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अखिलेश यादव के सुर भले हुए हों नरम, बनी रहेगी आक्रामकता, इंडिया अलायंस में हो सकती है मायावती की एंट्री

दो दिन पहले तक जो हालात थे, सपा और कांग्रेस के बीच, वो काफी खराब थे. उसमें एक तरफ तो कमलनाथ के रवैए को लेकर अखिलेश यादव के मन में बहुत गुस्सा था, दूसरी तरफ अजय राय ने जो सपा को लेकर और अखिलेश यादव को लेकर जो बयान दिए, इन सारे मसलों ने माहौल काफी गर्म कर दिया था. फिर, अखिलेश यादव की बात दिल्ली हुई और उन्होंने खुद कहा कि उनकी कांग्रेस के बड़े नेताओं से बात हुई है और कुछ मसलों को अलग रखना पड़ेगा.

अखिलेश की नाराजगी बेवजह नहीं

सपा के मुखिया अखिलेश यादव खासकर कमलनाथ के रवैए को लेकर बहुत नाराज थे. यही कारण है कि पहले वह मध्य प्रदेश में जहां पहले एक दर्जन सीटों पर लड़ने की बात कर रहे थे, अब वह 33 सीटों पर लड़ने की बात कर रहे हैं. मुख्य बात समझने की यह है कि आखिर अखिलेश यादव इतने आक्रामक क्यों हो गए? वह जो हमेशा दिल बड़ा करने की बात करते थे, गठबंधन की बैठकों में उत्साह के साथ जाते थे, सामंजस्य की बात करते थे. इसके पीछे दो-तीन मुख्य कारण दिख रहे हैं. पहला, तो वह अपनी लीडरशिप को बना कर रखना चाहते हैं. उनको पता है कि अगर इन पांच राज्यों में नतीजे कांग्रेस के मुफीद आ गए तो फिर कांग्रेस दबाव बनाएगी. दूसरी तरफ, पश्चिम उत्तर प्रदेश का जो माहौल है, वहां मुसलमान वोटर बहुत तेजी से कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो रहा है. अब अखिलेश यादव की चिंता यह है कि उनका जो पारंपरिक वोटर है, जो मुस्लिम और यादव समीकरण है, वह अगर शिफ्ट हुआ, तो दबाव बढ़ जाएगा. इसी को लेकर अखिलेश दबाव में हैं. 

राहुल की है यूपी पर नजर

वैसे, राहुल गांधी खुद भले बात नहीं कर रहे हों, लेकिन केसी वेणुगोपाल अगर बात कर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि वह बातचीत राहुल गांधी के कहने के बाद ही की गयी है. वैसे, कहा गया है कि मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी के बीच बातचीत के बाद ही वेणुगोपाल ने अखिलेश से बात की है, तभी अखिलेश के सुर भी नरम पड़े हैं. वहीं, अजय राय को भी दिल्ली से निर्देश मिला है. फिर, आज यानी 23 अक्टूबर को प्रियंका के भी अजय राय की बैठक होने वाली है, तो निश्चित तौर पर वहां भी उनको संकेत दिए जाएंगे. दो रोज पहले यूपी कांग्रेस के सारे जिलाध्यक्षों और प्रभारियों की बैठक हुई थी. उसमें कई लोगों ने कहा था कि उनकी लड़ाई भाजपा से है, इसलिए जो भी बात हो वह योगी सरकार के खिलाफ होनी चाहिए. यानी, कांग्रेस का भी एक धड़ा चाहता है कि यह गठबंधन बचा रहे. एक तीसरी बात ये है कि मायावती की बातचीत भी कई नेताओं से चल रही है और हो सकता है कि जनवरी में उनकी भी आमद इंडिया गठबंधन में हो जाए. ऐसे में अखिलेश यादव के लिए जरूरी ये है कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की ज्यादा से ज्यादा सीटें उनके पास रहे. कांग्रेस को वह 10 से 12 सीटों पर समेटना चाहते हैं. तो, यह तल्खियां तो कल को खत्म भी हो जाएं, लेकिन इसका असर काफी लंबा रहेगा.

मुस्लिम वोटों के लिए है घमासान

बात ये भी है कि मुस्लिम वोटों के छिटकने का भय भी अखिलेश यादव को अधिक है. एक समय था, जब मुसलमान कांग्रेस को लोकसभा में वोट देता था और यूपी में विधानसभा के चुनाव के समय सपा को वोट देता था. इस बार जो लहर है, वह मुस्लिमों को कांग्रेस की तरफ ले जा रही है. बलिया में अजय राय ने फिर से बयान दे ही दिया है कि मुसलमानों का पुराना घर कांग्रेस ही है. अखिलेश के लिए समस्या यह होगी कि एक बड़ा वोट-ब्लॉक उनसे बाहर चला जाएगा. आज आप देखिए कि आजम खान के जेल जाने और उनको परिवार से अलग करने पर कांग्रेस से भी बयान आया और सपा से भी. दोनों का यही लक्ष्य है कि मुसलमान वोट बैंक उनके साथ बना रहे. अखिलेश यादव पर दबाव इसलिए भी है कि यह उनका सबसे बड़ा वोट ब्लॉक है. वह इसे मेंटेन रखना चाहते हैं, ताकि 2027 के चुनाव में वह अपना दबदबा बनाए रखें. 

गठबंधन जो भी होगा, वह माइनस कांग्रेस नहीं होगा. पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) की जो लाइन उन्होंने ली है, तो पिछले एक साल से जो उनके प्रयास हैं, उसको अगर देखें तो वो प्रयास स्पष्ट हैं. दलितों को उन्होंने पार्टी से जोड़ा. पार्टी कार्यालय में अंबेडकर की तस्वीर लोहिया के साथ लगायी और अंबेदकर वाहिनी जैसा आनुषंगिक संगठन बनाया. दलित नेताओं को तवज्जो दी उन्होंने. पिछड़ा और अल्पसंख्यक उनके पुराने साथी हैं, लेकिन यही पीडीए कांग्रेस का भी आधार है. राहुल गांधी जिस तरह से पिछड़ों की बात कर रहे हैं, जाति-जनगणना का मुद्दा उठा रहे हैं, वह उनके मूड को दिखा रहा है. यह पॉलिसी भी कांग्रेस के साथ विवाद की वजह बन रही है. जब एक ही वोट-ब्लॉक पर आप काम कर रहे हैं, तो उसको बचाने की जरूरत भी है. जब तक सीटों का बंटवारा नहीं हो जाता है, तब तब अखिलेश यादव का अग्रेसन तो बरकरार रहेगा, भले ही उनके सुर कुछ नरम हो जाए. इंडिया अलायंस तो यूपी में रहेगा, क्योंकि नहीं रहने पर नुकसान दोनों पार्टियों को होगा. इसलिए, थोड़ा खट्टा, थोड़ा मीठा करते रहेंगे, लेकिन अलायंस बरकरार रहेगा. हां, उसमें नयी एंट्री भी हो सकती है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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