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शरद पवार राजनीति के माहिर खिलाड़ी, चाचा-भतीजे की सीक्रेट मीटिंग और कयास के जानिए सियासी मायने

पिछले दिनों एनसीपी चीफ शरद पवार और उनके भतीजे व महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार के बीच एक बैठक हुई. इसके बाद महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण और महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले की तरफ से ये दावा किया गया कि शरद पवार को कृषि मंत्रालय के साथ नीति आयोग के अध्यक्ष पद, बेटी सुप्रिया सुले के लिए कैबिनेट मंत्री का प्रस्ताव दिया गया है, इसे खुद शरद पवार ने खारिज कर दिया. हालांकि, कांग्रेस नेताओं के दावे के बाद जरूर महाराष्ट्र की सियासत में हलचल सी मच गई थी. हालांकि, ये खुलासा हो चुका है कि अजीत पवार और शरद पवार की जिनके घर मीटिंग हुई, उनके साथ चाचा-भतीजे के पिछले दो जेनरेशन से पारिवारिक संबंध है.

ऐसे में उनके घर अगर बुलाया गया और शरद पवार और अजीत पवार दोनों वहां पर पहुंचे, तो वे दोनों के बीच बिल्कुल निजी मुलाकात थी. दोनों नेताओं ने जिस तरह की बातें कही हैं, उसके बाद तो ये लगता है कि अगर मान लीजिए राजनीतिक चर्चा हुई भी है तो चाचा-भतीजे ने जो कुछ वहां वे सब लोगों के सामने है.

चाचा-भतीजे की मुलाकात से सस्पेंस

ऐसे बड़े नेता जब सार्वजनिक तौर पर कुछ कहते हैं तो वे इतना झूठ बोलेंगे ये मानने की गुंजाइश नहीं है. इसलिए, चाचा-भतीजे की मीटिंग के कुछ राजनीतिक मायने निकालना व्यर्थ है. इसके अलावा, एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करते बुधवार को जो कुछ भी कहा है, उसमें पवार ने कहा कि विचारधारा की जो लड़ाई है, उसमें हम बीजेपी की विचारधारा के साथ नहीं जा सकते हैं. और बीजेपी का साथ देने का कोई सवाल ही नहीं है.

शरद पवार के बारे में हमेशा एक चर्चा जरूर ये होती है कि वो बीजेपी के साथ जा सकते हैं. लेकिन 1999 में जब एनसीपी का गठन हुआ तब से ऐसी चर्चा होती रही है, लेकिन वे आज तक बीजेपी के साथ तो गए नहीं है. लेकिन, दूसरी पार्टियों को अगर देखें तो आज जो पार्टी बीजेपी के खिलाफ है, वो कभी बीजेपी के साथ सत्ता में रही है, वो चाहे बात ममता बनर्जी की करें या फिर नीतीश कुमार की. इसलिए सिर्फ शरद पवार को ये कहकर बदनाम करना कि वो बीजेपी में जा रहे हैं, इसमें कोई दम नहीं है.

महाराष्ट्र की जनता ये स्पष्ट तौर पर जानती है कि जो दोनों की विचारधारा है और जो दोनों का वोटबैंक है वो पूरी तरह से अलग है. इसलिए शरद पवार के लिए संभव नहीं है कि वो बीजेपी के साथ जा सकते हैं.

मुलाकात के क्या है मायने

अजीत पवार के एकनाथ शिंदे सरकार में शामिल होने के बाद से अब तक भले ही शरद पवार के साथ उनकी चार बार मुलाकात हो चुकी है, लेकिन हकीकत ये है कि शरद पवार उनसे मिलने एक बार भी नहीं गए. अजीत पवार की ये मजबूरी है कि उन्होंने जो कुछ भी पार्टी के खिलाफ किया, ऐसे में उनको लगता है कि संबंधों का एकदम से विच्छेद करना ठीक नहीं है. इसलिए हो सकता है कि अजीत पवार की ये कोशिश रही होगी. 

लेकिन, जब अजीत पवार एकनाथ शिंद सरकार में शामिल हो गए, पार्टी छोड़कर चले गए, तभी शरद पवार ने ये एलान किया था कि उनका इन चीजों से कोई संबंध नहीं है. उन्होंने कहा था कि अजीत पवार के साथ जाने का कोई सवाल नहीं है और उनके कदम को एनसीपी की विचारधारा के हिसाब से मान्यता नहीं दे सकते हैं.
ऐसे में नाना पटोले जो कांग्रेस के अध्यक्ष हैं या फिर पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण इस तरह का बयान देकर सोचते हैं कि चलो इस बहाने एनसीपी को खत्म कर देंगे. अशोक चव्हाण ने जब अजीत पवार के साथ सत्ता संभाली थी उस वक्त उन्होंने यही सोचा था कि कैसे एनसीपी को कम किया जा सके. इसलिए देश के अंदर जो एक शरद पवार विरोध खेमा है, वो पूरी कांग्रेस नहीं है.

इन लोगों को दिक्कत ये है कि शरद पवार का संबंध कैसे कांग्रेस के शीर्ष आलाकमान के साथ है, चाहे वो सोनिया गांधी हो या फिर मल्लिकार्जुन खड़गे. जब अजीत पवार वाला मामला हुआ, उस वक्त खुद मल्लिकार्जुन खड़गे ने बयान दिया था कि इस मामले पर शरद पवार से बात हुई और हम शरद पवार के साथ इस घड़ी में हैं. इसके बाद फिर कांग्रेस के प्रदेश लेवल के नेता अगर कुछ शरद पवार के बारे में कहना शुरू कर दे तो महज ये एक हास्यास्पद के अलावा और कुछ भी नहीं है. अजीत पवार को जिस तरह से टारगेट करके उनके शामिल कराया है अपने गुट में, ये अलग चीज है. ऐसे नहीं लगता है कि शरद पवार बीजेपी के साथ जाएंगे और वो इसे स्पष्ट भी किया है.

पवार पर ईडी के बयान में कितना दम

ईडी पर शरद पवार ने बयान दिया है. इसमें उन्होंने कहा ईडी का मतलब दूसरी पार्टियां नहीं है बल्कि एनडीए में सबसे अच्छे दल नरेन्द्र मोदी के सीबीआई और ईडी है. ऐसे में शरद पवार ने कौन सी नई पार्टी की. ये धमका कर जिस तरह से दूसरी पार्टियां फोड़ते हैं, इसमें तो शरद पवार ने कुछ नया नहीं कहा है. 

दूसरा महाराष्ट्र का जो एक सोशल स्ट्रक्चर है, उसमें कांग्रेस और एनसीपी जैसी पार्टियों का अपना सोशल बेस होता है. इस हिसाब से बीजेपी के साथ जाना यानी अपने वोट बैंक को छोड़ देना, जैसा हो जाएगा. कोई भी दल अपने ठोस वोट बैंक को नहीं छोड़ सकता है, जैसे बिहार में आरजेडी और यूपी में अखिलेश की समाजवादी पार्टी का है. इसी हिसाब से बीजेपी, कांग्रेस या एनसीपी का वोट बैंक अलग तरीके का है. ऐसे में शरद पवार अगर बीजेपी के साथ जाते हैं तो सोशल वोट बैंक खिसक जाएगा.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]  

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