(Source: ECI / CVoter)
इमरान खान के अनैतिक 'धोबीपाट' वाले दाव से विपक्ष कैसे हो गया चित्त?
पाकिस्तान की सियासी लड़ाई पर अब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला देगा कि इमरान खान सरकार के खिलाफ विपक्ष द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को खारिज किया जाना कानूनी रूप से कितना सही था. हालांकि सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने नेशनल असेंबली भंग कर दी है, लिहाज़ा अगर सेना ने कोई दखल न दिया, तो चुनाव कराने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है क्योंकि नए चुनाव के बाद ही अब संसद बहाल होगी. इस बीच इमरान खान ने पाकिस्तान के पूर्व चीफ जस्टिस गुलज़ार अहमद का नाम केयरटेकर यानी कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त करने के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा है. गुलज़ार अहमद को इमरान का करीबी समझा जाता है, लिहाज़ा चुनाव होने तक उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद शख्स को ही इस कुर्सी पर बैठाने को तवज्जो दी है.
पाकिस्तान की सियासत को करीब से समझने वाले मानते हैं कि इमरान खान ने अपने 'धोबीपाट' वाले दाव से समूचे विपक्ष को चित्त कर दिया है. हालांकि इसे उनका अनैतिक दांव ही माना जाएगा क्योंकि ये पाकिस्तान के लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है. लेकिन इमरान सरकार ने संविधान में मौजूद प्रावधानों की बारीकी का फायदा उठाते हुए अपनी मनचाही मुराद पूरी कर ली. क्योंकि इमरान भी संसद भंग करवाकर चुनाव में जाने के पक्ष में थे और इसके लिए वे पहले दिन से विपक्ष को ये ऑफर दे रहे थे कि अगर वे अविश्वास प्रस्ताव वापस ले लें, तो वे तुरंत नेशनल असेंबली को भंग करने की सिफारिश कर देंगे.
लेकिन विपक्ष अपनी जिद पर अड़ा रहा क्योंकि उसका सारा फोकस नंबरों के गणित पर ही था. बेशक उस गणित में विपक्ष का पलड़ा ही भारी था, लेकिन उसने संसदीय प्रक्रिया और संविधान में मौजूद उन प्रावधानों पर गौर करने की कोई ज़हमत नहीं उठाई कि इमरान खान इसका फ़ायदा उठाते हुए उस कहावत को सच भी साबित कर सकते हैं कि- "सांप भी मर जाअ और लाठी भी न टूटे." वही हुआ भी. अविश्वास प्रस्ताव भी खारिज हो गया, सरकार भी नहीं गिरी और नए चुनाव का रास्ता भी खुल गया. हालांकि इमरान की इस चाल को विपक्ष ने संविधान की आत्मा से खिलवाड़ ही बताया है, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता क्योंकि सत्ता का ताला खोलने की चाबी उनके हाथ से निकल चुकी है.
कानूनी विशेषज्ञ भी कहते हैं कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने अब डिप्टी स्पीकर के फैसले को गलत भी ठहरा दिया, तब भी इमरान या उनकी पार्टी की सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है. वह इसलिये कि सुप्रीम कोर्ट के पास भी दोबारा संसद बहाल करने का कोई अधिकार नहीं है.
वैसे पाकिस्तान में मीडिया के एक वर्ग का मानना है कि विपक्ष द्वारा इमरान सरकार के खिलाफ 8 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव लाने और उसे 3 अप्रैल को संसद में पेश करने के इस अंतराल में इमरान खान अवाम के बीच ये नरेटिव बनाने में काफी हद तक कामयाब हुए हैं कि विपक्षी दलों ने अमेरिका के इशारे पर ही उनकी सरकार गिराने की साजिश रची थी. मुल्क में महंगाई और अन्य मुद्दे अपनी जगह हैं, लेकिन चुनाव में इमरान इसे विपक्ष के खिलाफ एक बड़ा मुद्दा बनाकर अवाम की सहानुभूति बटोरने की भरपूर कोशिश करेंगे.
इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी ने एलान किया है कि प्रधानमंत्री उन देशद्रोहियों के खिलाफ एक प्रदर्शन करेंगे जो विदेशी साजिश का हिस्सा हैं. इशारा साफ है कि अगले 90 दिनों के भीतर होने वाले चुनाव के दरमियान वे इसे मुल्क का सबसे अहम मुद्दा बनाने के लिए कमर कस चुके हैं. विपक्ष आरोप-प्रत्यारोप की लड़ाई में ही अभी उलझा हुआ है, जबकि इमरान ने मंगलवार को अपनी पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाकर चुनावी तैयारी शुरू कर दी है. इस बैठक में पार्टी अपने उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा करेगी.
पाकिस्तान के इस पूरे सियासी ड्रामे में विपक्ष के हाथ तो कुछ नहीं लगा, लेकिन इमरान से बगावत करके विपक्ष से हाथ मिलाने वाले सांसदों की सबसे ज्यादा फजीहत हो गई. उनके लिए दोबारा चुनाव जीतकर आना, एक बड़ी चुनौती होगी. इमरान की पार्टी से तो उन्हें टिकट मिलेगा नहीं और जो विपक्षी दल उन्हें टिकट देंगे, वहां पहले से चुनाव लड़ने के लिए टिकट पाने की लाइन में लगे पुराने नेताओं को मौका न मिलने से वे इन बागियों का पत्ता साफ करवाने में हर मुमकिन ताकत लगाने से भला क्यों पीछे हटेंगे?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)