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बाबरी मस्जिद विवाद : साजिश के आरोप से बीजेपी को फायदा!

सुप्रीम कोर्ट के विवादित ढ़ांचे को तोड़े जाने के विवाद पर बीजेपी के बड़े नेताओं पर आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा चलाने के आदेश के बाद उमा भारती का बयान बड़ी रणनीति की तरफ इशारा कर रहा है. मोदी सरकार में जलसंसाधन मंत्री उमा भारती भी उन नेताओं में शामिल हैं जिनपर अब अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराने में आपराधिक साजिश रचने का मुकदमा चलेगा. उमा भारती का कहना है कि वह पद से चिपकने वालों में नहीं है लेकिन साथ ही वह मंत्री पद छोड़ने से भी इनकार कर रही हैं.

उमा भारती का कहना है कि साजिश कुछ नहीं थी, जो हुआ खुल्मल खुल्ला हुआ और वही हुआ जो वह मन वचन कर्म से चाहती थी. यानि वह साफ संकेत दे रही हैं कि विवादित ढांचे के गिराए जाने के पक्ष में थी या फिर ढांचा गिरने से उनके मन की ही बात पूरी हुई. इसके साथ ही उमा भारती का कहना है कि राम मंदिर बनने का रास्ता अब साफ हो गया है.

अभी तक लालकृष्ण आडवाणी , मुरली मनोहर जोशी , कल्याण सिंह , विनय कटियार की प्रतिक्रिया का इंतजार है जिनपर भी कोर्ट के फैसले की तलवार लटक रही है. लेकिन उमा भारती के तेवर बता रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बीजेपी अपने सियासी लाभ के रुप में ले रही है. उसे लग रहा है कि इस बहाने राम मंदिर का मुद्दा गरमाया रखा जा सकता है. कोर्ट ने लगातार सुनवाई करने और दो साल में फैसला सुनाने की बात कही है. अब आप कल्पना कीजिए कि कल्याण सिंह भी राजस्थान के राज्यपाल पद से इस्तीफा दे कर राम मंदिर के लिए कुर्बानी से इसे जोड़ते हैं. ( अभी राज्यपाल के पद पर रहते हुए उन्हे मुकदमे से छूट मिली हुई है ).

बाबरी मस्जिद विवाद : साजिश के आरोप से बीजेपी को फायदा!

लखनऊ के सेशंस कोर्ट में कभी उमा बयान देने पहुंचती हैं तो कभी आडवाणी जिरह के लिए जाते हैं. कभी कल्याण सिंह वादी पक्ष के वकीलों के सेवाओं से उलझते हैं तो कभी मुरली मनोहर जोशी बयान देते हैं. हर मौके पर वहां भारी संख्या में राम भक्त पहुंचते हैं. अदालत के बाहर जय श्रीराम के नारे लगते हैं. टीवी चैनल लाइव दिखाते हैं. सभी नेताओं के भाषण लाइव दिखाए जाते हैं. अखबारों मे तस्वीरे छपती हैं. विपक्ष इसकी आलोचना करता है. टीवी चैनलों पर बहसें जारी रहती हैं. यानि राम मंदिर का मुद्दा लगातार गरमाता रहता है. अदालत के अंदर भी और बाहर भी. एक बार फिर कल्पना कीजिए. यह सब अगले डेढ़ साल तक जारी रहता है. फिर अगले आम चुनाव आ जाते हैं. आम चुनाव की घोषणा के साथ ही अदालत का फैसला आ जाता है. अब फैसला बीजेपी के पक्ष में आ जाता है तो भी बीजेपी को फायदा. फैसला खिलाफ में आता है तो भी बीजेपी को फायदा. उधर दोनों ही सूरत में विपक्ष का बीजेपी पर हमला हिंदुवादी ताकतों को और ज्यादा ध्रुवीकरण के लिए प्रेरित करेगा.

उमा भारती ने तो कह दिया कि साजिश रची ही नहीं गयी थी और सबकुछ सबके सामने हुआ था. दूसरी बात काफी हद तक सही है. आडवाणी जी ने अपनी किताब माई कंट्री , माई लाइफ में लिखा है कि वह छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में राम कथा कुंज के स्टेज पर बैठे थे. सुबह के साढ़े दस बजे थे. उस समय कुछ लड़के गुंबद पर चढ़ गये थे. आडवाणी जी ने उनसे नीचे उतरने की अपील की. नहीं माने तो उमा भारती को भेजा. उमा भारती ने लौटकर बताया कि गुंबद पर चढ़े युवक मराठी में बातें कर रहे हैं. इस पर प्रमोद महाजन को भेजा गया. उन्होंने लौटकर बताया कि युवकों ने नीचे उतरने से इनकार कर दिया है. अब आडवाणी जी ने उनकी सुरक्षा में तैनात महिला पुलिस अधिकारी से कहा कि वह गुंबद तक जाना चाहते हैं लेकिन सुरक्षा कारणों के चलते वहां जाने से मना कर दिया. उसके बाद आडवाणी जी फोन की तलाश में निकले ताकि मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से संपर्क किया जा सके. बहुत मुश्किल से फोन मिला लेकिन कल्याण सिंह से बात नहीं हो पाई. इस बीच तीसरा गुंबद भी कारसेवकों ने गिरा दिया था. एक कारसेवक ने आडवाणी जी को मिठाई खिलाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कहा कि आज मैं मिठाई नहीं खाउंगा. लेकिन लिब्रहान आयोग का कहना था कि आजवाणी और अन्य नेताओं ने गुंबद पर चढ़े कारसेवकों से नीचे आने की अपील जरुर की थी लेकिन वह बहुत कमजोर अपील थी.

ऐसा लगा मानों मीडिया के लिए ऐसी अपील की जा रही हो. तब बीजेपी नेताओं ने कारसेवकों को सुरक्षा बलों का खौफ दिखाया था कि बहुत खून खराबा हो जाएगा. लेकिन इससे कारसेवकों का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया. उन्होंने कह दिया कि वह हलुवा पूरी खाने नहीं आए हैं, वह तो पुलिस की गोली खाने आए हैं. लिब्रहान आयोग ने आगे लिखा है कि तब के यूपी के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस बात को सार्वजनिक कर के बहुत बड़ा पाप किया कि किसी भी कीमत में कारसेवकों पर गोली नहीं चलाई जाएगी.

उस समय केन्द्र मे गृह सचिव माधव गोडबोले हुआ करते थे. उन्होंने अपनी किताब 'अनफिनिश्ड इनिंग' में लिखा है कि ढांचा गिराए जाने के दिन दोपहर एक बजे तत्कालीन गृह मंत्री एस बी चव्हाण ने कल्याण सिंह को फोन करके पूछा था कि कुछ युवकों के गुंबद पर चढ़ जाने की खबरों में कितनी सच्चाई है. इस पर कल्याण सिंह ने कहा था कि न केवल युवक गुंबदों पर चढ़ गये है अपितु उन्होंने गुंबद को तोड़ना भी शुरु कर दिया है. गौरतलब है कि कल्याण सिंह ने ही सुप्रीम कोर्ट में हल्फनामा देकर कहा था कि किसी भी कीमत पर विवादित ढांचे को तोड़ने नहीं दिया जाएगा.

ढांचा तोड़े जाने के बाद यूपी सरकार के वकील वेणु गोपाल ने कहा था हमारी तरफ से कोर्ट को धोखा दिया गया और मेरा सर शर्म से झुक गया है. अब जिरह के दौरान सीबीआई किस तरह के सबूत और तर्क रखती है और बीजेपी नेताओं के वकील उसकी काट में क्या पेश करते हैं. यह जानना दिलचस्प रहेगा.

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अभी राम मंदिर से जुड़ा एक दूसरा मुकदमा भी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने छह साल पहले विवादित ढांचे की 2.77 एकड जमीन तीन पक्षों में बांट दी थी. एक हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को और बाकी के दो हिस्से श्रीराम लल्ला विराजमान और निर्मोही अखाड़े को. यहां रामजी की मूर्ति रखे जाने का स्थान श्रीरामलल्ला विराजमान के पास है. राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़े के पास है और बाकी का खाली हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास है. तीनों ने उस जगह पर अपना मालिकाना हक जताते हुए सुप्रीम कोर्ट से इंसाफ की मांग की है.

अब मान लीजिए कि इस का फैसला भी अगले आम चुनावों के आसपास आता है. यहां भी अगर सारी जमीन हिंदु पक्ष को दी जाती है तो राम मंदिर बनाने का रास्ता खुलता है तो बीजेपी को इसका फायदा मिलता है. तब बीजेपी कह सकेगी कि मंदिर भी यहीं बनाएंगे और तारीख भी बताएंगे. तब राममंदिर का मॉडल पूरे देश भर में घुमाया जा सकता है. ऐसे ट्रक में मॉडल रखा जा सकता है जिसे मुसलमान चला रहा हो और जिसका क्लीनर दलित हो. और अगर फैसला खिलाफ आता है तो साधू संतों का आंदोलन बीजेपी को 2019 में फिर सत्ता तक पहुंचा सकने की पूरी गुंजाइश रखता है. तब रामभक्तों को यूपी में योगी आदित्यनाथ के रुप में कल्याण सिंह का ही प्रतिरुपी मिलेगा. गोली नहीं चलाने वाला.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

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