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INDIA
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(Source: ECI / CVoter)

G 20 शिखर सम्मेलन: दुनिया के ताकतवर देशों का एजेंडा अपने हिसाब से तय करेगा भारत!

दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के समूह जी-20  का भारत फिलहाल अध्यक्ष है और आगामी सितंबर में वह शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा. वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करने वाले इस सम्मेलन के जरिए भारत को दुनिया के समक्ष अपनी ताकत दिखाने का मौका मिलेगा. पिछले कुछ सालों में भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को डिजिटल बनाने औऱ हर क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी को तेजी से बढ़ावा देने के साथ ही सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों को लेकर जो प्रगति की है, वह ऐसा शो केस है,जो भारत को विकासशील देशों की श्रेणी से बाहर निकालकर विकसित देशों की कतार में ला खड़ा करने की पर्याप्त क्षमता तो रखता है, लेकिन उसके सामने एक बड़ी चुनौती ये है कि वह अपनी अर्थव्यवस्था को और कैसे मजबूत करते हुए उसे टिकाऊ बनाये.चूंकि भारत ही इस सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहा है, लिहाजा इसका इसका एजेंडा भी वही तय करेगा.
 
हालांकि भारत इस समय दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और वह दुनिया में सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाले देशों में शामिल है. विश्लेषक मानते हैं कि दुनिया के सबसे ताकतवर समूह की भारत को अध्यक्षता मिलना ना सिर्फ़ बड़ी बात है बल्कि अपनी सोच को सामने रखने का ये एक बड़ा अवसर भी है. लिहाजा,भारत की पहली प्राथमिकता तो यही रहेगी कि इन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ जुड़कर पहले अपने राष्ट्रहित को साधने का मौका तलाशा जाए. इसके साथ ही पूरे विश्व में वित्तीय सोच और वित्तीय तालमेल को किस तरह से बनाकर दुनिया की बड़ी समस्याओं को हल किया जाए. फिर चाहे वह जलवायु परिवर्तन हो,पर्यावरण हो या ऊर्जा से जुड़ी समस्या हो, उनको कैसे सुलझाया जा सकता है, उस पर अपनी सोच सामने रखने और इन सभी अर्थव्यवस्थाओं को एक दिशानिर्देश देने का भारत को एक अच्छा अवसर मिलेगा. इस साल 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में जी-20 की बैठकें होंगी. जी-20 का एजेंडा सभी देश मिलकर तय करेंगे लेकिन भारत ने संकेत दिया है कि सम्मेलन के केंद्र में ऊर्जा संकट और आतंकवाद दो अहम मुद्दे जरूर होंगे.
 
दरअसल,जी 20 शिखर सम्मेलन ही ऐसा मंच है, जहां दुनिया के 20 नेता मिल-बैठकर वैश्विक अर्थव्यवस्था के एजेंडे तय करते हैं, जिसमें दुनिया की शीर्ष 19 अर्थव्यवस्था वाले देश और यूरोपीय संघ शामिल है. दुनियाभर का 85 प्रतिशत कारोबार जी20 सदस्य देशों में ही होता है.साल 1999 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद बने इस संगठन का असली असर साल 2008 के बाद से दिखाई दिया, जब आर्थिक मंदी के बाद सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सालाना सम्मेलन शुरू हुआ. शुरुआती सालों में जी20 सम्मेलन से अंतरराष्ट्रीय कारोबार और आर्थिक लक्ष्यों को लेकर देशों के बीच समन्वय स्थापित हुआ और इसका असर भी दिखा. हालांकि आगे चलकर जैसे-जैसे विश्व के मुद्दे बदले, जी20 का एजेंडा भी बदलता गया और जलवायु परिवर्तन और ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद’ जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होने लगी. कुछ विश्लेषक मानते हैं कि जी20 का एजेंडा व्यापक हुआ तो उसका असर भी कुछ कम होने लगा.चूंकि अब इसकी अध्यक्षता भारत के पास आ गई है, ऐसे में भारत के पास जी20 को फिर से उसके आर्थिक लक्ष्यों की तरफ ले जाने का एक सार्थक मौका होगा.

गौरतलब है कि पिछले साल इंडोनेशिया के बाली में हुए शिखर  सम्मेलन में भारत को अध्यक्षता मिलने के बाद अखबारों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से एक लेख छपा था, जिसमें उन्होंने लिखा था , "आज हमें अपने अस्तित्व के लिए लड़ने की जरूरत नहीं है, हमारे युग को युद्ध का युग होने की जरूरत नहीं है. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. आज हम जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और महामारी जैसी जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, उनका समाधान आपस में लड़कर नहीं बल्कि मिलकर काम करके ही निकाला जा सकता है." विदेश मंत्रालय के अधिकारी भी मानते हैं  कि जी-20 की अध्यक्षता वैश्विक मामलों में नई दिल्ली की अग्रणी भूमिका को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करेगी, विशेष रूप से ऐसे समय में जब दुनिया कई भू-राजनीतिक और आर्थिक संकटों का सामना कर रही है. 

रूस और यूक्रेन युद्ध को लेकर पीएम मोदी पहले भी कह चुके हैं कि यह युद्ध का युग नहीं है और समस्या का समाधान बातचीत के जरिए किया जा सकता है. समरकंद में एससीओ की बैठक और उसके बाद बाली में जी-20 की बैठक में भी मोदी ने शांति के पथ पर लौटने की बात कही थी. साफ है कि मोदी ने युद्ध के खात्मे को लेकर कूटनीतिक और संवाद का संदेश अपने लेख के जरिये दिया था. पूर्व भारतीय राजनयिक अनिल वाधवा मानते हैं कि भारत के सामने चुनौतियां होंगी. भारत को अपनी अध्यक्षता के दौरान कुछ प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. मसलन,जलवायु संकट बढ़ रहा है और यूक्रेन में संघर्ष जी-20 में आम सहमति बनाने के प्रयासों पर एक लंबी छाया डालेगा. संघर्ष की वजह से कई देश बढ़ते कर्ज, गरीबी, बढ़ते खाद्य और ऊर्जा संकट का सामना कर रहे हैं.

बीते दिसम्बर में जी 20 देशों के शेरपाओं की उदयपुर में हुई बैठक से पहले भारत के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत भी पत्रकारों से कहा था, "यह पहली बार है जब भारत दुनिया के प्रभावशाली देशों का एजेंडा तय करेगा. अभी तक दुनिया के विकसित देश ही एजेंडा सेट करते थे." प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि भारत हर मुद्दे पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा. हालांकि यह कार्य आसान नहीं है. बल्कि एक कठिन चुनौती है. इन्हीं कुछ चुनौतियों के साथ भारत जी-20 के अध्यक्ष के रूप में अपनी यात्रा शुरू कर रहा है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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