(Source: ECI / CVoter)
राष्ट्रपति चुनाव: दलित नेताओं का मानना है कि दलित कार्ड खेल रहे हैं राजनीतिक दल
नई दिल्ली: राष्ट्रपति चुनाव को लेकर दिल्ली में सत्ता के गलियारे में एक ओर जहां दलित बनाम दलित के मुकाबले की पटकथा लिखी जा जा रही है, वहीं दूसरी ओर हाशिये पर मौजूद इस समुदाय के कार्यकर्ता दोनों नायकों की जातीय पहचान से जूझ रहे हैं.
दलित कार्यकर्ता और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता बेजवाड़ा विल्सन ने कहा, ''एनडीए का उम्मीदवार एक दलित नेता या कार्यकर्ता या समुदाय की ओर कुछ भी होने के बजाय आरएसएस का प्रचारक है.''
विल्सन ने कहा कि राजग की ओर से राम नाथ कोविंद की उम्मीदवारी बीजेपी की लंबे समय के लिए बनाई गई योजना है. वह इस उम्मीदवारी के जरिए संविधान में बदलाव कर सकें और लोगों को एक संदेश भेज सकें कि वे जो चाहते हैं वह कर सकते हैं.
विल्सन ने कहा, ''उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के बाद अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ अत्याचार बढ़ गए. उनका निर्वाचन इन समुदायों के लिए एक संदेश था. अब कोविंद के साथ भी वे ऐसा ही संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं. हम एक आरएसएस प्रचारक को इस देश का राष्ट्रपति बना सकते हैं. दलित लेखक और विचारक चंद्रभान प्रसाद ने कहा कि उन्हें कोविंद के लिए दलितों के बीच कोई गूंज नहीं सुनाई दी. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के लिए एक दलित उम्मीदवार का चुनाव करने का एनडीए का कदम दलित वोटों को बांटने की कोशिश है. उन्होंने कहा कि एक अलग दलित उप जाति से आने वाली मीरा कुमार को खड़ा करके विपक्ष बीजेपी के जाल में फंस गया है.
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के दलित प्रोफेसर एम पी अहिरवार ने कहा कि जब सरकार समुदाय के खिलाफ अत्याचारों पर बोलने में नाकाम रही तो राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर उसका दलित को नामित करना पाखंड को दिखाता है.