अपने घर के झरोखे से वह ताजमहल को हर रोज सैकड़ों मर्तबा देखा करते थे. अखिलेश यादव से मिलने लखनऊ जाते वक्त भी वह खुद का बनाया गया खाना पैक करके अपने साथ ले गये थे. सम्मानित होने के बाद भी जब उन्होने अखिलेश यादव से कोई ख्वाहिश जाहिर नहीं की तो अखिलेश मंच से उतरकर उनके पास आये थे. कादरी ने न तो कभी अपने लिए कुछ मांगा और न अपने ताज के लिए. उनकी पहल पर गांव में हुए बदलाव के चलते इलाके के लोग उन्हें बहुत सम्मान देते थे.
कादरी ने इस कालेज के लिए अपनी जमीन सरकार को दान दे दी और डेढ़ साल में स्कूल बनकर तैयार हो गया. आज कसेर कलां समेत आसपास के इलाके की बेटियां इस जीआईसी में पढ़ती है. कादरी के पास भले ही खजाना नही था, लेकिन वह दिल के शहंशाह थे. बेहद स्वाभिमानी और ईमानदारी से अपना जीवन चलाने वाले कादरी अपना खाना खुद बनाते थे और अकेले ही रहते थे.
अखिलेश यादव ने तब कादरी से पूछा था कि वह उनके लिए क्या कर सकते है. कादरी ने बड़ा दिल दिखाते हुए कहा कि उनके गांव की सड़कें खराब है. इसके अलावा वह चाहते हैं कि गांव में बेटियों की पढ़ाई के लिए एक इंटर कालेज भी हो. इस पर अखिलेश यादव ने गांव को जनेश्वरमिश्र योजना में शामिल करते हुए गांव में राजकीय बालिका इंटर कालेज खोलने का ऐलान भी कर दिया.
अगस्त 2015 में इस ताजमहल के बारे में तब के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी सुना और उन्होने कादरी को लखनऊ बुलवाया. लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम में अखिलेश यादव ने कादरी को सम्मानित किया और उनसे ताजमहल को संगमरमर से ढाल देने का वायदा किया. अखिलेश यादव का यह ऑफर कादरी ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि वह इस ताजमहल की तामीर अपनी पेंशन के पैसे से पूरा करायेंगे. किसी और की कमाई का एक रूपया भी ताजमहल में नहीं लगने देगें.
कादरी ने इस ताजमहल को बनवाने के लिए किसी आर्केटेक्ट की सेवायें नहीं लीं. आगरा के ताजमहल के फोटो को देखकर कादरी ने गांव के राजमिस्त्री से इस ताज का निर्माण कराया. इस ताज पर सफेद संगमरमर तो नहीं था, लेकिन इसकी प्रसिद्धि इतनी फैली कि एशिया और यूरोप के कई देशों के पत्रकार इस ताज की खबर के कवरेज के लिए कसेर कलां तक आये थे.
बेगम के इंतकाल के बाद कादरी ने घर से सटी अपनी जमीन पर ताजमहल बनवाया. करीब 3 साल में ताजमहल बनकर तैयार हो गया. जहां यह ताजमहल बनवाया गया उसके बीचोंबीच तजुब्बरी बेगम की कब्र है. कादरी ने अपनी कब्र के लिये बेगम के ठीक पास वाला हिस्सा छोड़ रखा था. कादरी को आज उसी कब्र में दफनाया गया.
बुलंदशहर में डिबाई कस्बे के ठीक आगे कसेर कलां गांव के निवासी फैजुल हसन कादरी पेशे से पोस्टमास्टर थे. बहुत कम उम्र में उनका निकाह तजुब्बरी बेगम से हुआ था. तजुब्बरी बेहद खूबसूरत थीं. बदकिस्मती से उनके कोई औलाद नहीं हुई. मगर अपनी बेगम से बेपनाह मुहब्बत करने वाले फैजुल हसन कादरी ने इसके बाद भी दूसरी शादी नहीं की. तजुब्बरी बेगम के इंतकाल से पहले कादरी ने उनसे अपनी मुहब्बत को अमर बनाने का वायदा किया था. उन्होने तजुब्बरी से कहा था कि कुछ ऐसा करेंगे जिससे दुनिया उनकी मुहब्बत को याद रखे.
अपनी बेगम से बेइन्तहा मुहब्बत करने वाले बुलंदशहर के फैजुल हसन कादरी (83) नहीं रहे. एक सड़क हादसे के बाद अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई. कादरी ने अपनी बेगम से किये वायदे के मुताबिक उनकी याद में मकबरा बनवाया जो हूबहू ताजमहल की शक्ल जैसा है. इस मकबरे की प्रसिद्धि दुनियाभर के कई देशों में है.
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