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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रभाव, डीपफेक का खतरा और हमारे देश के चुनाव

भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एआई तकनीक का एकीकरण ये दर्शाता है कि भविष्य में राजनीतिक अभियान कैसे आयोजित किए जाएंगे और संदेश कैसे प्रसारित किए जाएंगे?

भारत में इस समय लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग हो रही है. छह हफ्तों और सात चरणों में फैला भारतीय आम चुनाव दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक चुनाव है, जहां दुनिया का सबसे बड़ा मतदाता समूह अपना मताधिकार प्रयोग करेगा. इतने विशाल मतदाता समूह के लिए चुनाव आयोजित करने की चुनौतियों में व्यय भी शामिल है.

2019 के चुनाव में, चुनाव आयोग, राजनीतिक पार्टियों और उम्मीदवारों की तरफ से करीब 7 अरब डॉलर खर्च किए गए थे. 2024 का चुनाव और भी महंगा होने की उम्मीद है. इतने बड़े आयोजन में तकनीक का प्रयोग ना हो, ऐसा हो नहीं सकता. इसलिए ये कहने में कोई गुरेज नहीं, कि शायद यह मानव इतिहास में टेक्नोलॉजी का किसी चुनाव प्रक्रिया में योगदान का सबसे बड़ा उदाहरण होगा.

सोशल मीडिया के चुनाव

2014 और 2019 के भारतीय चुनावों को "सोशल मीडिया चुनाव" के नाम से जाना गया, क्योंकि सभी पार्टियों ने चुनाव प्रचार के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों का व्यापक उपयोग किया था. भारत में हो रहे 2024 के लोकसभा चुनावों को एआई के उभरते हुए प्रमुख उपकरण के रूप में देखा जा रहा है. ऐसा पहली बार नहीं है कि भारतीय राजनीतिक जगत ने संदेशों के संचार के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग देखा है. ऐसी तकनीक का उपयोग एक दशक से अधिक समय से किया जा रहा है, ख़ासतौर पर बीजेपी डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाने में सबसे आगे रही है.

2014 के भारतीय आम चुनावों के दौरान, बीजेपी ने व्यक्तिगत संदेशों के साथ वोटरों को लक्षित करने के लिए तकनीक-संचालित उपकरणों और सोशल मीडिया का उपयोग किया, जिससे राजनीतिक रणनीतियों में तकनीक के एकीकरण की परंपरा स्थापित हुई. उसके पश्चात एआई ने भी भारतीय राजनीति में गहरी पैठ बनाई है, जिससे अभियानों का संचालन किया जा रहा है और चुनाव लड़े जा रहे है.

फरवरी 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान भारत ने अपना पहला ज्ञात डीप फेक वीडियो देखा. दो मैनिपुलेटेड वीडियो में मनोज तिवारी, तब बीजेपी की दिल्ली इकाई के अध्यक्ष, दिखाई दे रहे थे. एक में वह अंग्रेजी में बात करते हुए दिखाई दे रहे हैं और दूसरे में हरियाणवी में, ताकि वोटरों को एक ही साथ दोनों भाषाओं में जानकारी दे सकें.

भाजपा है सबसे आगे

हालांकि, बीजेपी ने अपने कार्यों का औचित्य साबित करने का प्रयास किया था. उन्होंने मात्र संदेश संवाद करने के लिए सकारात्मक रूप से एआई तकनीक का उपयोग किया था और प्रतिद्वंद्वी की निंदा करने के लिए नहीं. लेकिन फिर भी इस वीडियो से कुछ विवाद हुए, क्योंकि कुछ विरोधियों ने ऐसे वीडियो द्वारा राजनीतिक अभियानों में मिसइन्फोर्मेशन और मैनिपुलेशन के लिए एआई के उपयोग और दुरुपयोग की संभावनाओं के बारे में चिंता उठाई. वाराणसी में काशी तमिल संगमम कार्यक्रम के दौरान संवाद और विविध जनसंख्या तक पहुंचने में एआई तकनीक के महत्व को रेखांकित किया गया था.

17 दिसंबर, 2023 को उद्घाटन पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंच पर उतरे. जैसे ही उन्होंने उद्घाटन भाषण देना शुरू किया, एक एआई-आधारित अनुवाद उपकरण "भाषिनी" चुपचाप उनके भाषण को हिंदी से तमिल में वास्तविक समय में अनुवादित कर रहा था. इस असाधारण कार्य ने न केवल भाषाई विभाजन को पाटा, बल्कि भारत की AI सम्बन्धी तकनीकी क्षमता में बढ़ती दक्षता को प्रमाणित किया था. इस घटना ने एआई की संभावनाओं को प्रदर्शित किया, जो राजनीतिक और सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है.

इस अनुवादित भाषण को फिर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर प्रसारित किया गया, जिससे हजारों गैर-हिंदी भाषी लोगों तक पहुंच बनाई गई, जिन्होंने कभी प्रधानमंत्री को उनकी भाषा में बोलते हुए नहीं सुना था. ये केवल शुरुआत थी, तब से प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों को तमिल कन्नड़, बंगाली, तेलुगु, पंजाबी, मराठी, ओडिया, और मलयालम में एआई का उपयोग करके अनुवादित कर ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा चुका है.

चुनावों में एआई के क्या फायदे हैं ?

एआई ने चुनावी रणनीतियों में एक नया युग शुरू कर दिया है. इससे सामग्री उत्पादन में वृद्धि हुई है, वहीं डिजिटल प्रसारण भी बड़ी तेजी से बदल रहा है. एआई चुनाव प्रक्रिया को सरल बनाने और इसे अधिक कुशल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देता है.चुनाव अभियानों में एआई को एकीकृत करने के प्राथमिक लाभों में से एक ये है कि यह लागतों को काफी कम करेगा, समय बचाएगा, और समग्र दक्षता और उत्पादकता में सुधार करेगा.

उदाहरण के लिए एआई-संचालित कॉल्स एक बहुत बड़ी सहूलियत है. पारंपरिक रूप से, राजनीतिक पार्टियों ने कॉल सेंटरों का उपयोग किया, जहां कर्मचारियों की तरफ से मतदाता को कॉल किये जाते थे, वहीं कम समय में अधिक पहुंच के लिए आईवीआर [इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स] सिस्टम का उपयोग किया जाता रहा है.

एआई की ओर से ऐसी कॉल्स सिस्टम की लागत को 50 गुना तक कम किया जा सकता है. ये मतदाताओं के साथ संचार के लिए एक अधिक लागत-प्रभावी समाधान प्रदान करता है. इसके जरिए राजनीतिक पार्टियां और सरकारें "सर्वेक्षणों को आयोजित करने की गति को नाटकीय रूप से तेज करने में सक्षम होंगी. जो काम पारंपरिक रूप से महीनों में पूरा किया जाता था, अब एक ही दिन में पूरा किया जा सकता है.

एआई के उपयोग के कारण लाखों से लेकर करोड़ों लोगों से प्रतिक्रिया जल्दी इकट्ठा करने की क्षमता होती है, और विश्लेषणात्मक उद्देश्यों के लिए एक डैशबोर्ड पर वास्तविक समय परिणाम प्रदर्शित कर सकती है. एआई का उपयोग भावना विश्लेषण, भर्ती और चयन प्रक्रियाओं के लिए, और विभिन्न क्षमताओं में राजनीतिक नेताओं की सहायता के लिए भी किया जा सकता है.

एआई से चुनावी तंत्र को खतरा?

यह भी सत्य है कि चुनावों में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई तरह की समस्याओं को हल करता है, वहीं ये कई तरह के खतरे भी पैदा कर सकता है. कुछ ही दिनों पहले टेक्नोलॉजी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने चीन से एआई-निर्मित सामग्री का उपयोग करके जनमत को प्रभावित करने और अपने भू-राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने की चेतावनी जारी की है. ऐसा बताया गया कि एआई-निर्मित सामग्री, जिसमें मीम, वीडियो और ऑडियो शामिल हैं, भारत और अन्य देशों के चुनाव परिणामों को प्रभावित करने के लिए प्रसारित की जा सकती हैं.

पिछले ही दिनों, बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान का एक डीपफेक वीडियो वायरल हो गया है, जिसमें उन्होंने कथित रूप से भारतीय जनता पार्टी का मजाक उड़ाया है, क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर एक दशक पुराने वादे को पूरा नहीं किया, जिसमें हर भारतीय नागरिक के बैंक खाते में 15 लाख रुपये जमा करने की बात कही गई थी. वीडियो में आवाज आमिर खान की आवाज से मिलती-जुलती है, वीडियो के अंत में विपक्षी कांग्रेस पार्टी का समर्थन करने के लिए मतदाताओं से अपील की गई थी. पता चला कि वीडियो को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) का उपयोग करके डीपफेक ऑडियो तकनीक से मैनिपुलेट किया गया था.

अगले ही दिन, आमिर खान ने इस वीडियो को "नकली और पूरी तरह से असत्य" बताया, और इसके विरुद्ध कार्रवाई करने की घोषणा भी की है. ऐसा प्रतीत होता है कि वीडियो बनाने वाले खान की लोकप्रियता का फायदा उठाकर वोट आकर्षित करने के लिए एआई तकनीक का उपयोग करके उनकी आवाज और शक्ल का फायदा उठाना चाह रहे थे, चूंकि आमिर खान एक प्रभावी व्यक्ति हैं, ऐसे वीडियो से लाखों लोगो को भ्रमित किया जा सकता है.

डीपफेक और नकली वीडियो का खतरा

एक वीडियो कथित रूप से तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव और भारत राष्ट्र समिति के अन्य राजनेताओं को दिखाते हुए प्रचारित किया गया था, जिसमें वोटरों से प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पार्टी का समर्थन करने के लिए कहा गया था. बीआरएस ने कांग्रेस पर डीपफेक तकनीक और एआई का उपयोग करके "नकली ऑडियो और वीडियो" सामग्री बनाने और प्रसारित करने का आरोप लगाया था. इस साल फरवरी में, कांग्रेस पार्टी ने एआई पर चर्चा को और बढ़ावा दिया, जब उन्होंने इंस्टाग्राम पर मोदी का मजाक उड़ाते हुए एक वीडियो पोस्ट किया.

स्निपेट, जिसे हिंदी संगीत एल्बम 'चोर' से निकाला गया था, मोदी का मजाक उड़ाते हुए उन्हें भारतीय अरबपति व्यापारियों के पक्ष में संसाधनों के हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करने के लिए निंदा करता है. एक एआई मीम मोदी की आवाज और चेहरे के क्लोन का उपयोग करता है ताकि प्रधानमंत्री के अरबपति भारतीय व्यापारियों के प्रायोजन की आलोचना को रेखांकित किया जा सके. एआई का प्रयोग कई पार्टियों के लिए अपने प्रतिद्वंद्वियों का मजाक उड़ाने के किया है, वहीं यह दिवंगत नेताओं की यादों को पुनर्जीवित करने के लिए भी उपयोगी है.

तमिलनाडु में सत्ता में रही द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम ने अपने संस्थापक-नेता, स्वर्गीय एम. करुणानिधि को डीप फेक तकनीक के माध्यम से पुनर्जीवित किया है. करुणानिधि एक प्रतिष्ठित वक्ता थे और उनका एआई अवतार उनके बेटे और उत्तराधिकारी के. स्टालिन की प्रशंसा करते हुए भाषण देता है, जो डीएमके के अध्यक्ष और तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री हैं.

भारत में कानून की जरूरत

वर्तमान में डीपफेक एक बहुत बड़ा खतरा बन गया है, और आश्चर्य की बात है कि इस तकनीक को विनियमित करने के लिए कोई कानून भी भारत में नहीं है. विशेषकर मृत व्यक्तियों के वीडियो बनाते समय उनके परिवार से अनुमति मांगना आवश्यक है. राजनेताओं की विरासतें, अक्सर पुस्तकों, रिकॉर्डिंग्स, और अन्य मीडिया में संरक्षित, पुनर्व्याख्या के अधीन होती हैं. ऐसी सामग्री का पुनर्निर्माण अपने आप में अवैध नहीं हो सकता है, लेकिन उनके वक्तव्यों को बदलना, उनकी आवाज का दुरुपयोग करना, उनके चेहरे को किसी और के धड़ पर लगाने से  मतदाताओं को गुमराह किया जा सकता है. 

भारत के पास एआई-निर्मित सामग्री को ट्रैक करने का कोई अच्छा सिस्टम भी नहीं है, जबकि बड़े प्लेटफार्मों जैसे कि मेटा, गूगल, और एक्स के पास कुछ बेहतर टूल्स और सिस्टम्स हैं, जो ऐसे मीडिया को पकड़ सकते हैं. ऐसे में भारत सरकार को इन प्लेटफार्मों से बात करनी चाहिए और चुनावों की सुरक्षा के लिए एक प्रणाली स्थापित करनी चाहिए. भारत के राजनीतिक परिदृश्य में एआई तकनीक का एकीकरण ये दर्शाता है कि भविष्य में राजनीतिक अभियान कैसे आयोजित किए जाएंगे और संदेश कैसे प्रसारित किए जाएंगे? रीयल टाइम में ढेरों भाषाओं में भाषण अनुवाद से लेकर डीपफेक वीडियो तक, एआई राजनीतिक अभिनेताओं के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों प्रदान करता है.

यह सांस्कृतिक संवाद को बढ़ावा देता है और अभियान की दक्षता को बढ़ाता है, लेकिन अगर इनमे कोई सुधार नहीं हुआ, और कोई नियंत्रण सिस्टम नहीं बनाया गया, तो सूचना की प्रामाणिकता, मिसइन्फोर्मेशन, और विदेशी हस्तक्षेप की चिंताएं भी बनी ही रहेंगी.

 

मनीष 16 वर्षों से IT industry में कार्यरत हैं, फिलहाल NTT Data में Associate Director पद पर हैं. तकनीकी, विज्ञान, और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से जुड़े मामलों के जानकार हैं.  राष्ट्रीय सुरक्षा और साइबर टेक्नोल़ॉजी पर इनको महारत हासिल है और ये उपलब्ध माध्यमों पर लगातार अपनी राय देते हैं.
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