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Blog: हम हिंदू मुस्लिम करते रहे उधर...

आईएमएफ की रिपोर्ट चौंकाने वाली है. रिपोर्ट कहती है कि भारत की विकास दर इस साल नेगेटिव रहने वाली है जबकि बांग्लादेश की विकास दर चार फीसद हो सकती है. यहां तक कि पाकिस्तान की विकास दर भी एक फीसद के आसपास रह सकती है. रिपोर्ट आगे बताती है कि भारत में विकास दर पिछले चार सालों में 8.3 प्रतिशत से गिरकर 3.1 फीसद तक पहुंची जबकि इस दौरान बांग्लादेश की विकास दर नौ फीसद के आसपास रही. कोरोना काल में भारत की विकास दर माइनस में आ गयी. माइनस 24 फीसद. उधर बांग्लादेश मजबूत बना रहा.

हम हिंदू मसलमान करते रह गये और बांग्लादेश कहीं आगे निकल गया. हम बांग्लादेशियों को दीमक कहते रहे और बांग्लादेश ने विश्वगुरु को कई मायनों में पछाड़ दिया. सवाल उठता है कि ऐसा क्यों हो रहा है... क्या सिर्फ कोरोना काल में पिटी अर्थव्यवस्था इसके लिए दोषी है या कुछ सालों से चला आ रहा सिलसिला है.

आईएमएफ की रिपोर्ट चौंकाने वाली है. रिपोर्ट कहती है कि भारत की विकास दर इस साल नेगेटिव रहने वाली है जबकि बांग्लादेश की विकास दर चार फीसद हो सकती है. यहां तक कि पाकिस्तान की विकास दर भी एक फीसद के आसपास रह सकती है. रिपोर्ट आगे बताती है कि भारत में विकास दर पिछले चार सालों में 8.3 प्रतिशत से गिरकर 3.1 फीसद तक पहुंची जबकि इस दौरान बांग्लादेश की विकास दर नौ फीसद के आसपास रही. कोरोना काल में भारत की विकास दर माइनस में आ गयी. माइनस 24 फीसद. उधर बांग्लादेश मजबूत बना रहा.

रिपोर्ट में आगे अनुमान लगाया गया है कि इस वित्तीय वर्ष के अंत तक भारत को प्रति व्यक्ति आय के मामले में बांग्लादेश पीछे छोड़ सकता है. अभी भारत में ये 2100 डालर के आसपास है जो वित्तीय वर्ष के अंत तक गिरकर 1877 डालर हो जाएगी. इस दौरान बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय 1888 डालर हो जाएगी. भारत से कुछ ज्यादा लेकिन बांग्लादेश का आगे निकलना ही खबर है. भारत की प्रति व्यक्ति आय में दस फीसद की कमी आएगी उधर बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय चार फीसद बढ़ जाएगी.

वैसे ये रिपोर्ट अनुमान पर आधारित है. जरुरी नहीं है कि आईएमएफ का अनुमान सही ही साबित हो. इससे पहले भी आईएमएफ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के कई अनुमान गलत साबित हुए हैं. बहुत संभव है कि इस बार भी ऐसा ही हो. वैसे भी अभी वित्तीय वर्ष खत्म होने में पांच महीने से ज्यादा बचे हैं और भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर भी धीरे धीरे लौट रही है. अगर परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं तो भारत आईएमएफ के अनुमान को झुठला भी सकता है.

लेकिन कहानी ये नहीं है. कहानी ये है कि ऐसा क्यों हो रहा है. आखिर पांच साल पहले भारत की प्रति व्यक्ति आय बांग्लादेश से चालीस फीसद ज्यादा थी. पिछले पांच साल में बांग्लादेश इस गैप को कम कर देता है और आगे निकलने की स्थिति में आ जाता है और हम मुंह ताकते रह जाते हैं. पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था की बात करते हैं लेकिन प्रति व्यक्ति आय को गिरने से संभाल नहीं पाते. कहानी ये नहीं है कि भारत के पड़ोसी देश अच्छा कर रहे हैं. कहानी ये है कि भारत क्यों पिछड़ रहा है. हमें इसकी ही चिंता ज्यादा होनी चाहिए.

भारत के मुकाबले बांग्लादेश केवल दो ही पैरामीटर पर पीछे हैं. एक, प्रति व्यक्ति आय के मामले में और दूसरा, ह्यूमन डेवलेपमेंट इंडेक्स के मामले में. एक में वो आगे निकल सकता है और दूसरे में वो भारत से सिर्फ दो अंक पिछड़ा हुआ है. औसत भारतीय की उम्र 69 साल है जबकि औसत बांग्लादेशी चार साल ज्यादा जीता है. भारत की जन्म दर 2.33 फीसद है जबकि बांग्लादेश की जन्म दर 2.1 है. यहां गौरतलब है कि 1971 से पहले जब बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा थी तब वहां जन्म दर 6.6 फीसद थी और तब भारत की जन्म दर 3.9 फीसद. भारत में प्रति हजार में से चालीस बच्चे पांच साल के होने से पहले मर जाते हैं इसे इनफैंट मोरटैलिटी रेट कहा जाता है. बांग्लादेश में ये दर 31 प्रति हजार ही है. यहां भी वो भारत से अच्छा कर रहा है. साक्षरता दर दोनों देशों की करीब करीब बराबर है.

बांग्लादेश से भारत को एक बात सीखनी चाहिए. वो ये कि बांग्लादेश कपड़ा गारमेंट निर्यात का बड़ा केन्द्र बन गया है. यहां उसे कुछ रियायतें हासिल हैं जिसका पूरा लाभ उसने उठाया है. बांग्लादेश कुल मिलाकर निर्यात पर जोर देने वाली अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहा है.

इसके मुकाबले भारत में क्या हो रहा है? हर चीज पर राजनीति हो रही है, हर चीज को हिंदू मुस्लिम में बांटने की कोशिश हो रही है, हर छठे सातवें महीने कोई न कोई चुनाव हो जाता है और विकास जाति में बदल जाता है. बिहार के चुनाव में कश्मीर के आतंकवादी आ जाते हैं, कहीं रेप के नाम पर राजनीति होती है तो कहीं रेप के आरोपियों की जाति के नाम पर राजनीति होती है. राजस्थान में पुजारी के जलने और यूपी में पुजारी के जलने में फर्क किया जाता है. संसद में जिसके पास बहुमत जुट जाता है वो अपने हिसाब से नियम तय करने लगता है. विवादास्पद बिल बिना बहस के पास हो जाते हैं. ऐसे में पक्ष विपक्ष के बीच बदला लेने और बदला चुकाने की राजनीति होने लगती है. साहिर का गाना याद आता है. प्यासा फिल्म का था शायद - जिन्हें नाज है हिंद पे वो कहां हैं...

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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