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कोरोना वायरस: ऐसा वीभत्स बसंत न आता तो अच्छा था

बगल की इमारतों से मेरी आवाज़ टकराकर लौटती है और मुझे और डरा जाती है. घर लौटने से पहले मैं ग्रोसरी की दुकान का भी चक्कर लगा लेना चाहता हूं ताकि दोबारा बाहर न निकलना पड़े. ग्रोसरी की दुकान के लिए घूम कर जाना होगा क्योंकि बीच में वो इमारत है जहां बीमार डॉक्टर हैं. मैं उस इमारत के बगल से गुजरने में भी कतराता हूं.

आज बाहर तेज़ हवाएं चल रही हैं, सांय-सांय की आवाज़ पूरे घर में फैल गई है. सन्नाटे में हवा की ये आवाज़ डरावनी लगती है. सुबह धूप थी, पिछले दस एक दिन से बाहर कोई दिखता नहीं लेकिन आज तीन लोग दूर दूर पार्क में बैठे हुए थे. ज़रूर कुछ हुआ होगा. सामने की इमारत में डॉक्टर और नर्सें कोरोना से बीमार हैं. उस इमारत की सफाई के लिए लोग बैठे थे. अंदर सूचना गई कि वायरस से पीड़ित लोग अंदर बिल्डिंग में जाएं.

घर में सब्ज़ियां खत्म हो गई हैं. कब तक छोले और राजमा खाएं. मैं सब्जी लाने के लिए बैग लेकर निकलता हूं. यहां हफ्ते के तीन दिन एक अमेरिकी किसान अपनी दुकान लगाता है. मैं सब्ज़ियां वहीं से लाता हूं. बाहर गुलनार के पेड़ पर ढेर सारे फूल आए हैं. कहते हैं बसंत आया है. ऐसा वीभत्स बसंत न आता तो अच्छा था. सामने से कुत्ते को लेकर निकली महिला मुझे आते देख ठिठक कर रूक जाती है. मैं जल्दी से फुटपाथ छोड़ देता हूं. दूरी छह फीट से अधिक रखनी है.

मैं आगे बढ़ जाता हूं. गिलहरियों और खरगोशों को नहीं पता है कि इंसान डरा हुआ है. वो मज़े से घूम रहे हैं, पेड़ों से उतर कर घास पर दौड़ लगा रहे हैं. मैं रूककर तस्वीरें लेता हूं. सब्ज़ी की दुकान के बाहर सैनिटाइज़र और प्लास्टिक के दस्ताने हैं. मैं दस्ताने पहन लेता हूं और जल्दी जल्दी सब्जियां लेकर लौट जाता हूं. सब्ज़ी वाला किसान पीछे से थैंक्यू बोलता रहता है. मैं अनसुना कर देता हूं. मुझे लगता है कि मेरे पीछे कोई अदृश्य डर चला आ रहा है, जो पता नहीं कैसे मेरे शरीर में घुस जाएगा. मैं इस डर से निपटने के लिए ज़ोर जोर से गाना गाने लगता हूं.

बगल की इमारतों से मेरी आवाज़ टकराकर लौटती है और मुझे और डरा जाती है. घर लौटने से पहले मैं ग्रोसरी की दुकान का भी चक्कर लगा लेना चाहता हूं ताकि दोबारा बाहर न निकलना पड़े. ग्रोसरी की दुकान के लिए घूम कर जाना होगा क्योंकि बीच में वो इमारत है जहां बीमार डॉक्टर हैं. मैं उस इमारत के बगल से गुजरने में भी कतराता हूं.

ग्रोसरी की दुकान में थोड़ी भीड़ है. सब लोग जल्दबाज़ी में हैं. भारतीय खाने का सामान खास कर पैक्ड फूड कम होता जा रहा है. मैं संयत होकर पारले जी बिस्किट के दो बड़े पैक खरीदता हूं. ये मुझे अपने वतन की याद दिलाते हैं. अंडा, दूध, दही और मांस के रैक तेज़ी से खाली हो रहे है. मैं इस स्टोर में लगभग हर दूसरे दिन आया करता था लेकिन आज कई अनजान चेहरे दिख रहे हैं. ये वो लोग हैं जो अक्सर दिन के समय यूनिवर्सिटी की कैंटीन या आसपास रेस्टोरेंट में ही खाना खाया करते थे लेकिन अब सब लोग खाना बना रहे हैं घर में. ग्रोसरी स्टोर में काम करने वालों ने मास्क लगा रखा है लेकिन यहां सैनिटाइज़र नहीं है.

सामान लेकर लौटते हुए मैं रेस्तरां के पास गुजरता हूं तो वहां पैक खाना लेने वालों की भीड़ है. अभी भी कई लोग बाहर से ही खाना ले रहे हैं. पूरे इलाके में खाने की एकाध दुकानें खुली हैं जहां बैठ कर भोजन करने की मनाही है. सिर्फ पैक करा सकते हैं.

घर लौट कर मैं बच्चे को छूने से पहले बाथरूम जाता हूं. अपने हाथ और चेहरे ऐसे धोता हूं मानो ज़िंदगी की सारी मैल आज ही निकाल दूंगा. मैं हर दिन एक बीयर पिया करता था. पिछले चौदह दिन से एक भी बीयर नहीं पी है. रात में नींद नहीं आती है. सुबह होते होते दिमाग और शरीर इतना थक जाता है कि मैं बिस्तर पर औंधे मुंह गिर जाता हूं. चार घंटे में नींद खुल जाती है. और दिन भर थकान तारी रहती है.

मुझे लगता है कि मैं जांबी होता जा रहा हूं. सुबह उठने के बाद भारत में लोगों से बात कर के अच्छा फील करने की बेवजह कोशिश करता हूं. मैं हर दिन बैठकर रूटीन बनाता हूं लेकिन उसका पालन नहीं करता. यही मेरी दिनचर्या है. मैंने तय किया है कि जो होगा देखा जाएगा लेकिन अब और आंकड़े नहीं देखूंगा कि कितने मरे और कितने मामले देश में आए हैं. ऐसा सोचते हुए मैं अपने मन में आखिरी बार आंकड़े देखता हूं. अमेरिका में मरने वालों की संख्या 6075 और प्रभावितों की संख्या 245,066 हो चुकी है.

(उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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