उप-चुनाव नतीजे: बीजेपी, कांग्रेस की जय-जयकार, 'आप' में मचा हाहाकार!

नई दिल्ली: हांडी का एक चावल मसल कर यकीनन कहा जा सकता है कि हांडी के पूरे चावल पक चुके हैं या नहीं, लेकिन भारत में उप-चुनावों के नतीजों से ठीक-ठीक यह कह पाना मुश्किल होता है कि किस पार्टी की हांडी कितनी पक चुकी है. फिर भी आज घोषित हुए नतीजों से काफी कुछ अंदाज़ा लगाया जा सकता है, क्योंकि ये उप-चुनाव किसी एक ख़ास इलाके में नहीं बल्कि भारत के 8 मुख़्तलिफ राज्यों की 10 विधानसभा सीटों के लिए हुए थे.
उप-चुनाव उत्तर-पूर्व के असम, पूर्व के पश्चिम बंगाल, उत्तर के हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और झारखंड, मध्य भारत के एमपी, पश्चिम भारत के राजस्थान तथा दक्षिण भारत के कर्नाटक में हुए. लगभग अखिल भारतीय प्रतिनिधित्व इन उप-चुनावों ने किया, जिसमें बीजेपी ने 5, कांग्रेस ने 3, टीएमसी ने 1 और जेएमएम ने 1 सीट जीती है. यानी क्षेत्रीय दलों का जलवा अब भी बरकरार है. जाहिर है कहीं कोई लहर नज़र नहीं आ रही, बल्कि कांग्रेस ने भी आश्चर्यजनक ढंग से अपनी साख बचा ली है. इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि मायावती की बसपा और केजरीवाल की आप पार्टी लगातार अपनी ज़मीन खोती जा रही है. इस हद तक कि दिल्ली की राजौरी गार्डन सीट पर तो आप के प्रत्याशी की जमानत ही जब्त हो गई और राजस्थान में बसपा की धौलपुर सीट छिन गई. नतीजे यह भी दिखा रहे हैं कि बीजेपी का हाथ अब भी सबसे ऊपर है. उसने अपनी पिछली सभी सीटें बरकरार रखते हुए जहां धौलपुर सीट बसपा से छीन ली है तो वहीं दिल्ली की राजौरी गार्डन सीट उसने ‘आप’ से पराई कर दी. इस जीत के बाद पार्टी का एमसीडी की एंटीइनकंबेंसी झेलने का माद्दा अवश्य बढ़ेगा.
ये नतीजे देखकर बीजेपी से कहीं ज़्यादा ख़ुश कांग्रेस होगी क्योंकि देश के ज़्यादातर हिस्सों में उसको कोई 10 में से 1 नंबर भी देने को तैयार नहीं है. लेकिन उसने कर्नाटक की नंजनगुड और गुंडलुपेट दोनों सीटें और एमपी की अटेर सीट बचा ली. नंजनगुड सीट सीएम सिद्धारमैया के लिए नाक का सवाल बन गई थी क्योंकि इस सीट से कभी उनके सिपहसालार रहे वी श्रीनिवास प्रसाद उन्हें सीधे चुनौती दे रहे थे, जो मंत्री पद न मिलने से कुपित होकर बीजेपी में चले गए थे. कांग्रेस की कर्नाटक में यह जीत बीजेपी के दिग्गज येदुरप्पा की साख और उत्साह के लिए भी यह ख़तरे की घंटी है क्योंकि राज्य में अगले साल ही विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
कांग्रेस पार्टी को पार्टी करने की वजह दिल्ली की राजौरी गार्डेन सीट ने भी दे दी है. यहां भले ही बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े अकाली नेता मनजिंदर सिंह सिरसा की जीत हुई हो, लेकिन कांग्रेस न सिर्फ दूसरे नंबर पर रही बल्कि 33.23% वोट हासिल करने के साथ-साथ उसका वोट शेयर पिछली बार से 21% बढ़ गया है. सर पर आ चुके एमसीडी चुनावों के लिए निश्चित ही उसकी बांछें खिल जाएंगी. आप पार्टी का वोट शेयर इस सीट पर 33% लुढ़का है. कहा जा सकता है कि गोवा और पंजाब विधानसभा चुनावों से चली आ रही आप की दुखख़बरी दिल्ली में कांग्रेस की ख़ुशख़बरी बन सकती है.
ठीक इसी तरह की ख़ुशख़बरी बीजेपी को पश्चिम बंगाल से मिली है. कांठी दक्षिण विधानसभा सीट भले ही टीएमसी की चंद्रिका भटाचार्य ने जीत ली हो लेकिन यहां बीजेपी का वोट शेयर पिछली बार के 8.6% से चढ़कर 30.09% हो गया है और वह दूसरे नंबर पर रही. सीपीआई उम्मीदवार को महज 10.02% वोट मिले और कह सकते हैं कि यहां वाम मोर्चे का आप हो गया. पश्चिम बंगाल के अगले विधानसभा चुनावों में भारी उलटफेर की तैयारी में जुटी बीजेपी के लिए यह वोट शेयर टॉनिक का काम करेगा. इधर हिमाचल की भोरांज सीट बीजेपी ने बचा ली है. राज्य में इसी साल होने जा रहे चुनावों में पार्टी को हमला करने के लिए इससे काफी बल मिलेगा क्योंकि कांग्रेस की वीरभद्र सरकार पहले ही घनघोर घोटालों के आरोपों से घिरी हुई है.
राजस्थान ने भी बीजेपी की ख़ुशियों को पंख लगा दिए हैं. वसुंधरा राजे सरकार को 2018 में विधानसभा चुनाव झेलना है और उसकी मुश्किल यह है कि पिछले कई दशकों से राज्य की जनता हर बार सरकार बदल डालती है. अपने घरेलू मैदान की सीट जीतकर वसुंधरा ने यह इतिहास पलट देने की उम्मीद जगा दी है. हालांकि बीजेपी से ज़्यादा यहां बसपा ने ही बसपा को हरा दिया. बीजेपी ने बसपा विधायक बीएल कुशवाहा की धर्मपत्नी शोभारानी को धौलपुर से लड़ा दिया था, जिन्होंने बसपा के प्रत्याशी को धूल चटा दी. बीएल कुशवाहा को हत्या के एक मामले में आजीवन कारावास की सज़ा हो गई थी, जिसके चलते यह सीट खाली हुई थी. उधर असम में चंद माह पहले ही बीजेपी ने जीत का परचम फहराया था, उसके उम्मीदवार रनोज पेगू ने धेमाजी सीट से विजयश्री प्राप्त करके यह सिलसिला बरकरार रखा है.
उप-चुनावों ने यह भी दिखाया है कि विधायक-पुत्रों को विधायक बनाने से जनता अब भी पीछे नहीं हट रही. एमपी के उमरिया जिले की बांधवगढ़ सीट के विधायक ज्ञान सिंह शहडोल से बीजेपी के टिकट पर सांसद बनकर दिल्ली चले गए तो मतदाताओं ने उनके पुत्र शिव नारायण सिंह को विधायक चुन लिया है. भिंड जिले की अटेर सीट के विधायक सत्यदेव कटारे स्वर्ग सिधार गए तो मतदाताओं ने उनके पुत्र हेमंत कटारे को अपना विधायक चुन लिया. यानी बीजेपी और कांग्रेस के लिए एमपी में मामला 50-50 रहा. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनावों पर इसका क्या असर होगा, यह देखना दिलचस्प होगा.
उप-चुनावों के ये नतीजे किसी राजनीतिक उथल-पुथल की ओर इशारा नहीं करते, लेकिन जिन राज्यों में अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं, वहां बीजेपी और कांग्रेस को अपने-अपने मतदाताओं का मूड भांपने में ज़रूर मदद करेंगे. इतना स्पष्ट है कि आप के हौसले और उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा है, जिसे दिल्ली में संभलने के लिए ज़्यादा वक़्त भी नहीं बचा.
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