेस ने लिंगायतों को रिझाने के लिए उलग धर्म का दर्जा दे दिया था. यह सब वह काम थे जिन्हें बीजेपी करती रही थी. तो बीजेपी हताश थी. अमित शाह दुखी थे. मोदी चिंतित थे. लेकिन भला हो शशि थरुर का , भला हो राहुल गांधी का जिसने घर बैठे बीजेपी को वापसी काम मौका दे दिया . देश में पिछले कुछ सालों में राजनीति का तेजी से ध्रुवीकरण हुआ है जिसका सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को मिला है. बीजेपी के नेता तो साफ कह चुके हैं वह बिना मुस्लिम वोट के भी चुनाव जीतते रहे हैं और आगे भी उन्हें इस वोट बैंक की जरुरत नहीं है. इस पृष्ठभूमि में कांगेस अध्यक्ष ने मुस्लिम बुद्दिजीवियों के साथ बैठक कर बीजेपी को मौका दे दिया. बाकी का काम उस बयान ने कर दिया जो कथित रुप से राहुल ने दिया ही नहीं था या यूं कहा जाए कि तोड़ा मोड़ा गया. लेकिन बीजेपी बयान को ले उड़ी . खुद प्रधानमंत्री ने ही आजमगढ़ की रैली में कह दिया कि कांग्रेस बताए कि क्या वह मुस्लिमों की पार्टी है. मोदी ने बड़ी सियासी चालाकी से इसे भी ट्रिपल तलाक से जोड़ दिया. कह दिया कि राहुल बताएं कि कांग्रेस क्या सिर्फ मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है. यह एक ऐसा बयान है जो अकेले गेमचेंजर हो सकता है. यहां तक कि शशि थरुर के हिंदु पाकिस्तान वाले बयान पर भी भारी पड़ गया है. कांग्रेस प्रवक्ताओं ने अपनी तरफ से संभावित सियासी नुकसान को भांपते हुए राहुल गांधी के बयान का मतलब समझाने की कोशिश की है. लेकिन जब तक राहुल गांधी खुद आगे आकर बार बार बात साफ नहीं करते तब तक नुकसान की भरपाई नहीं हो सकेगी. बड़ा सवाल तो यह उठता है कि आखिर ऐसे बयानों की जरुरत ही क्यों पड़ी. कांग्रेस ने यह मौका था मोदी सरकार को उनकी योजनाओं को लेकर घेरने का. दलितों और पिछड़ों को फिर से पार्टी से जोड़ने का. सियासी रणनीति इसके आसपास बनाई जानी चाहिए थी . खासतौर से पिछड़ा वोट बैंक . पिछले लोकसभा चुनावों में 34 फीसद ओबीसी ने बीजेपी को वोट दिया था जबकि कांग्रेस को ओबीसी का सिर्फ 15 फीसद वोट ही मिला था. यह 2009 के लोकसभा चुनाव से 9 फीसद कम है ( 2009 में कांग्रेस को ओबीसी का 24 फीसद वोट मिला था. कांग्रेस को समझ लेना चाहिए कि अगर वास्तव में उसे बीजेपी को टक्कर देनी है तो मुस्लिमों की जगह दलित और ओबीबी वोट बैंक में सेंध लगानी है. राहुल गांधी के मंदिर जाने के बावजूद मुस्लिम तो कांग्रेस को वोट दे ही देगा. कांग्रेस फिर से वही भूल करती नजर आ रही है जिसकी तरफ एंटनी कमेटी ने इशारा किया था. कमेटी का मानना था कि लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार की एक वजह यह भी थी कि उसे लोग मुस्लिम पार्टी मानने लगे थे. आज भी एक बड़ा वर्ग जो मोदी सरकार से नाराज है लेकिन कांग्रेस को वोट नहीं देना चाहता तो सिर्फ इसलिए कि उसकी नजर में कांग्रेस मुस्लिम पार्टी है. राहुल गांधी के रणनीतिकारों ने बहुत कोशिश की इस दाग को मिटाने की लेकिन ताजा बयानों के बाद दाग गहराता नजर आ रहा है. (नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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