उपवास का उपविश: मत चूको चौहान...

मुख्यमंत्री का अनिश्चितकालीन उपवास खत्म हो गया है. चौबीस घंटे के अंदर ही उनकी अंतरात्मा ने कह दिया कि राज्य में सब ठीक है, शांति बहाल हो गयी है इसलिए अब उपवास का उपविश: यानि उपवास खत्म हो जाना चाहिए. यहां सवाल सीएम के उपवास करने या ना करने का नहीं है, सवाल उस मकसद का है जिसको लेकर चौबीस घंटे तक शिवराज ने सुर्खियां बटोरीं. सवाल ये भी है कि इस उपवास का नतीजा क्या रहा..आंदोलन का क्या हुआ..इससे हासिल क्या हुआ. किसानों के हालात पर कोई फर्क पड़ा क्या? नतीजा सामने है ढाक के तीन पात..क्योंकि मुख्यमंत्री के संतुष्ट होकर उपवास का आयोजन खत्म करने के बाद मध्यप्रदेश से तीन किसानों की खुदकुशी की खबर आ चुकी है.
सवाल औऱ भी कई है. किसान का बेटा होने का दंभ भरने वाले चौहान ने किसानों की राहत के लिये इतना वक्त लिया कि उन्ही की पुलिस ने 6 किसानों का सीना छलनी कर दिया? गोलियां क्यों चलीं? किसके कहने पर चलाई गईं? किसानों की मौत के बाद राज्य सरकार ने सारा ठीकरा कांग्रेस के सिर फोड़ दिया और आननफानन में ढोल पीटा कि गोलियां पुलिस ने नहीं चलाईं. एक के बाद एक गलतियों की फेहरिस्त है. वो भी उस चौहान के राज में जहां उनकी सरकार तेरह साल से बनी हुई है. अब सवाल ये है कि किसानों की इस दुर्दशा के लिये जिम्मेदार कौन है? एक आंकड़े के मुताबिक पिछले 21 साल में तीन लाख अट्ठारह हजार किसानों ने आत्महत्या की. हिसाब लगाएं तो हर 41 मिनट पर एक किसान आत्महत्या करता है. ये आंकड़े रोंगटे खड़ा करने वाले हैं. ये आंकड़े इस देश में अन्नदाता की बेबसी, उसकी दुर्दशा और कभी ना खत्म होने वाली लाचारी को बताते हैं. सवाल फिर वही अनाज पैदा करने वाला अगर बेहाल और फटेहाल है तो किसके कारण? दरअसल किसानों की बात चुनावों के दौरान कर राजनीतिक पार्टियां तालियां और सुर्खियां तो बटोर लेती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद अपने ही वादों से कन्नी काटती हैं.
प्रतीकात्मक तस्वीर
इस देश में खेती पर खर्च बढता जा रहा है और फसल की कीमत अगर आप लागत पर 50 फीसदी जोड़कर नही देंगे तो किसान घर-परिवार कैसे चलाएगा? यूं ही नहीं है कि रोजाना 2300 लोग औसतन खेती छोड़ रहे हैं और हर 41 वें मिनट पर किसान खुदकुशी कर रहा है. मध्यप्रदेश में समय समय पर किसान अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करते रहते हैं, लेकिन मौजूदा हालात की वजह यूपी की सियासत से निकली चिंगारी है, जो चौहान को जला रही है .
मोदी का यूपी के किसानों को लेकर फैसला जो योगी ने लागू कराया वह दूसरे राज्य की सरकारों की गले की फांस बन गया है. जिसे शिवराज ना निगल पा रहे हैं और ना ही उगल पा रहे हैं. साल 2016 का आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि देश के 17 राज्यों में किसानों की सालाना औसत आय 20 हजार रुपये से भी कम है. यानी लगभग 1600 रुपए महीना. अब कर लीजिए खेती औऱ चला लीजिए घर. चुनाव आएगा तो फिर सुनेंगे- जय जवान! जय किसान!नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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