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ब्लॉग: कुमारास्वामी के शपथग्रहण में विपक्षी एकजुटता, बीजेपी के लिए मुश्किलों की शुरुआत

कर्नाटक में मुख्यमंत्री कुमारास्वामी के शपथग्रहण समारोह में कुछ ऐसे नजारे देखने को मिले जिनकी कुछ समय पहले तक कल्पना नहीं की जा सकती थी. मायावती का अखिलेश यादव के बगल में बैठ कर बतियाना हो या मायावती का सोनिया गांधी के साथ गले मिलना हो या फिर सोनिया और मायावती का आपस में सिर टकराना हो. ये तस्वीरें बहुत कुछ बता रही हैं. शपथ तो कुमारास्वामी को मुख्यमंत्री पद की लेनी थी लेकिन पूरे समारोह की आकर्षण का केन्द्र मायावती रहीं. उनका सोनिया गांधी से सिर टकराना लंबे समय तक याद किया जाता रहेगा.

भले ही कैराना लोकसभा उपचुनाव में मायावती ने सीधे सीधे अपने वोटरों से आरएलडी प्रत्याशी को वोट देने की अपील नहीं की हो लेकिन आज बुआ जिस अंदाज में भतीजे से मिली उससे साफ है कि यूपी में दोनों मिलकर चुनाव लड़ने वाले हैं और बीजेपी के लिए सिरदर्द साबित होने वाले हैं. आज जब शपथ ग्रहण समारोह हो रहा था तब प्री मानसून की बारिश हो रही थी. मौसम सुहावना हो गया था लेकिन इन तस्वीरों ने राजनीति की गरमी को बढ़ा दिया है उत्तर भारत में पड़ रही गरमी की तरह.

2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से बीजेपी एक के बाद एक राज्य जीतती जा रही है. यहां तक कि बिहार में हार के बाद भी नितीश कुमार के साथ मिलकर सरकार बनवा ली. दिल्ली और पंजाब को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी ने हर मोर्चे पर फतह हासिल की है. बंगाल में वह कमजोर थी लेकिन पंचायत चुनावों में दूसरे नंबर पर आकर ममता बनर्जी को चौंका रही है. बीजेपी ने कांग्रेस को सीधी लड़ाई में हराया है और कुछ जगह क्षेत्रीय दलों से गठबंधन कर अपनी सरकारें बनाई है. मेघालय, मणिपुर और गोवा में दूसरे तीसरे नंबर पर आकर भी कांग्रेस को सत्ता से अलग किया है.

त्रिपुरा में वाम मोर्चे के किले को ध्वस्त किया है. ऐसे माहौल में विपक्ष सकते में था. विपक्ष को कोई तोड़ सूझ नहीं रहा था. यूपी में जरुर फूलपुर और गोरखपुर में मायावती ने सपा का साथ देकर इस सियासी मायूसी को कुछ हद तक दूर करने की कोशिश की लेकिन बात बन नहीं रही थी. कर्नाटक में भी अगर बीजेपी कुछ चौकस होती तो मैदान मार सकती थी लेकिन उसकी थोड़ी सी लापरवाही ने मानो विपक्ष को संजीवनी दे दी है. विपक्ष को लगने लगा है कि बीजेपी को हराया जा सकता है, मोदी अविजित नहीं हैं.

विपक्ष को पहल बड़ा मौका मिला तो जाहिर है कि उसका जश्न मनाने का उसका हक बनता है. आखिर कहा जा रहा है कि ममता, माया ने सोनिया गांधी और देवगौड़ा के बीच बातचीत करवाई और आधार तैयार किया. स्वाभाविक है कि शपथ ग्रहण समारोह में ममता, माया, सोनिया, अखिलेश, सीताराम येचुरी, शरद यादव का यह मिलन सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं रहने वाला है. राजनीति संभावना का खेल है. आखिर दो महीने पहले तक कोई क्या इस सीन की कल्पना भी कर सकता था. लेकिन अब सोनिया मायावती की गलबहियां हमारे सामने हैं. मायावती और अखिलेश का एक ही मंच पर होना हमारे सामने हैं. ममता और वाम दलों के नेताओं का एक मंच पर होना हमारे सामने है.

ममता और सोनिया का मिलना हमारे सामने है. शरद पंवार का इन सबके साथ आना हमारे सामने है. बीजेपी को इस से चिंतित होना ही चाहिए और इसका तोड़ निकालने पर भी सोचना ही चाहिए. बहुत संभव है कि कुछ महीनों में कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस की सरकार गिर जाए और विपक्षी एकता का गुब्बारा भी फूट जाए लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता है तब तक बीजेपी को संजीदा होना ही पड़ेगा. अपने कुनबे को बढाना होगा. बीजेपी को सत्ता बचाने की फिक्र करनी है. विपक्ष की तो मजबूरी है एक होना. एक नहीं हुए तो सबके सब राजनीतिक रुप से और ज्यादा सिमट सकते हैं. इसके मददेनजर भी हम अगर इन तस्वीरों को फिर से देखें तो फिर से कहेंगे कि राजनीति गरमा गई है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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