42 साल से बंद दरभंगा पेपर मिल कब खुलेगी?
घंटी बजाओ में आज बात होगी सपनों की... सपना एक बेहतर कल का.. सपना बेहतर जिंदगी का.. सपना रोटी-कपड़ा मकान का.. सपना एक अच्छी नौकरी का.. लेकिन लोगों का ये सपना पूरा नहीं हो रहा.. इसका सबसे बड़ा गवाह है बिहार.. जहां अपने सपनों को पूरा करने के लिए लोग पलायन को मजबूर हैं.. बिहार में इस वक्त चुनाव का शोर है.. चुनाव में रोजगार और पलायन के मुद्दे पर हर पार्टी वादों की बौछार कर रही है.. एक वादा ये भी है.. बिहार में बंद पड़ीं उन फैक्ट्रियों और कारखानों को शुरू करेंगे.. जो कभी यहां के लोगों को रोजगार देते थे.. उनका और उनके परिवार का पेट पालते थे.. जिनके बंद होने के बाद पलायन लोगों का मुकद्दर बन गया.. इसी में शामिल है.. दरभंगा की अशोक पेपर मिल.. जिसमें 42 साल से ताला लटका हुआ हैै.. चुनावी शोर में अब इस पेपर मिल को भी दोबारा शुरू करने की आवाज गूंज रही है.. सवाल ये है.. क्या 42 साल बाद लोगों को रोजगार देने वाली ये पेपर मिल खुलेगी या फिर वादे हैं.. वादों का क्या... घंटी बजाओ में आज बात होगी सपनों की... सपना एक बेहतर कल का.. सपना बेहतर जिंदगी का.. सपना रोटी-कपड़ा मकान का.. सपना एक अच्छी नौकरी का.. लेकिन लोगों का ये सपना पूरा नहीं हो रहा.. इसका सबसे बड़ा गवाह है बिहार.. जहां अपने सपनों को पूरा करने के लिए लोग पलायन को मजबूर हैं.. बिहार में इस वक्त चुनाव का शोर है.. चुनाव में रोजगार और पलायन के मुद्दे पर हर पार्टी वादों की बौछार कर रही है.. एक वादा ये भी है.. बिहार में बंद पड़ीं उन फैक्ट्रियों और कारखानों को शुरू करेंगे.. जो कभी यहां के लोगों को रोजगार देते थे.. उनका और उनके परिवार का पेट पालते थे.. जिनके बंद होने के बाद पलायन लोगों का मुकद्दर बन गया.. इसी में शामिल है.. दरभंगा की अशोक पेपर मिल.. जिसमें 42 साल से ताला लटका हुआ हैै.. चुनावी शोर में अब इस पेपर मिल को भी दोबारा शुरू करने की आवाज गूंज रही है.. सवाल ये है.. क्या 42 साल बाद लोगों को रोजगार देने वाली ये पेपर मिल खुलेगी या फिर वादे हैं.. वादों का क्या...

























