कार्बन डेटिंग शब्द कई बार सुना होगा, आज जानिए क्या होती है ये
जानकारी के अनुसार, कार्बन डेटिंग से करीब 50 हजार साल पुरानी चीजों के बारे में पता लगाया जा सकता है. इस तकनीक को 1940 के अंत में शिकागो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विलार्ड लिब्बी ने खोजा था.
ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग को लेकर कार्बन डेटिंग शब्द को आपने कई बार सुना होगा. सोशल मीडिया पर भी ये शब्द इन दिनों चर्चा का विषय है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर ये कार्बन डेटिंग होती क्या है और इससे कैसे किसी चीज के असली समय का पता चलता है. असली समय का मतलब ये कि इस विधि के जरिए आप पता लगा सकते हैं कि कौन सी चीज कितनी पुरानी है. यह पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित होती है और यही वजह कि ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के मामले में भी कार्बन डेटिंग की बात कही जा रही है.
क्या होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग का मतलब होता है किसी भी चीज में मौजूद कार्बनिक पदार्थों की आयु निकालना. यह पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित होती है. अगर किसी को भी किसी चीज की आयु को लेकर शंका होती है तो फिर इसी के माध्यम से उसकी आयु निर्धारित की जाती है. इससे सिर्फ पत्थर की ही आयु नहीं पता चलती, बल्कि बाल, कंकाल, चमड़ी आदि की भी कार्बन डेटिंग होती है और उससे उनकी भी आयु पता चल जाती है. हालांकि, इसे कोई भी नहीं कर सकता. इसे सिर्फ प्रमाणिक संस्थाएं ही कर सकती हैं.
कितनी पुरानी चीजों की पहचान हो सकती है?
जानकारी के अनुसार, कार्बन डेटिंग से करीब 50 हजार साल पुरानी चीजों के बारे में पता लगाया जा सकता है. आपको बता दें, इस तकनीक को सन् 1940 के अंत में शिकागो विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर विलार्ड लिब्बी ने खोजा था. अब सवाल उठता है कि आखिर ये होती कैसे है? दरअसल, वायुमंडल में तीन प्रकार के आइसोटोप होते हैं. इनमें कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14 होता है. कार्बन डेटिंग करते समय कार्बन 12 और कार्बन 14 का अनुपात निकाला जाता है और जब किसी वस्तु की मृत्यु के समय कार्बन 12 होता है तो वह कार्बन 14 में बदल जाता है. अगर ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग के मामले में कार्बन डेटिंग होती है तो यह कई और मामलों में रास्ता खोल देगा और इसकी मदद से भारत की असली सच्चाई सबके सामने आ जाएगी.
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