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अतीक-अशरफ पर धांय धांय के धुएं से उठे सवाल

रात के साढ़े दस बजे थे झांसी की दो दिन की थकान को उतारने के लिए जल्दी सोने की तैयारी में थे कि अभिषेक का फोन बजा. सर अतीक अशरफ मार दिए गए. कब कैसे पूछते हुए टीवी रूम की तरफ भागा तो देखा टीवी स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज छाई थी अतीक अशरफ की हत्या और थोड़ी देर में ही वो खौफनाक वीडियो भी पर्दे पर चलने लगा जिसमें मीडिया से बात करने के दौरान करीब से दोनों भाइयों पर धांय धांय गोलियां बरस रहीं थीं. एकदम लाइव मर्डर. 

पुलिस के पहरे में कैमरों के सामने गोलियां बरसा कर तीन हमलावरों ने दोनों ढेर भाइयों को ढेर कर दिया. सच कहूं तो थोड़ी देर तक सदमे में रहा. ये कौन सा दौर आ गया और क्या देखने को मजबूर हो गए हैं हम सब. अभी पिछले हफ्ते मंगलवार से शुक्रवार तक लगातार झांसी आना जाना रहा. वजह वहीं अतीक के काफिले का कवरेज. जब उसे दूसरी बार साबरमती जेल से प्रयागराज लाया जा रहा था तो हम भोपाल के टीवी रिपोर्टर ने यूपी पुलिस के काफिले में अतीक की गाड़ी का शिवपुरी से झांसी तक कैमरे से लगातार कवरेज किया था. 

शिवपुरी जिले के सुरवाया थाने में उसे उतारा गया वहां उससे बात की. माफिया टर्नड पॉलिटिशियन अतीक को देखकर नहीं लगता था कि इस आदमी पर सौ से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं. अगर ये इतना दुर्दांत अपराधी था तो कैसे एक बार उस फूलपुर लोकसभा से सांसद रहा जो पंडित नेहरू की संसदीय सीट थी. कैसे ये अपराधी पांच बार विधायक रहा? ऐसे कैसे लोकतंत्र में हम सांस ले रहे हैं जहां दुर्दांत अपराधी जो छह बार जनप्रतिनिधि रहा और अब पचीसों पुलिस के पहरे में अपनी बुजुर्गियत के दौर में एक प्रदेश की जेल से निकल कर दो राज्यों की सीमा को पार कर चौथे राज्य में कोर्ट कचहरी करने जा रहा है. 

अतीक को अति सुरक्षित पुलिस वेन में नीचे गद्दे बिछाकर सुलाया जाता था जहां से वो मुश्किल से पुलिस जवानों के सहारे से उठता था और जालियों पर जब हम टीवी वालों ने कैमरे लगाये तो बोला सरकार कहती है मिट्टी में मिला देंगे तो मिट्टी में तो मिला दिया अब तो रगड़ा जा रहा है. जब उससे पूछा कि उसकी पत्नी ने उससे जेल में बात की थी तो बोला ये सब झूठ है. सरकार से यही कहूंगा कि कम से कम अब औरतों और बच्चों को तो छोड़ दो. अतीक को बुधवार को झांसी से प्रयागराज रवाना किया था तो सोच रहा था कि अब ये लौटेगा तो फिर आना पड़ेगा मगर भोपाल लौटते ही अगले दिन दोपहर फिर खबर आ गई कि उसके बेटे असद का एनकाउंटर एसटीएफ ने झांसी के पास परीछा में कर दिया. उल्टे पैर फिर भागे. 

रात में झांसी पहुंचकर शहर से बीस किलोमीटर दूर परीछा डेम के किनारे के सुनसान इलाके में बबूल की झाड़ियों के बीच जहां असद और अतीक का ड्राइवर गुलाम को मारा गया था वहां पहुंचे. रात का अंधेरा था मगर टीवी कैमरों की रोशनी से इलाका गुलजार था. सभी चैनलों के छोटे बड़े रिपोर्टर पुलिस सूत्रों की बतायी एनकाउंटर की कहानी को तेज तेज आवाज में दोहरा रहे थे. अगला दिन फिर मेडिकल में रखे शव और उनको लेने आने वाले परिजनों के इंतजार में गुजरा. हां बीच बीच में उस मुठभेड़ की जगह पर जरूर जाना पड़ रहा था जहां जमीन पर खून के काले धब्बों के बीच हमें एक चला हुआ बुलेट भी दिखा जो हमारे चैनल पर खबर चलने के बाद पुलिस तुरंत उसे उठाने भी आ गई. 

पुलिस के मुताबिक बिना नंबर और खरोंचे गए चेसिस नंबर की बाइक से सवार दोनों अपराधी एसटीएफ की टीम से घिरने के बाद इस दो से तीन फीट गहरे गड्ढे में बाइक से फिसलने के बाद गिरे ओर वहां से पुलिस पर फायरिंग की. जवाबी फायरिंग में दोनों मारे गए. असद गुलाम की बाइक तो एक दिन पहले गिरी थी मगर दूसरे दिन भी चैनल वाले यहां स्थानीय लोगों को लाकर उनकी बाइक गड्ढे में गिराते रहे सीन को रिक्रिएट करने के मकसद से. वहां मौजूद एंकर मुठभेड़ का सीन तो समझा रहे थे मगर सवाल कम उठा रहे थे. खैर वो शाम और पूरी रात हमारी झांसी मेडिकल कालेज के चीर घर के बाहर तब तक काटनी पड़ी जब तक असद के फूफा और गुलाम के जीजा को पुलिस ने आधी रात को शव कड़ी सुरक्षा में नहीं सौंपे. 

बीस पुलिस जवानों के साथ दो एंबुलेंस का काफिला रात डेढ़ बजे झांसी से प्रयागराज की ओर रवाना हुए तब जाकर हम भोपाल की ओर लौटे. पर सोचा नहीं था भोपाल में दोपहर को असद की मुठभेड़ की खबर करने के लौटने के तुरंत बाद रात में उसके पिता और चाचा की हत्या की चौंकाने वाली खबर मिलेगी. कैमरों के सामने चलती गोलियां हैरान कर रहीं थीं. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चल रहे केस में पुलिस हिरासत में दो लोगों की इस तरह मौत कई सवाल खड़े कर रही है. 

मारने वाले नई उमर के लड़के हैं जो फर्जी मीडिया वाले बनकर आए और गोलियां बरसाने के बाद भागे नहीं. उन्होंने किसी पुलिस वालों ने हथियार नहीं उठाए. बड़ी आसानी से उनको पकड़ लिया और फिर गोलियां बरसाने के बाद वहां की गई उनकी नारेबाजी से साफ है कि नफरत की खेती अब फल देने लगी है जो आने वाले गंभीर दिनों की ओर संकेत कर रही है.

(नोट- अब क्या हम टीवी मीडिया वाले किसी अपराधी के इतने करीब होकर जाकर बाइट लेने जा पायेंगे)

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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