(Source: ECI / CVoter)
आदित्यनाथ योगी को यूपी का सीएम बनाने के मायने
गोरखनाथ पीठ के महंत और गोरखपुर से पांच बार सांसद चुने गए आदित्यनाथ योगी को जब यूपी का सीएम बनाने की घोषणा हुई तो लगा जैसे महाप्रलय आ गया हो! भारत का उदारवादी और वामपंथी ख़ेमा इसे भारतीय मॉडल की धर्मनिरपेक्षता के ताबूत में आख़िरी कील बताने लगा और दक्षिणपंथी ख़ेमा इसे हिंदुओं की जीत के रूप में प्रचारित करने लगा. एक पक्ष को भारत का भविष्य अंधकारमय नज़र आ रहा है तो दूसरा पक्ष इस कदम को ‘तमसोमाज्योतिर्गमय’ के रूप में ले रहा है. लेकिन सच्चाई कहीं इन दोनों अतिवादों के बीच फंसी हुई है.
कड़वी हकीक़त तो यही है कि जो लोग यूपी के जनादेश को सनातन मान कर चल रहे हैं, उन्हें अगले कुछ सालों के बाद ही गहरा झटका लग सकता है. हज़ारों विश्लेषण यह बता चुके हैं कि यूपी की जनता ने इस बार धर्म और जाति की सीमाएं तोड़कर मतदान किया है. अतः इसे भारतीय धर्मनिरपेक्षता के नए मॉडल के तौर पर देखा जाना चाहिए. यह जनादेश हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए न तो मांगा गया था, न ही यूपी की जनता ने हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए मतदान किया. उन्होंने पीएम मोदी द्वारा किए गए विकास के आवाहन पर कान दिया. लेकिन ज़्यादा दूर मत जाइए, यह भरोसा तोड़ना मोदी और भाजपा को 2019 के आम चुनावों में ही महंगा पड़ सकता है, क्योंकि तब मोदी के पांच साल और योगी के लगभग 2 साल का काम जनता के सामने होगा और तब जुमलेबाज़ी और मात्र हिंदुत्व के सहारे ध्रुवीकरण की राजनीति नहीं चलेगी.
ऐसे में एक प्रश्न लगातार लोगों के जहन में गर्दिश कर रहा है कि यूपी के सीएम पद के लिए आदित्यनाथ योगी का नाम ही क्यों तय किया गया? योगी का विघटनकारी व्यक्तित्व और कृतित्व जनता के सामने आईने की तरह साफ है. योगी ने स्वयं आज तक कुछ छुपाने की कोशिश नहीं की. भारत ही नहीं, नेपाल में भी हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना पूरा करने की कोशिश में वह जी-जान से जुटे रहते हैं. वह नेपाल के कट्टर हिंदूवादी नेताओं के सम्मेलन करवाते रहे हैं और द्विराष्ट्रवादी वि.दा. सावरकर के संगठन ‘अभिनव भारत’ के कार्यकर्ताओं से गोरक्ष पीठ में अक्सर मिलते रहे हैं. उनके जेबी संगठन ‘हिंदू युवा वाहिनी’ के कारनामों से पूरा यूपी परिचित है.
हाल ही में संपन्न यूपी विधानसभा चुनावों में अगर किसी नेता ने राम मंदिर का मुद्दा अकेले दम पर जिलाए रखा, तो वह योगी ही थे. नाथ संप्रदाय के जोगी से आज के योगी में कायांतरण दिलचस्प किंतु भयावह है. ‘हिंदू युवा वाहिनी’ का उद्घोष वाक्य ही है- ‘अगर यूपी में रहना है तो योगी-योगी कहना है.’ एक विराट हिंदू चेतना रैली में योगी उपस्थिति में ही हिंदू युवा वाहिनी के एक मंच संचालक ने मृत मुस्लिम महिलाओं के बारे में घृणास्पद बातें कही थी. संक्षेप में कहा जाए तो योगी उग्र, आक्रामक और सैन्य हिंदू राष्ट्रवाद के पोस्टरब्वाय हैं. ऐसे में क्या भाजपा के पास आदित्यनाथ योगी के अलावा कोई दूसरा नाम सीएम पद के लिए उपलब्ध नहीं था?
इसका उत्तर फिलहाल न में ही है क्योंकि आरएसएस गुजरात के बाद अब यूपी को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बनाने का निर्णय कर चुकी है. दरअसल यह योजना गुजरात के पहले ही बन गई थी और राम मंदिर आंदोलन के बाद परवान चढ़ने लगी थी. इस आंदोलन ने आरएसएस के राजनीतिक मोर्चे भाजपा को देश में तो नई ऊंचाइयां दे दीं लेकिन यूपी के जातिगत एवं राजनीतिक समीकरणों के चलते उस समय दावं उल्टा पड़ गया. तब दलितों और अति पिछड़ों का यूपी में इतना सैन्यीकरण और हिंदूकरण नहीं हो पाया था. संघ परिवार की वर्षों की मेहनत के बाद यूपी में मिला 2017 का विराट जनादेश आरएसएस को हिंदू राष्ट्र बनाने की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाने के अवसर और जरख़ेज़ ज़मीन के तौर पर नज़र आ रहा है, जो एक छलावा भी हो सकता है.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि नाथ संप्रदाय के जिस गोरखनाथ मठ की ख्याति हिंदू-मुस्लिम जियारतगाह के रूप में थी उसे राजस्थान से आए योगी दिग्विजयनाथ के बड़ा महंत बनने के बाद साम्प्रदायिक रूप दे दिया गया. वह 1952 के बाद हिंदू महासभा के टिकट से चुनाव लड़ने लगे और भर्तहरि, गोपी चंदर तथा कबीर की वाणी गा-गाकर पूरे देश में भिक्षाटन करते हुए मनुष्य से मनुष्य का भेद मिटाने वाले नाथ योगियों की संख्या घटने लगी. पहले यहां मुसलमान खिचड़ी चढ़ाते और बांटते थे, लेकिन यहां शुरू हुई विशुद्ध हिंदूवादी राजनीति के चलते अब उनका प्रवेश ही निषेध होने लगा. इसी एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए आदित्यनाथ योगी के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने अयोध्या के रामजन्मभूमि आंदोलन में बेहद सक्रिय भूमिका निभाई जिसे आदित्यनाथ योगी ‘धर्मयुद्ध’ के तौर पर जारी रखे हुए हैं और सूबे की लगभग 20% मुस्लिम आबादी को दहशत में डाले हुए हैं!
जिस पीठ के जोगी गोरखबानी गाते थे- छोड़ अमिरिया लाल मोरे बन गयेन जोगी हो, बारहा बरिसवा माता राज-पाठ लिक्खिन हो, आज तेरहा बरिस लिक्खिन जोगी बराती हो- वहां अब ‘मन न रंगाए रंगाए जोगी कपड़ा’ की कहावत चरितार्थ हो रही है. नाथ संप्रदाय की शिक्षाओं के विपरीत माया के फेर में पड़ने का उपक्रम चल रहा है. कहा जा सकता है कि गोरखनाथ पीठ की वर्तमान राजनीति का स्वरूप जोगी गोरखनाथ की मूल स्थापनाओं के ही विपरीत है. हिंदू धर्म की महानता और उसके सर्वसमावेशी होने के बारे में किसी को शक हो ही नहीं सकता लेकिन योगी का विभाजनकारी सामाजिक कृतित्व सबके सामने है.
आज लोग भले ही आदित्यनाथ योगी की एक तपस्वी वाली जीवनचर्या के गीत गा-गा कर उनका मानवतावादी स्वरूप गढ़ने की लाख कोशिशें करते रहें, लेकिन योगी को यूपी का सीएम बनाकर आरएसएस और भाजपा ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वे यूपी और देश में हिंदुत्व का खुल्ला खेल फर्रुख़ाबादी खेलने को तैयार हैं. आख़िरकार हानि-लाभ, जीवन-मरण, जस-अपजस तो विधि के हाथ में है!